
आज भी माहवारी के मिथक में पड़ी है महिलाएं लेकिन, अब ये दाग अच्छे हैं...
आगरा। माहवारी होने की बात होते ही लड़कियों और महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव की तस्वीर उभरने लगती है। खासकर ग्रामीण और कामकाजी महिलाओं को इस भेदभाव से दो चार होना पड़ता है। विश्व माहवारी स्वच्छता दिवस के मौके पर फेडरेशन आॅफ आॅब्सटेट्रिक एंड गायनेलाॅजिकल सोसाइटी आॅफ इंडिया (फाॅग्सी) एवं आगरा आॅब्स एंड गायनी सोसाइटी के संयुक्त तत्वावधान में माहवारी स्वच्छता प्रबंधन पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। इसमें वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा ने कहा कि हैरत की बात है कि आज के समय में भी इसके साथ सामाजिक कलंक जैसी बातें और अज्ञानता जुड़ी है। इस महत्वपूर्ण मुददे पर चुप्पी तोड़ना और जागरूकता लाना ही इस कार्यक्रम का उददेश्य है। उन्होंने कहा कि माहवारी को लेकर समाज में जो मिथ एवं पुरानी अवधारणाएं बनी हुई हैं उन्हें खत्म करना है। माहवारी महिला के शरीर में होने वाली प्राकृतिक प्रक्रिया है।
आओ लें प्रण, नहीं करेंगे अपनी बच्चियों का तिरस्कार.....
इस जागरूकता कार्यक्रम में उपस्थित लड़कियों और महिलाओं ने डाॅक्टरों से माहवारी के दौरान होने वाली परेशानियों का समाधान जाना। उन्होंने डाॅक्टरों से सवाल पूछकर अपनी जिज्ञासाएं शांत कीं। रेनबो हाॅस्पिटल कीं वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. मनप्रीत शर्मा ने उपस्थितजनों को यह प्रण दिलाया कि माहवारी को लेकर चली आ रहीं पुरानी अवधारणाओं, मिथकों और अज्ञानता के चलते वह अपनी बच्चियों का तिरस्कार नहीं करेंगे। उन्हें बिस्तर की जगह जमीन पर सोने को नहीं कहेंगे, रसोई में जाने से नहीं रोकेंगे, स्कूल जाने से नहीं रोकेंगे, खाना बनाने से नहीं रोकेंगे।
आधुनिक दौर में करें मैन्सट्रुअल कप का इस्तेमाल...
युवा आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. दीक्षा गोस्वामी ने बताया कि सैनेटरी नैपकिन या पैड्स खरीदने में सैकड़ों रुपये खर्च करने वाला समय अब धीरे-धीरे जा रहा है, जो न तो बहुत आरामदायक होते हैं और न ही पर्यावरण के अनुकूल। आधुनिक समय में परेशानी मुफ्त पीरियडस का समाधान मासिक धर्म कप यानि मैन्सट्रुअल कप हैं। ये मेडिकल ग्रेड सिलिकाॅन से बने होते हैं और माहवारी के दौरान योनि के अंदर एक कप लगाया जाता है। महिलाओं के रक्त के प्रवाह के अनुसार स्वच्छता के लिए कप को निकाल कर साफ किया जाता है। हालांकि मासिक धर्म कप की अवधारणा भारत में काफी नई है, लेकिन स्त्री रोग विशेषज्ञ कपड़े, सैनेटरी पैड और टेंपोन के बजाय इन्हीं के उपयोग को अब बेहतर मानते हैं। इसमें सैनेटरी नैपकिन की तरह सैकड़ों रुपये खर्च करने की जरूरत भी नहीं होती बल्कि एक बार खरीदकर सालों इस्तेमाल किया जा सकता है। बस जरूरत है साफ-सफाई का ध्यान रखने की।
टैम्पोन भी है बेहतर विकल्प...
डॉ. शैली गुप्ता ने बताया कि पीरियडस के दौरान टैम्पोन भी बेहतर विकल्प है। सैनेटरी नैपकिन्स की जगह इन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है। टेम्पोन रूई का एक छोटा प्लग होता है जो पीरियड्स के रक्त को अवशोषित करता है।
82 प्रतिशत महिलाएं नहीं जानतीं सैनेटरी पैडस क्या हैं?
फाॅग्सी की संयुक्त सचिव डॉ. निहारिका मल्होत्रा बोरा ने बताया कि देश में माहवारी को लेकर जागरूकता का अभाव है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज भी 82 प्रतिशत महिलाएं नहीं जानतीं कि सैनेटरी पैडस क्या हैं, सिर्फ 18 प्रतिशत महिलाएं ही इनका इस्तेमाल करती हैं। इसकी वजह से 70 प्रतिशत महिलाएं रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इनफेक्शन से पीडित हैं। जहां तक कपड़े की बात है तो यह एक पुराना तरीका है पर बार-बार कपड़े का उपयोग करना, गंदे कपड़े का उपयोग करना भी महिलाओं को खतरे में डालता है।
Published on:
29 May 2018 11:26 am
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