नेशनल बॉटोनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआई) लखनऊ के वैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय में यह कैटरपिलर फंगस में उगता है। तिब्बती और नेपाली में इसे यारशागुंबा कहते हैं। यह हैपिलस फैब्रिकस नामक कीड़े के ऊपर उगता है। उत्तराखंड में कुमाऊं के धारचुला और गढ़वाल के चमोली में यह पाया जाता है। बर्फ में कीड़ा जड़ी कैटर पिलर्स की इल्लियों को मारकर उसी पर पनपता है। हैपिलस फैब्रिकस कीड़े की कमी से यह मशरूम कम उग पाता है।
भारतीय वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून यानी एफआरआई के फॉरेस्ट पैथोलाजी विभाग के प्रमुख डॉ निर्मल सुधीर का कहना है 3500 मीटर की ऊंचाई पर जहां के बाद पेड़ उगने बंद हो जाते हैं वहां मई से जुलाई में जब बर्फ पिघलती है तब इसके पनपने का चक्र शुरू होता है। यह मशरूम नरम घास के अंदर छुपा होता है और बड़ी कठिनाई से ही पहचाना जा सकता है।
यह मशरूम प्रोस्टेट कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर और नपुंसकता रोकने में कारगर है। यौन शक्ति बढ़ाने में यह इतना असरदार है कि इसे प्राकृतिक स्टेरॉयड भी कहते हैं। इसमें प्रोटीन, पेपटाइड्स, अमीनो एसिड, विटामिन बी-1, बी-2 और बी-12 जैसे पोषक तत्व बहुतायत में पाए जाते हैं। ये तत्काल रूप में ताकत देते हैं और खिलाडिय़ों के डोपिंग टेस्ट में ये पकड़ा नहीं जाता। इसीलिए इसका इस्तेमाल खिलाड़ी भी करते हैं।
गाइड के निदेशक डॉ वी विजयकुमार ने बताया कि यूं तो हिमालयन गोल्ड मशरूम कई औषधिय गुणों से भरपूर है। लेकिन इसके ब्रेस्ट कैंसर में भी कारगर होने के भी प्रमाण मिले हैं। निरमा यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर इस संदर्भ में गाइड ने जरूरी प्रयोग और परीक्षण किए हैं। प्राणियों पर किए गए परीक्षण में सामने आया कि यह ब्रेस्ट कैंसर को खत्म करने तक में कारगर साबित हो सकती है। जिसे देख अब मानवीय परीक्षण की मंजूरी मांगी है।
हिमाचल जैसे ठंडे इलाके में होने वाली इस मशरूम कॉर्डिसेप्स मिलिटरिस को भुज जैसे गरम क्षेत्र (तापमान ४०-४४) में उगाना असंभव सा था, लेकिन संस्थान में इससे पहले भी मशरूम की कई प्रजातियों को उगाया गया है। जिससे उम्मीद के साथ काफी शोध करते हुए इसे उगाना शुरू किया और आखिरकार इसमें सफलता मिली। असंभव सी बात टीम ने संभव कर दिखाई। अब किसानों को मशरूम की इस कीमती प्रजाति की खेती के लिए भी गुर सिखाए जा रहे हैं। ताकि वे इसकी पैदावार करके पैसे कमा सकें। इसे घर में भी उगा सकते हैं।
-डॉ. वी विजयकुमार, निदेशक, गाइड