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राजकोट में आकाशवाणी केंद्र को आज 67 साल पूरे

4 जनवरी 1955 को हुई थी स्थापना

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राजकोट में आकाशवाणी केंद्र को आज 67 साल पूरे

राजकोट में आकाशवाणी केंद्र को आज 67 साल पूरे

भास्कर वैद्य

प्रभास पाटण. सौराष्ट्र के बड़े शहर राजकोट में आकाशवाणी केंद्र की स्थापना के 67 साल बुधवार को पूरे होंगे। 4 जनवरी 1955 को इस केंद्र की स्थापना एक पुराने मकान में की गई थी। यह केंद्र लोक संस्कृति एवं वर्तमान में रस, रूचि, संस्कृति के समन्वय को जोडऩे वाला केंद्र है जिसकी यादें काठियावाड़ के घर-घर में सुरक्षित हैं।
रेडियो मिरची, एफएम, टीवी के वर्तमान युग में आकाशवाणी के श्रोताओं की संख्या मेें कमी हो सकती है लेकिन राजकोट के आकाशवाणी केंद्र से जुड़े श्रोता पूर्व व वर्तमान इतिहास के स्वर्ण पृष्ठ के समान हैं। इस केंद्र की स्थापना का इतिहास भी रसप्रद है।
दिल्ली में राष्ट्रपति भवन में 1953 में देशभर के कलाकारों का एक कार्यक्रम आयोजित हुआ था। उसमें सौराष्ट्र के दुला भाया काग को भी आमंत्रित किया था। उस कार्यक्रम में राजकोट के उछरंग ढेबर भी मौजूद थे। उस कार्यक्रम में दुला भाया काग ने अपनी आवाज से तत्कालीन राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित आमंत्रितों को प्रभावित किया था।
उस समय ढेबर ने राष्ट्रपति को बताया था कि सौराष्ट्र में ऐसी कई प्रतिभाएं और लोक संस्कृति है, इसलिए राजकोट में रेडियो स्टेशन आरंभ किया जाना चाहिए। अन्य आमंत्रित लोगों ने भी इस बात पर सहमति जताई थी। उसके बाद 4 जनवरी 1955 को शाम 6 बजे से ‘गाम नो चोरो’ कार्यक्रम से राजकोट में आकाशवाणी केंद्र की प्रसारण यात्रा आरंभ हुई थी। उस समय लोग अपनी घड़ी भी रेडियो के समय के अनुरूप सेट करते थे।

रेडियो के लिए थी लाइसेंस प्रथा

उस समय रेडियो के लिए लाइसेंस प्रथा थी। घर में रेडियो रखने वाले लोग धनाढ्य माने जाते थे। उस समय रेडियो बड़े डिब्बे के समान होते थे, उन्हें पीछे से धक्का देना पड़ता था। बाद में ट्रांजिस्टर भी बाजार में जारी किए गए।

पोस्टकार्ड से देते थे कार्यक्रम प्रसारण की सूचना

उस समय जिन व्यक्तियों के कार्यक्रम रेडियो पर प्रसारित होता था, वह पोस्टकार्ड से रिश्तेदारों को कार्यक्रम प्रसारण तिथि, समय की सूचना देकर कार्यक्रम सुनने के लिए अपील करते थे।
उस समय रेडियो पर भरत याज्ञिक का जय भारती, किरीट नकुम का मधुवन, हेमु गढवी का कवला सासरिया आदि कार्यक्रम काफी लोकप्रिय हुए। सोमनाथ महादेव की आरती, सासण के जंगल में शेर की दहाड़, नवरात्र के गरबे और विवाह के गीत के प्रसारण भी काफी लोकप्रिय थे। चक्रवात, तूफान, भूकंप व आपदा ुके समय गुम होने वाले लोगों के बारे में दिन-रात सूचना प्रसारित कर आकाशवाणी के राजकोट केंद्र ने लोगों से जीवंत संबंध बनाए रखा। इन कार्यक्रमों के प्रसारण के कारण अनेक पुरस्कार भी प्राप्त किए।