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चोरी रूपी पाप से बचने का प्रयास करे मानव : आचार्य महाश्रमण

उंझा से 13 किमी का विहार कर पहुंचे देणाप मेहसाणा. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें आचार्य महाश्रमण शनिवार को उंझा से 13 किमी का विहार कर देणाप में स्थित सेठ एम.सी. विद्या मंदिर पहुंचे।प्रवचन में आचार्य ने कहा कि मानव को चोरी रूपी पाप से बचने का प्रयास करना चाहिए। नहीं दी गई वस्तु […]

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उंझा से 13 किमी का विहार कर पहुंचे देणाप

मेहसाणा. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें आचार्य महाश्रमण शनिवार को उंझा से 13 किमी का विहार कर देणाप में स्थित सेठ एम.सी. विद्या मंदिर पहुंचे।
प्रवचन में आचार्य ने कहा कि मानव को चोरी रूपी पाप से बचने का प्रयास करना चाहिए। नहीं दी गई वस्तु को उठा लेना चोरी कहलाती है। चोरी पाप की प्रवृत्ति है। श्रेष्ठ आदमी के लिए पराया धन धूल के समान होता है। आदमी कई बार मोहवश अथवा कभी अभाववश चोरी भी कर सकता है, लेकिन आदमी का इतना मजबूत संकल्प हो कि कुछ भी हो जाए, कोई भी परिस्थिति आ जाए, लेकिन चोरी नहीं करना। तो आदमी चोरी रूपी पाप कर्मों से बच सकता है।
चोरी करने से आत्मा का नुकन होता है। जिस पर आपका अधिकार नहीं है और उसे किसी प्रकार अपने पास रखना भी चोरी ही है। जीवन में नैतिकता व ईमानदारी का प्रभाव होता है तो आदमी का जीवन पाप से बच भी सकता है। ईमानदारी तो सभी के लिए पालनीय होनी चाहिए। कोई नास्तिक भी हो तो उसे भी ईमानदारी का पालन करना चाहिए। आदमी को अपने जीवन में शुद्धता बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए।