28 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

राजकोट : शिल्प कला की उत्कृष्ट विरासत है बौद्ध गुफा

खंभालिडा बौद्ध गुफा जर्जर हालत में

2 min read
Google source verification
Khambhalida Buddhist Cave

राजकोट : शिल्प कला की उत्कृष्ट विरासत है बौद्ध गुफा

राजकोट. जिले की गोंडल तहसील में खंभालिडा गांव से करीब आधा किलोमीटर दूर स्थित बौद्ध गुफा शिल्प कला की उत्कृष्ट विरासत है। राजकोट से ६६ किलोमीटर दूर स्थित यह गुफा तीसरी सदी के अंत में या चौथी सदी के प्रारंभ में अस्तित्व में आने का उल्लेख है। करीब १८०० वर्ष प्राचीन इस गुफा में पत्थर पर अद्भुत नक्काशी देखने को मिलती है। बौद्ध गुफाओं में चैत्यगृह स्थित है। जिसके प्रवेशद्वार पर एक ओर बोधिसत्व अवलोकितेश्वर पद्मपाणि व दूसरी ओर बोधिसत्व अवलोकितेश्वर वज्रपाणि की पूरे कद की शिल्प हैं।
गुफा का प्रवेशद्वार चट्टान से ढका है। गुफा समूह में से द्वितीय गुफा के प्रवेशद्वार की नक्काशी गुजरात के बौद्ध शिल्प विरासत में उल्लेखनीय है। गुफा समूह की दक्षिण की गुफा व पूर्वाभिमुख तीन गुफाओं में से प्रथम एवं तीसरी गुफा विहार के लिए हैं, जबकि मध्य की गुफा चैत्य गृह है। विहार की गुफाएं अंदर से सामान्य ैं, जबकि चैत्य गृहवाली गुफा के पीछे के भाग में स्तूप है।
गुफाओं के प्रवेश के ऊपरी हिस्से विभिन्न शिल्पों से विभूषित हैं। इस गुफा समूह का सबसे महत्वपूर्ण अंग मध्य की चैत्यगृह वाली गुफा के दोनों ओर की गई नक्काशी एवं बौधिसत्वों के दोनों ओर यक्ष-यक्षिणी, वादक-नर्तक के शिल्प, आम्रपर्ण के अंक आदि के कारण उल्लेखनीय है ।


यहां हैं पूरे कद की विशाल शिल्प :
जयाबेन फाउंडेशन-राजकोट के प्रबंध निदेशक परेशभाई पंड्या के अनुसार गुजरात में इस प्रकार की पूरे कद की विशाल शिल्प वाली शायह यह पहली गुफा है। इस गुफा में बौद्धधर्मियों के तपस्या-प्रार्थना स्थल हैं।
गुफा के प्रवेश द्वार पर दोनों किनारों पर बोधिसत्व हैं, जिनके मस्तक पर मुकुट व कान में कुंडल और कमरबंद दर्शाए गए हैं और ऊपर यक्ष-यक्षिणियों की शिल्प हैं। इसके अलावा, उपासक एवं वादकों के शिल्प हैं। अन्य गुफाओं के प्रवेश भाग पर व नीचे के भाग भी सुन्दर शिल्पों एवं फूल-बेल की नक्काशी से अलंकित हैं।


१९५८ में की थी खोज :
इस एतिहासिक बौद्ध गुफा की खोज राजकोट के पुरातत्ववेत्ता पी. पी. पांड्या ने १९५८ में की थी। इसके बाद राज्य सरकार ने इसे सुरक्षित स्मारकों में शामिल किया। फिलहाल यह गुफा पुरातत्व विभाग की देखरेख में है, लेकिन देखरेख व प्रचार के अभाव में इसकी हालत जर्जर हो रही है। करीब १८०० वर्ष प्राचीन यह शिल्प कला आज जर्जर हो रही है।


प्रचार के लिए लगाए हाईवे पर बोर्ड :
अद्भुत शिल्प कला की प्राचीन विरासत को बनाए रखने की आवश्यकता है। यह गुफा भले ही पुरातत्व विभाग की देखरेख में हैं, लेकिन संबंधित समय में देखरेख व प्रचार के अभाव में इसकी हालत जर्जर हो रही है। ऐसे में वर्ष २००३ से इस गुफा के प्रचार के लिए हाई-वे पर साइन बोर्ड, पोस्टर, बैनर आदि लगाकर पर्यटकों को गुफा का मार्ग बताने का प्रयास किया जा रहा है। इस गुफा को मरम्मत की आवश्यकता है।


-परेशभाई पंड्या -प्रबंध निदेशक , जयाबेन फाउंडेशन-राजकोट।