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पितरों को प्रसन्न करना है ​तो अमावस्या के दिन इस तरह करें श्राद्ध

ज्योतिषाचार्य से जानिए पितृपक्ष अमावस्या का महत्व, श्राद्ध विधि और सही नियमों के बारे में।

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आगरा

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suchita mishra

Sep 26, 2019

श्राद्ध पक्ष खत्म होने में दो एक दिन ही बाकी है। 28 सितंबर को पितृपक्ष अमावस्या है। अगर आपको अपने पितरों के श्राद्ध की तिथि याद न हो तो अमावस्या के दिन आप श्राद्ध कर सकते हैं। ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र से जानते हैं कि अमावस्या पर किस तरह श्राद्ध किया जाए जिससे हमारे पितर प्रसन्न होकर और आशीर्वाद देकर जाएं।

श्राद्ध विधि: शास्त्रानुसार सर्वपितृ अमावस्या को 16 ब्राह्मणों के भोज का मत है। घर की दक्षिण दिशा में सफ़ेद वस्त्र पर पितृ यंत्र स्थापित कर उनके निमित, तिल के तेल का दीप व सुगंधित धूप करें। चंदन व तिल मिले जल से तर्पण दें। तुलसी पत्र समर्पित करें। कुशासन पर बैठाकर गीता के 16वें अध्याय का पाठ करें। इसके उपरांत ब्राह्मणों को खीर, पूड़ी, सब्ज़ी, कढ़ी, भात, मावे के मिष्ठान, लौंग-ईलाची व मिश्री अर्पित करें। यथाशक्ति वस्त्र-दक्षिणा देकर आशीर्वाद लें। इस दिन रात्रि में पितृ अपने लोक जाते है। पितृ को विदा करते समय उन्हे रास्ता दिखाने हेतु दीपदान किया जाता है। अतः सूर्यास्त के बाद घर की दक्षिण दिशा में तिल के तेल के 16 दीप करें। इस विधि से पितृगण सुखपूर्वक आशीर्वाद देकर अपने धाम जाते हैं।

ध्यान रखें ये बातें
– जरूरत मंद लोगों में कपड़े और खाना बांटें। इससे पितरों को शान्ति मिलती है।
– श्राद्ध दोपहर के बाद नहीं करना चाहिए। इसे सुबह या दोपहर चढ़ने से पहले ही कर लेना चाहिए।
– श्राद्ध के दौरान जब ब्राह्मण भोज करवाया जा रहा हो तो हमेशा दोनों हाथों से खाना परोसना चाहिए।
– श्राद्ध के दिन प्याज और लहसुन जैसी चीजों का प्रयोग ना करें। माना जाता है जो सब्जियां जमीन के अंदर से उगती हैं उन्हें पितरों को नहीं परोसा जाता है।
– भोजन में से सर्वप्रथम गाय, काले कुत्ते और कौए के लिए ग्रास अलग से निकालकर उन्हें खिला दें।

समझें पितृपक्ष की अहमियत
ज्योतिषाचार्य डॉ. अरविंद मिश्र बताते हैं कि पितृपक्ष का महीना पितरों का आशीर्वाद पाने का महीना है, साथ ही उनके ऋण से मुक्ति का महीना है। माना जाता है कि पितृपक्ष के दौरान पितर धरती पर भ्रमण करते हैं और अपने परिजनों को देखते हैं। उनकी तृप्ति के लिए परिजन पूरी श्रद्धा से तर्पण, पिंड दान यानी पिंड रूप में पितरों को दिया गया भोजन, जल आदि अर्पित करते हैं। मान्यता है कि ये पिंड दान सीधा पितरों को मिलता है जिससे वे प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद देकर जाते हैं। जिससे घर में सुख-संपन्नता बनी रहती है।