18 दिसंबर 2025,

गुरुवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने इस मैदान से की थी सशस्त्र क्रांति की घोषणा, गांधी जी पर किया था कटाक्ष

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस 1940 में आगरा आए थे। मोतीगंज के पुरानी चुंगी मैदान में सभा की थी।

3 min read
Google source verification

आगरा

image

Dhirendra yadav

Jan 23, 2018

Republic day event 2018

Republic day event 2018

आगरा। नेताजी सुभाष चंद्र बोस और इस पुरानी चुंगी मैदान की एक बड़ी ही महत्वपूर्ण कहानी है। ये मैदान बहुत सी कहानियां समेटे हुए है। यहां आजादी से पहले हुईं क्रांति की कई कहानियां हैं। अगस्त क्रांति के दौरान आगरा के युवा परशुराम अंग्रेजी हुकूमरानों की गोलियों से शहीद हो गए थे। यूपी के अलावा राजस्थान की रणनीति भी इसी मैदान से बनती थीं। इसी मैदान से नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1940 में विशाल जनसभा को संबोधित कर सशस्त्र क्रांति की घोषणा की थी।

1940 में आए थे नेता जी
पत्रिका टीम ने उसी पुरानी चुंगी मैदान के आस पास के लोगों से बात की, तो लोगों ने बताया कि इस मैदान के इतिहास पर उन्हें गर्व है। उन्होंने बताया कि बुजुर्गों के मुंह इस मैदान की बहुत सी कहानियां सुनी हैं। इस मैदान में 1940 में तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा नारे से आम जनता को उद्वेलित कर देने वाले नेताजी सुभाष चन्द्र बोस 1940 में आगरा आए थे। 93 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चिम्मन लाल जैन भी इस सभा में गए थे। उन्होंने बताया कि जब नेताजी को साजिशन कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बनने दिया गया, तब उन्होंने ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक पार्टी बनाई थी। यह बात 1939 की है। इसी पार्टी की ओर से 1940 में आगरा में सभा रखी गई थी। बाह क्षेत्र के कई सोशलिस्ट फारवर्ड ब्लॉक में आ गए थे। सभा में भारी भीड़ उमड़ी थी। हर कोई नेताजी को देखना चाहता था। उनका भाषण सुनकर हर हृदय में आजादी के लिए जंग छेड़ने की तमन्ना घर गई थी। श्री चिम्मन लाल जैन बताते हैं कि नेताजी ने महात्मा गांधी का नाम आदरपूर्वक लिया। साथ ही यह भी कहा कि गांधी जी जिस रास्ते का अनुसरण कर रहे हैं, उससे आजादी मिलने में बहुत समय लगेगा। नेताजी ने जर्मनी का उल्लेख करते हुए कहा था कि अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र युद्ध छेड़ने का समय आ गया है।

ये है युवा परशुराम की कहानी
नौ अगस्त 1940 को आगरा के सभी नेताओं की गिरफ्तारी हो चुकी थी। इस आंदोलन के आगरा प्रमुख बाबूलाल मित्तल भूमिगत होकर वृंदावन चले गए। जब पूरे देश में इस आंदोलन की चिंगारी चरम पर थी, तो बाबूलाल मित्तल को निर्देश मिले, कि आगरा में आंदोलन शुरू किया जाए। इसके बाद बाबूलाल मित्तल आगरा आए। फुलट्टी बजार से एक बड़ा जुलूस निकाला गया, जिसमें हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ थी। सारे शहर में पुलिस का सख्त पहरा था। अंग्रेज पुलिस की गाड़ियां सायरन बजाती हुई इधर उधर दौड़ रहीं थीं। यमुना किनारे के आस पास बने बगीचे उस दिन सुनसान पड़े थे। जब मशाल जुलूस चुंगी मैदान के पास पहुंचा। कांग्रेस के बाबूलाल मित्तल को गिरफ्तार कर लिया। उनकी गिरफ्तारी से तनाव बढ़ गया। कुछ लोग उनकी गिरफ्तारी के विरोध में नारेबाजी करने लगे। तभी भीड़ में से किसी शरारती तत्व ने एक पत्थर फेंका। जो अंग्रेज पुलिस के एक दरोगा के सिर जाकर लगा। इसके बाद अंग्रेज पुलिस हरकत में आ गई। पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। लोग भयभीत होकर इधर उधर भाग रहे थे। हाथीघाट से जो सड़क दरेसी की तरफ जाती है, उस पर अंग्रेज पुलिस की कड़ी नाकेेबंदी को चीरता हुआ एक नौजवान आगे बढ़ रहा था। हाथ में तिरंगा था, तभी पुलिस की बंदूक गरजी, एक गोली उसकी बांह में लगी वह उठा, चला लेकिन फिर बंदूक की धांय धांय सुनाई दी, जिसमें छीपीटोला के रहने वाले आंदोलनकारी डॉ. सी ललित की टीम के परशुराम की सीने को छलनी कर दिया। परशुराम के जमीन पर गिरते ही पूरा माहौल एकदम शांत हो गया।