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अहमदाबाद

अब कच्छ के रण में भी जड़ें जमाएंगे हिमालयन गोल्ड मशरूम

Gujarat, Kutch, Himalayan gold mushroom, GUIDE, Lab, Farmer training, gujarat institute of desert ecology -ठंडे इलाके में पैदा होने वाली इस मशरूम को गरम क्षेत्र कच्छ में उगाने में मिली सफलता, डेढ़ लाख रुपए किलो की कीमत पर बिकती है यह, औधषीय गुणों से है भरपूर, गाइड के वैज्ञानिकों ने ३ माह में 35 कांच की बरनी में उगाया
 

अहमदाबादJun 03, 2021 / 09:55 pm

nagendra singh rathore

अब कच्छ के रण में भी जड़ें जमाएंगे हिमालयन गोल्ड मशरूम

अब कच्छ के रण में भी जड़ें जमाएंगे हिमालयन गोल्ड मशरूम

नगेन्द्र सिंह

अहमदाबाद. ठंडे इलाकों में पैदा होने वाली हिमालयन गोल्ड मशरूम की खेती अब गुजरात के गरम एवं रण क्षेत्र कच्छ में होने की उम्मीद जगी है। औषधीय गुणों से भरपूर यह मशरूम दुनिया की सबसे महंगी मशरूम है। बाजार में डेढ़ लाख से लेकर 20 लाख रुपए किलो कीमत पर बिकती है। वैसे कच्छ के किसान स्ट्रोबेरी और ड्रेगनफ्रूट की खेती भी कर रहे हैं।
कच्छ जिला मुख्यालय भुज में स्थित गुजरात इंस्टीट्यूट ऑफ डेजर्ट इकोलॉजी (गाइड) के वैज्ञानिकों ने काफी शोध और तीन महीने की मेहनत के बाद इसे अपनी लैब में उगाने में सफलता पाई है। कांच की ३५ बरनी में इसे उगाया गया है। इसके लिए वैज्ञानिकों ने जिस जगह इन बरनी को रखा था वहां का तापमान 17 डिग्री सेल्सियस तक बरकरार रखा ताकि मशरूम को उगने के लिए उसके अनुकूल वातावरण मिले। आखिरकार असंभव सा लगने वाला यह प्रयोग गाइड के निदेशक डॉ वी विजयकुमार के मार्गदर्शन में वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ के कार्तिनयन और जी जयंती ने संभव कर दिखाया। अब बारी है इसकी खेती की, जिसकी कोशिश में यह जुटे हैं।
हिमालयन गोल्ड के नाम से मशहूर मशरूम की इस प्रजाति का नाम कॉर्डिसेप्स मिलिटरिस है। यह औषधीय गुणों से भरपूर है। यह एंटी बैक्टेरियल, एंटी-फंगल एवं एंटी कैंसर के गुणधर्म वाली है। यह विटामिन बी-1 और बी-12 तथा अन्य प्रोटीन से भरपूर है। मलेरिया और डेंगू के उपचार में कारगर है। कोरोना के समय में इसके इम्युनिटी सिस्टम को मजबूत करने की भी बात सामने आ रही है,लेकिन परीक्षण नहीं हुए हैं।
उत्तराखंड के धारचुला और गढ़वाल के चमोली में मिलता है
नेशनल बॉटोनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआई) लखनऊ के वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय में यह कैटरपिलर फंगस में उगता है। तिब्बती और नेपाली में इसे यारशागुंबा कहते हैं। यह हैपिलस फैब्रिकस नामक कीड़े के ऊपर उगता है। उत्तराखंड में कुमाऊं के धारचुला और गढ़वाल के चमोली में यह पाया जाता है। बर्फ में कीड़ा जड़ी कैटर पिलर्स की इल्लियों को मारकर उसी पर पनपता है। हैपिलस फैब्रिकस कीड़े की कमी से यह मशरूम कम उग पाता है।
३५०० की ऊंचाई पर मिलता है
भारतीय वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून यानी एफआरआई के फॉरेस्ट पैथोलाजी विभाग के प्रमुख डॉ निर्मल सुधीर का कहना है 3500 मीटर की ऊंचाई पर जहां के बाद पेड़ उगने बंद हो जाते हैं वहां मई से जुलाई में जब बर्फ पिघलती है तब इसके पनपने का चक्र शुरू होता है। यह मशरूम नरम घास के अंदर छुपा होता है और बड़ी कठिनाई से ही पहचाना जा सकता है।
प्राकृतिक स्टेरॉयड है, खिलाड़ी भी करते हैं सेेवन
यह मशरूम प्रोस्टेट कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर और नपुंसकता रोकने में कारगर है। यौन शक्ति बढ़ाने में यह इतना असरदार है कि इसे प्राकृतिक स्टेरॉयड भी कहते हैं। इसमें प्रोटीन, पेपटाइड्स, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2 और बी-12 जैसे पोषक तत्व बहुतायत में पाए जाते हैं। ये तत्काल रूप में ताकत देते हैं और खिलाडिय़ों के डोपिंग टेस्ट में ये पकड़ा नहीं जाता। इसीलिए इसका इस्तेमाल खिलाड़ी भी करते हैं।
अब कच्छ के रण में भी जड़ें जमाएंगे हिमालयन गोल्ड मशरूम
ब्रेस्ट कैंसर में कारगर होने के भी प्रमाण
गाइड के निदेशक डॉ वी विजयकुमार ने बताया कि यूं तो हिमालयन गोल्ड मशरूम कई औषधिय गुणों से भरपूर है। लेकिन इसके ब्रेस्ट कैंसर में भी कारगर होने के भी प्रमाण मिले हैं। निरमा यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर इस संदर्भ में गाइड ने जरूरी प्रयोग और परीक्षण किए हैं। प्राणियों पर किए गए परीक्षण में सामने आया कि यह ब्रेस्ट कैंसर को खत्म करने तक में कारगर साबित हो सकती है। जिसे देख अब मानवीय परीक्षण की मंजूरी मांगी है।
किसानों को सिखा रहे हैं इसकी खेती के गुर
हिमाचल जैसे ठंडे इलाके में होने वाली इस मशरूम कॉर्डिसेप्स मिलिटरिस को भुज जैसे गरम क्षेत्र (तापमान ४०-४४) में उगाना असंभव सा था, लेकिन संस्थान में इससे पहले भी मशरूम की कई प्रजातियों को उगाया गया है। जिससे उम्मीद के साथ काफी शोध करते हुए इसे उगाना शुरू किया और आखिरकार इसमें सफलता मिली। असंभव सी बात टीम ने संभव कर दिखाई। अब किसानों को मशरूम की इस कीमती प्रजाति की खेती के लिए भी गुर सिखाए जा रहे हैं। ताकि वे इसकी पैदावार करके पैसे कमा सकें। इसे घर में भी उगा सकते हैं।
-डॉ. वी विजयकुमार, निदेशक, गाइड
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