आगरा। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में कहा है- परहित सरिस धर्म नहीं भाई, परपीड़ा सम नहीं अधमाई। मतलब दूसरे का हित करने से बड़ा कोई धर्म नहीं है। दूसरे को पीड़ा पहुंचाने के समान कोई अधर्म नहीं है। दूसरे का भला यानी सेवा। वह भी उनकी सेवा, जिन्हें देखकर सब मुंह बनाते हैं। किसी के हाथ नहीं है, किसी के पैर नहीं। किसी को सुनाई नहीं पड़ता है तो कोई घिसट-घिसटकर जिन्दगी बसर कर रहा है। ऐसे विकलांगजनों को नारायण मानकर लगातार तीन दिन सेवा की गई। इतना ही नहीं, उन्हें दूध पिलाया गया, भोजन कराया गया और साथ में नकद धनराशि भी दी गई। वास्तव में यह अद्भुत, अनुकरणीय, अकथनीय, अकल्पनीय, अक्षत, अंत्योदय, अखंड, अचूक सेवा है। अगर मैंने इतने विशेषणों का प्रयोग किया है तो इसे अतिश्योक्ति या चापलूसी के रूप में न माना जाए। जो देखा है, वही लिखा जा रहा है।
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वास्तव में विकलांग तिल-तिलकर मरने को मजबूर हैं। वे कोई काम नहीं कर पाते हैं। परिवार पर बोझ बन जाते हैं। परिवार का एक व्यक्ति उनकी सेवा के लिए चाहिए। किसी के पैर नहीं हैं, अगर उसे बैशाखी, ट्राइसाइकिल या व्हील चेयर मिल जाए तो परिवार पर आश्रित नहीं रहेगा। कम से कम अपना काम स्वयं कर सकेगा। इस संवाददाता ने देखा कि शिविर में जो लोग घिसटकर रोते हुए आ रहे थे, वे मुस्कराते हुए गए। साथ में दुआएं देते गए। सेवा वही है, जिसका दिखावा न हो। कुछ ऐसा ही भाव दिखाई दिया।
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महावीर विकलांग सहायता समिति जयपुर (राजस्थान), भगवान महावीर स्वामी श्वेतांबर जैन दादाबाड़ी आगरा व सन्तोष मेमोरियल ट्रस्ट आगरा ने संयुक्त रूप से विकलागों के लिए जैन दादाबाड़ी, शाहगंज में शिविर लगाया गया। यूं तो मैंने अनेक विकलांग शिविर देखे हैं, लेकिन यह सबसे अलग हटकर था। विकलांगों के लिए हाथ और पैर बनाने के लिए पूरा कारखाना स्थापित किया गया। विशेषज्ञों ने नाप लेकर मौके पर ही हाथ-पैर बनाए। ट्राइसाइकिल, व्हील चेयर, बैशाखी, बेंत, कान की मशीन.. समेत विकलांगों को जो चाहिए था, दिया गया। सभी उपकरण दिल्ली से लाए गए। संयोजन प्रख्यात समाजसेवी अशोक जैन सीए और उनकी टीम ने किया।
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आगरा के राजीव डागा अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में निवासरत हैं। अपनी जन्मभूमि आगरा से उनका लगाव आज भी जारी है। उन्होंने सपरिवार यहां सेवा की। पूरा परिवार तीन दिन तक सेवा कार्य में लगा रहा। खास बात यह रही है कि विकलांगों को हेय दृष्टि से नहीं देखा गया। डागा परिवार ने स्वयं को उपकृत माना कि विकलांगों की सेवा करने का अवसर मिला है। सेवा करना और स्वयं को अकिंचन समझना ही सेवा है। पत्रिका से बातचीत में राजीव डागा ने कहा कि जो कुछ कमाया है, वह समाज का है। समाज को अर्पित कर रहा हूं। इसमें कोई अहसान नहीं है। अशोक जैन सीए के परिवार की बात करें तो उनके भ्राता राज कुमार जैन, सुनील कुमार जैन, संदेश जैन और बहुएं भी यहां सेवा करती दिखाई दीं। सारा काम छोड़कर तीन दिन तक विकलागों की सेवा में रत रहे।
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जैन दादाबाड़ी के द्वार पर ही विकलांगों के लिए भोजन का इंतजाम किया गया था। पंजीकरण के बाद उन्हें पर्ची दी जाती थी। इस पर्ची को दिखाकर कढ़ाही का दूध मिलता था। जिसे जैसे आवश्यकता था, वैसी सेवा की गई। दिल्ली से उपकरण मंगाए गए। स्वामी विवेकानंद ने कहा था- नर सेवा नारायण सेवा। कुछ ऐसा ही भाव यहां दिखाई दिया। शिविर के दौरान स्वयंसेवक किसी भी विकलांग पर झल्ला नहीं रहे थे। उसे प्रेम से अपने साथ, अपने कंधे पर बैठाकर ले जाते देखे गए। यही कारण था कि शिविर में आगरा ही नहीं, मथुरा, भरतपुर, फिरोजाबाद तक से विकलांग आए। किसी को भी निराश नहीं किया गया। अगर पंजीकरण नहीं भी था, तो उसे अगले दिन बुलाया गया। जिला जेल के विकलांग कैदियों को भी उपकऱण प्रदान किए गए। जिला अस्पताल और एसएन मेडिकल कॉलेज को भी व्हील चेयर प्रदान की जाएंगी ताकि मरीजों को आराम से एक वार्ड से दूसरे वार्ड में स्थानांतरित किया जा सके।
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