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आगरा में प्यार की एक और निशानी, लाल ताजमहल

आगरा में मोहब्बत की निशानी ताजमहल के बारे में तो आपने सुना है, लेकिन क्या आप जानते हैं एक और मोहब्बत की निशानी है आगरा में जिसे लाल तामहल कहते हैं।

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Amit Kumar Shrama

May 10, 2016

Red Taj Mahal

Red Taj Mahal

आगरा।
आगरा स्थित ताजमहल को पूरे विश्व में प्रेम की निशानी माना जाता है। लगभग पौने चार सौ वर्ष पूर्व इस इमारत का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज की याद में करवाया, लेकिन इस सच्चाई को शायद कम लोग ही जानते होगें कि इस संगमरमरी सफ़ेद ताजमहल के साथ साथ आगरा में ही एक और ताजमहल है, जिसे प्यार करने वाली पत्नी ने अपने पति की याद में लगभग 200 वर्ष पहले बनवाया था। आगरा के भगवान टॉकीज चौराहा के निकट हिन्दुस्तान के सबसे पुराने रोमन कैथोलिक कब्रिस्तान में ठीक बीचों-बीच में मुहब्बत की एक और दास्तान का साक्षी बनकर खड़ा हुआ है पत्थर का बना लाल ताजमहल।



सिपहसालार की पत्नी ने कराया लाल ताजमहल का निर्माण

इस लाल ताजमहल की कहानी भी कम रूमानी नहीं है। सफेद ताज का निर्माण तो सर्व साधन सम्पन्न बादशाह द्वारा करवाया गया, लेकिन इस लाल ताजमहल का निर्माण एक बादशाह की तुलना में बेहद मामूली सिपहसालार की विधवा द्वारा करवाया गया। बात सन् 1797-98 की है। जब कर्नल जॉन विलियम हैसिंग अपनी पत्नी के साथ आगरा आये तो स्वाभाविक रूप से ताज के आकर्षण से प्रभावित होकर एक शाम ताजमहल पहुंचे। ताज के सौन्दर्य और उसके साथ जुड़ी मोहब्बत की दास्तान ने इस जोड़े को भी प्रभावित किया। वहीं दोनों ने एक दूसरे से वादा किया कि दोनों में से जिसकी मृत्यु पहले हो जायेगी वह दूसरे की याद में ऐसा ही ताजमहल बनवायेगा। जॉन हीसिंग दौलत राव सिंधिया की फौज में एक अफसर था। जॉन हीसिंग की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी ने अपने पुत्र पुत्रियों के साथ मिलकर इस लाल ताजमहल का निर्माण कराया। बादशाह शाहजहां जैसा साधन और धन तो इस परिवार के पास नहीं था इसलिए रेड स्टोन यानी लाल पत्थर से इसका निर्माण करवाया गया। कर्नल हैसिंग को पूरे सम्मान के साथ इस ताज में दफनाया गया।




कौन था कर्नल हीसिंग

एक मामूली सिपाही डच मूल का कर्नल हैसिंग सन् 1765 में लंका पहुंचा जहां उसने कैंडी युध्द में भाग लिया। इसके बाद निजाम हैदराबाद की सेना में उसे नौकरी मिल गयी। सन् 1784 में मराठा सरदार महादजी सिन्धिया की सेना में उसे उच्च पद प्राप्त हुआ। फ्रान्सीसी सेनापति द-ब्रूने के नेतृत्व में कई युध्दों में हैसिंग ने अपनी वीरता के जौहर दिखाये। सन् 1792 में महादजी उसे पूना ले गये। सन् 1794 में महादजी की मृत्यु के बाद हैसिंग आगरा आ गया। आगरा पर तब मराठों का अधिकार था। सन् 1799 में आगरा किला एवं उसकी दुर्गरक्षक सेना का वह सेनापति नियुक्त हुआ। २१ जुलाई सन् 1803 को अब तक कर्नल का सम्मान पा चुके हैसिंग का देहावसान हो गया।




हूबहू ताजमहल जैसा लगता है ये मकबरा

यह मकबरा देखने में हूबहू ताजमहल जैसा है। पूरी तरह मुगल स्थापत्य कला पर आधारित यह मकबरा लगभग १००-१०० फीट के दायरे में है। असली ताज की तरह इसमें भी भूमिगत कक्ष हैं व ताजमहल की मीनारों की शक्ल में इसमें भी मुख्य इमारत से मीनारें जुड़ी हुईं हैं। यह मकबरा ताजमहल की तरह चारों ओर से सिमेट्रिकल है। इसके चारों ओर बड़े प्रवेश द्वार हैं। मुख्य गुंबद एक ऊंचे बने चौकोर चबूतरे पर है। इसी गुंबद के अंदर जॉन हीसिंग और उसकी पत्नी एलिस हीसिंग की कब्रें हैं, पर ये असली नहीं हैं। गुंबद के दाएं और बाएं जाने के लिए ऊपर से सीढियां हैं। वहीं से भूमिगत कक्ष की ओर जाने वाला रास्ता भी खुलता है। इसी भूमिगत कक्ष में हीसिंग दंपति संगमरमर की कब्रों में दफन हैं।


आज भी गुमनामी के अंधेरे में है ये लाल ताजमहल

इतने साल बीत जाने के बावजूद यह ताज आज भी गुमनाम ही बना हुआ है। ताजमहल जैसी दिखने वाली इस इमारत के बारे में पर्यटकों को कोई जानकारी नहीं है। दरअसल यह इमारत एक आम इंसान और एक बादशाह के बीच के फर्क को बयां करती है। यह गुमनाम है क्योंकि यह न ही भव्य है और न ही इसे किसी शहंशाह ने बनवाया। अलबत्ता दोनों को बनाने के पीछे प्रेम की ही अमर भावना थी। जो भी हो पर आज की हकीकत यह है कि प्रेम की इस मिसाल को लोगों के ध्यान की जरूरत है, जिसका इंतजार इस मकबरे को सालों से है।


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