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Narendra Modi, Ashok Gehlot gestures: आशा जगाती तस्वीर

-अत्यंत व्यस्त PM Narendra Modi अपनी मां Hiraba के साथ अपने जन्मदिवस पर घर में भोजन -राजस्थान के मुख्यमंत्री Ashok Gehlot राखी के अवसर पर हर बार अपनी बड़ी बहन विमला जी के घर जाते हैं जोधपुर

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Narendra Modi, Ashok Gehlot gestures: आशा जगाती तस्वीर

Narendra Modi, Ashok Gehlot gestures: आशा जगाती तस्वीर

अहमदाबाद.


सुखद.......इस में कोई संदेह नहीं कि आजकल दुनियादारी की भागदौड़ में किसी के पास बुजुर्ग मां के लिए समय नहीं होता है। यह दुखद तो है लेकिन आजकल परिवार के सभी जनों का रोजगार, कारोबार, शिक्षा, वैचारिक भिन्नता आदि के चलते एक जगह, एक घर या एक ही शहर में रहना थोड़ा मुश्किल हो चला है।
ऐसे में यह तस्वीर बहुत सुन्दर लग रही है जहां अत्यंत व्यस्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी मां हीराबा के साथ अपने जन्मदिवस के मौके पर रायसण गांव स्थित (गुजरात) भाई के घर में भोजन कर रहे हैं। उनके आलोचक इसकी (भी) निंदा कर सकते हैं और करेंगे भी पर कोई बात नहीं जिसका जो काम उसे वो करने देना चाहिए।
बड़ी बहन भी मां जैसी ही होती है।

राजस्थान कैडर से करीब 11 वर्ष पहले रिटायर्ड हुए एक बेहद प्रभावशाली आईएएस अफसर (जो अब भी खासे प्रभावशाली हैं) उनके बारे में एक बात बहुत मशहूर है। वे बहुत व्यस्त रहने के बावजूद रात को खाना अपनी मां के साथ ही खाते रहे हैं। ऐसी मिसाल बहुत कम ही देखने को मिलती है। इसी कैडर में एक युवा आईएएस भी हैं जिन्होने बचपन में खोई अपनी बहन की स्मृति में ऐसी कविता लिखी है कि पढ़कर आंसू आए बिना नहीं रहते।
दूसरी ओर इसी सप्ताह की घटना है अलवर की। एक सम्पन्न परिवार की बुजुर्ग महिला की मौत हो गई और उसके बेटों, पोतों को 4 दिन बाद पता चला। कुछ समय पहले तक फुटपाथ पर भीख मांगने वाली राणू मंडल की भी यही कहानी है। अब कामयाब होने पर उनकी संतान सामने आई है। और भी ऐसी घटनाएं अकसर सामने आती रहती हैं।
प्रधानमन्त्री मोदी और मुख्यमंत्री गहलोत के चाहने वालों की संख्या करोड़ों में है। ऐसे में यह तस्वीर अगर भागती दौड़ती जिन्दगी में कुछ युवाओं को प्रेरणा दे सकी और उन्होने कभी कभी ही सही मां, बहन, भाई, पिता या किसी अन्य बुजुर्ग परिजन के साथ समय बिताया, खाना खाया तो मैं समझता हूं इससे बेहतर और क्या होना चाहिए।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राखी के अवसर पर हर बार अपनी बड़ी बहन विमला जी के घर जोधपुर जाते हैं। इस बार राखी पर वे व्यस्त थे तो जा नहीं सके लेकिन करीब 12-13 दिन बाद ज्योहि फुर्सत मिली तो जोधपुर गए और बहन से राखी बंधवाई। जबकि कई बार मैं लोगों को राखी जैसे त्योहारों की हंसी उडाते देखता हूं। ऐसे लोग अपने जीवन में स्त्रियों के प्रति कैसी सोच रखते होंगे ताज्जुब नहीं है।