
लॉकडाउन इफेक्ट : गुम हुई आगरा में पेठे की मिठास, चौपट हुआ कारोबार
सुचिता मिश्रा
आगरा. दुनियाभर में मशहूर आगरा के पेठे की मिठास इन दिनों गुम है। गर्मी के महीने में आम आदमी के प्यास बुझाने का मुख्य साधन पेठा ही हुआ करता था लेकिन, लॉकडाउन में लोगों को 'कड़वे घूंट' पीने पड़ रहे हैं। महीनेभर से अधिक का वक्त बीत चुका है। शहर में पेठे की भट्टियों से धुंआ नहीं उठा। यहां की हर गली जिसमें कई तरह की सुगंध उठती थी उन गलियों में अब सड़े सफेद कुम्हड़े की बदबू फैली है। गोदामों में पड़ा लाखों का माल सड़ चुका है। लॉकडाउन-3 में तमाम इंडस्ट्री को कुछ सहूलियतें मिली हैं। लेकिन, फिर भी आगरा के एक हजार से अधिक पेठा व्यापारियों को कोई राहत नहीं मिलने वाली है। यह शहर कोविड-19 के रेड जोन में है। 17 मई के बाद भी व्यापारियों को कोई फायदा होता नहीं दिख रहा। क्योंकि, तब तक कच्चे माल की आवक बंद हो चुकी होगी।
शहर के पेठा कारोबारी अमित अग्रवाल सामान्य दिनों में हर रोज डेढ़ से दो लाख का पेठा बेचते थे। शहर के करीब एक हजार व्यापारी फ्लेवर्ड पेठा और सूखा पेठा दोनों की यहां से देशभर में सप्लाई करते थे। लॉकडाउन की वजह से लाखों रुपए का फ्लेवर्ड पेठा बर्बाद हो गया। कुम्हड़ा जिससे पेठा बनता है, वह भी सड़ गया। ताजमहल बंद होने से लाखों देसी-विदेशी सैलानियों का आना भी बंद है। भविष्य में पर्यटन की उम्मीद धूमिल है। ऐसे में यहां के एक हजार से अधिक बड़े कारोबारियों को आगे के कारोबार की चिंता सता रही है।
20 करोड़ प्रतिदिन का नुकसान
आगरा में करीब 1000 बड़े पेठा करोबारी हैं। यह एक दिन में करीब दो लाख की बिक्री करते हैं। यानी एक व्यापारी 50 से 60 लाख का माल बेचता था। इस हिसाब से 15 से 20 करोड़ रुपये रोजाना का नुकसान हो रहा है।
सैकड़ों हो गए बेरोजगार
हर बड़े पेठा कारोबारी ने अपनी फैक्ट्री लगा रखी है। जिसमें 15 से 20 लोग काम करते हैं। शहर में 25 से 30 बड़े पेठा आढ़ती हैं। इनके यहां भी सप्लाई और पैकिंग मिलाकर कम से कम 50 वर्कर काम करते हैं। सभी का कारोबार ठप है। और वर्कर बेकार बैठे हैं।
विदेशों के आर्डर कैंसिल
पेठा केवल आगरा ही शान नहीं है। यहां से करोड़ों रुपए का पेठा विदेश में निर्यात होता है। लेकिन निर्यात के सभी आर्डर कैंसिल हो चुके हैं। घरेलू मांग भी शून्य है। ऐसे में पेठा कारोबारियों के समक्ष भूखे मरने की नौबत आ चुकी है। अब जबकि लॉकडाउन खत्म होगा तब सबसे बड़ी समस्या कच्चे माल की भी आएगी। क्योंकि कुम्हड़ा यानी सीताफल जिससे यह मिठाई तैयार होती है उसकी आवक की यह पीक सीजन है। इसका उपयोग न होने से यह खेतों में ही सड़ रहा है।
Published on:
04 May 2020 01:45 pm
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