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साधना का महत्वपूर्ण अंग है ध्यान : आचार्य महाश्रमण

महीसागर के सालैया से 7 किमी का विहार कर खेड़ा के वीरपुर पहुंचे आणंद. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें आचार्य महाश्रमण शनिवार सुबह महीसागर के सालैया से 7 किमी का विहार कर खेड़ा के वीरपुर पहुंचे। लोगों ने वीरपुर में आचार्य का स्वागत किया। स्वागत जुलूस के साथ आचार्य वीरपुर में स्थित देसाई सी.एम. […]

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महीसागर के सालैया से 7 किमी का विहार कर खेड़ा के वीरपुर पहुंचे

आणंद. जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें आचार्य महाश्रमण शनिवार सुबह महीसागर के सालैया से 7 किमी का विहार कर खेड़ा के वीरपुर पहुंचे। लोगों ने वीरपुर में आचार्य का स्वागत किया। स्वागत जुलूस के साथ आचार्य वीरपुर में स्थित देसाई सी.एम. हाईस्कूल पहुंचे।
स्कूल परिसर में प्रवचन में आचार्य ने कहा कि दो शब्द - स्वाध्याय और सध्यान बताए गए हैं। स्वाध्याय और ध्यान, साधना के अंग हैं। स्वाध्याय से ज्ञान वृद्धि हो सकती है और ध्यान से एकाग्रता और स्थिरता की स्थिति का विकास हो सकता है। ज्ञान और ध्यान दोनों ही साधना के अंग हैं। ध्यान काफी प्रचलित शब्द हो गया है। दुनिया में ध्यान की अनेक पद्धतियां चल रही हैं। तपस्या के बारह भेदों में 11वां भेद ध्यान है। ध्यान वैसे अशुभ भी हो सकता है और शुभ ध्यान भी हो सकता है। शुभ ध्यान धर्म की साधना का एक अंग होता है। साधना का महत्वपूर्ण अंग ध्यान है।
आचार्य ने कहा कि वाणी से अवाक् रहें और मन से सोचना, स्मृति करना आदि भी ध्यान ही कहा जाता है। यहां तक कि चलने में ध्यान से चलने की बात कही जाती है। मन, वचन और काय की प्रवृत्तियों पर रोक लगा देना आदि भी अपने आप में ध्यान हो जाता है। ध्यान पवित्र हो तो बहुत अच्छी बात हो सकती है। आदमी ध्यान का प्रयोग करे तो यह भी साधना का अच्छा उपक्रम बन सकता है।