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विश्व के पहले नैनो यूरिया संयंत्र का लोकार्पण, देश में बन रहे 8 और संयंत्र

PM Narendra Modi , inaugurated, India's first nano urea plant, Gandhinagar

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देश के पहले नैनो यूरिया संयंत्र का लोकार्पण, बन रहे 8 और संयंत्र

देश के पहले नैनो यूरिया संयंत्र का लोकार्पण, बन रहे 8 और संयंत्र

PM Modi inaugurated India's first nano urea plant

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को इफको की ओर से कलोल में निर्मित विश्व के पहले नैनो संयंत्र को राष्ट्र को समर्पित किया। महात्मा मंदिर में शनिवार को सहकार से समृद्धि की ओर गोष्ठी के शुभारंभ के अवसर पर उन्होंने कहा कि कलोल के इस आधुनिक प्लांट की उत्पादन क्षमता डेढ़ लाख बोतल की है। आने वाले समय में ऐसे 8 और प्लांट देश में बन रहे हैं। इससे यूरिया पर विदेशी निर्भरता कम होगी और देश का पैसा भी बचेगा।
प्रधानमंत्री के मुताबिक देश के पहले नैनो यूरिया प्लांट का उद्घाटन करते हुए उन्हें विशेष आनंद की अनुभूति हो रही है। यूरिया की एक बोरी की ताकत अब एक बोतल में समा गई है। इससे किसानों के परिवहन का खर्च कम हो जाएगा। यह छोटे किसानों के लिए सबसे बड़ा संबल है।
उन्हें उम्मीद जताई कि भविष्य में अन्य नैनो खाद भी किसानों को मिल सकते हैं जिस पर वैज्ञानिक काम कर रहे है। नैनो तकनीक के मार्फत आत्मनिर्भरता की तरफ सराहनीय कदम है।

खाद के मामले में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता

मोदी ने कहा कि खाद के मामले में भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है, लेकिन उत्पादन के मामले में तीसरे नंबर पर हैं। सात वर्ष पहले तक ज्यादातर यूरिया खेत में जाने के बजाय काालाबाजारी में चला जाता था। किसान लाठियां खाने को मजबूर हो जाता था। देश की यूरिया की फैक्ट्रियां नई तकनीक के अभाव में बंद हो गई।

बंद पड़े कारखानों का चालू किया गया

प्रधानमंत्री के मुताबिक उनकी सरकार के केन्द्र में आने के बाद यूरिया की शत-प्रतिशत नीम कोटिंग का काम किया गया। किसानों को पर्याप्त यूरिया मिलना सुनिश्चित हुआ। बिहार, यूपी, ओडिशा, झारखंड, तेलंगाणा में बंद पड़े कारखानों को चालू करने का काम शुरु किया। यूपी व तेलंगाणा में काम आरंभ हो गया और अन्य जगहों पर भी काम आरंभ हो जाएगा।

किसानों पर नहीं होने दिया जाएगा असर

उन्होंने कहा कि खाद के मामले में भारत दशकों से विदेशों पर निर्भर है। देश अपनी जरूरत का लगभग चौथाई हिस्सा आयात करता है। फास्फेट व पोटाश के मामलों में यह स्थिति शत प्रतिशत है। प्रधानमंत्री के मुताबिक कोरोना के चलते इनकी कीमतें बढ़ गईं। इसके बाद युद्ध आ धमका। युद्ध के कारण इसकी कीमतें और बढ़ गईं और उपलब्धता में भी परेशानी आई। फिलहाल अंतरराष्ट्रीय स्थितियां चिंताजनक हैं। हालांकि कठिनाईयों के बावजूद कोशिश यह कि किसानों का इस पर असर नहीं पडऩे दिया जाए।

केन्द्र सरकार वहन करती है बोझ

मोदी के मुताबिक हर मुश्किल के बाद खाद का कोई बड़ा संकट नहीं आने दिया। 50 किलो का एक बैग साढ़े 3 हजार रुपए का पड़ता है जिसे सिर्फ 300 रुपए में दिया जाता है। अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उछाल आने के बाद डीएपी के 50 किलो के बैग पर 2500 रुपए खुद सरकार बोझ वहन करती है। 12 महीने के भीतर डीएपी के हर बैग पर 5 गुणा भार केन्द्र सरकार ने अपने उपर लिया है।
उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष एक लाख 5 हजार करोड़ रुपए की फर्टिलाइजर में केन्द्र सरकार की सब्सिडी दी। इस साल यह 2 लाख करोड़ से ज्यादा होने वाली है। मोदी के मुताबिक पहले की सरकारों ने खाद को लेकर सिर्फ तात्कालिक समस्या का समाधान किया गया लेकिन बीते 8 सालों में तत्कालिक व दीर्घकालिक उपाय भी किए गए।