
child labour
अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम निषेध दिवस 2019 को मनाया जाता है। इस दिवस का उद्देश्य महज बाल श्रम का खात्मा करना है। श्रमिक संगठन और बाल अधिकारों के लिये कार्य करने वाले लोगों के साथ ही सरकारें भी बाल श्रम को समाप्त करने के लिये बड़े-बड़े वादे करती हैं, लेकिन जमीन पर नजर कुछ नहीं आता है। भूख की इस जंग में बाल श्रम के दलदल में फंसे मासूमों का बचपन दम तोड़ रहा है। पढ़िये पत्रिका की ये विशेष खबर...
शहर के आंकड़े भी चौंकाने वाले
उत्तर प्रदेश ग्रामीण मजदूर संगठन के अध्यक्ष तुलाराम शर्मा ने बताया कि यदि सिर्फ शहर की बात करें, तो करीब 15 हजार के आस पास ऐसे बच्चों की संख्या है, जो विभिन्न कार्यों में लगे हुये हैं, इन आंकड़ों में वे बच्चे भी शामिल हैं, जो चौराहों और प्रमुख बाजारों में भीख मांगते हुये देखे जा सकते हैं। वहीं पूरे जनपद की बात करें, तो ऐसे बच्चों की संख्या का आंकड़ा लाख के आंकड़े को पार कर जाएगी। ग्रामीण क्षेत्रों में पत्थर खनान, खेत खलिहान में बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे कार्य करते हुये देखे जा सकते हैं।
जागरुकता की कमी
तुलाराम शर्मा ने बताया कि बच्चे आज भी कार्य में संलिप्त हैं और उनका बचपन दम तोड़ रहा है। इसका बड़ा कारण जागरुक न होना भी है। गरीबी के चलते ऐसे कई परिजन हैं, जो सोचते हैं कि अपना पेट भरने लायक तो ये मासूम हाथ कमा ही सकते हैं। ऐसे परिजनों को ये समझाने की जरूरत है, कि यदि बच्चे शिक्षित होंगे, तो कुछ न कुछ रोजगार मिल ही जाएगा। चाइल्ड लेबर तो तभी समाप्त होगा जब, छोटो को शिक्षा, बड़ो को रोजगार के नारे पर कार्य किया जाये।
चल रही तमाम योजनाएं
बाल श्रम रोकने के लिये सरकार की तमाम योजनाएं चल रही हैं। जिनमें प्रमुख रूप से नेशनल बाल श्रम परियोजना है। इसके अलावा बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये तमाम सरकारी और गैर सरकारी संगठन कार्य कर रहे हैं। सरकार द्वारा बाल श्रम रोकने के लिये तमाम योजनाएं तो बनाई जाती हैं, लेकिन इनका क्रियान्वयन नहीं हो पाता है, यही कारण है कि बाल श्रम का ये श्राप लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
ये है सजा का प्रावधान
बाल एवं किशोर श्रम प्रतिषेध एवं विनियमन अधिनियम 1986 संशोधित अधिनियम 2016 के अन्तर्गत 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों का नियोजन पूर्णतः निषिद्व किया गया है तथा 14 से 18 वर्ष तक की आयु वाले बच्चे भी बाल एवं किशोर श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम 1986 संशोधित अधिनियम 2016 के अन्तर्गत आते हैं। इस अधिनियम के अन्तर्गत बाल श्रमिकों का नियोजन करने वाले दोषी सेवायोजकों से सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार 20 हजार रूपये प्रति बाल श्रमिक की दर से वसूली किये जाने का प्रावधान है। इसक साथ ही 6 माह से 2 वर्ष तक कारावास से दण्डित करने का प्रावधान है।
Published on:
11 Jun 2019 05:35 pm
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