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RSS : ‘स्व’ आधारित जीवनदृष्टि पुन: स्थापित करने को हों कटिबद्ध : होसबाले

अहमदाबाद में आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के अवसर पर स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के निमित्त बयान में कहा

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RSS : ‘स्व’ आधारित जीवनदृष्टि पुन: स्थापित करने को हों कटिबद्ध : होसबाले

दत्तात्रेय होसबाले।

अहमदाबाद. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने कहा कि उन्होंने कहा कि भारतीय समाज को एक राष्ट्र के रूप में सूत्रबद्ध रखने और राष्ट्र को भविष्य के संकटों से सुरक्षित रखने के लिए ‘स्व’ पर आधारित जीवनदृष्टि को दृढ़ संकल्प के साथ पुन: स्थापित करने की दिशा में कटिबद्ध होने के अवसर का लाभ लेना चाहिए।
आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के अवसर पर स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के निमित्त उन्होंने यहां जारी एक बयान में कहा कि भारत स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है। स्वतंत्रता आंदोलन सार्वदेशिक और सर्वसमावेशी था। स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद आदि आध्यात्मिक नेतृत्व ने देश के जन और जननायकों को ब्रिटिश अधिसत्ता के विरुद्ध सुदीर्घ प्रतिरोध के लिए प्रेरित किया।
महिलाओं, जनजातीय समाज तथा कला, संस्कृति, साहित्य, विज्ञान सहित राष्ट्रजीवन के सभी आयामों में स्वाधीनता की चेतना जागृत हुई। लाल-बाल-पाल, महात्मा गांधी, वीर सावरकर, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, वेळू नाचियार, रानी गाईदिन्ल्यू आदि ज्ञात-अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों ने आत्म-सम्मान और राष्ट्र-भाव की भावना को अधिक प्रबल किया। डॉ. हेडगेवार के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने भी अपनी भूमिका का निर्वहन किया। स्वाधीनता की 75वीं वर्षगांठ शताब्दियों तक चले ऐतिहासिक स्वतंत्रता संग्राम का प्रतिफल और हमारे वीर सैनिकों के त्याग एवं समर्पण का उज्जवल प्रतीक है।
स्वतंत्रता आन्दोलन केवल राजनीतिक नहीं, अपितु राष्ट्रजीवन के सभी आयामों व समाज के सभी वर्गों के सहभाग से हुआ सामाजिक-सांस्कृतिक आन्दोलन था। स्वतंत्रता के इस आन्दोलन को राष्ट्र के मूल अधिष्ठान यानि राष्ट्रीय ‘स्व’ को उजागर करने के निरंतर प्रयास के रूप में देखना प्रासंगिक होगा।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों ने भारतीयों के एकत्व की मूल भावना पर आघात करके मातृभूमि के साथ उनके भावनात्मक एवं आध्यात्मिक संबंधों को दुर्बल करने का षड्यंत्र किया। हमारी स्वदेशी अर्थव्यवस्था, राजनैतिक व्यवस्था, आस्था-विश्वास और शिक्षा प्रणाली पर प्रहार कर स्व-आधारित तंत्र को सदा के लिए नष्ट करने का भी प्रयास किया।
भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में कतिपय कारणों से ‘स्व’ की प्रेरणा क्रमश: क्षीण होते जाने से देश को विभाजन की विभीषिका झेलनी पडी। स्वतन्त्रता के पश्चात स्व की भावना को राष्ट्र-जीवन के सभी क्षेत्रों में अभिव्यक्त करने का अवसर कितना साध्य हो पाया, इसका आकलन करने का भी यह उचित समय है।
उन्होंने कहा कि अमृत महोत्सव के अवसर पर आवश्यक है कि छात्रों और युवाओं को जोड़ते हुए, भारत-केन्द्रित शिक्षा नीति का प्रभावी क्रियान्वयन करते हुए भारत को एक ज्ञान सम्पन्न समाज के रूप में विकसित और स्थापित किया जाए । भारत को विश्वगुरु की भूमिका निभाने के लिए समर्थ बनाया जाए। स्वाधीनता के अमृत महोत्सव के अवसर पर हमें अपने ‘स्व’ के पुनरानुसंधान का संकल्प लेना चाहिए।