
अहमदाबाद. दिगंबर जैन आचार्य सुनील सागर ने बुधवार को कहा कि धर्म ध्यान के अद्भुत मेले में दुनिया के झमेले से हटकर पूजा करने वाले विरले हैं। कुछ लोग कहते हैं कि कार्य ही पूजा है, समाज सेवा ही पूजा है, कुछ कहते हैं रास खेलना भगवान की पूजा है। सब अलग-अलग मानते हैं।
गुजरात यूनिवर्सिटी परिसर में चातुर्मास प्रवचन के दौरान आचार्य ने कहा कि सबसे पहले निर्णय हो कि पूज्य कौन है? निर्दोष परमात्मा ही पूज्य है। सर्वप्रथम इंद्र भी जिनकी पूजा करते हैं, यक्ष-यक्षिणी देवी-देवता भी जिनकी पूजा करते हैं, जो कण-कण में व्याप्त है, क्षुधा (भूख), प्यास, राग-द्वेष के 18 दोषों से रहित वितरागी प्रभु ही पूजा के योग्य है।
उन्होंने कहा कि समंतभद्र स्वामी कहते हैं कि हे प्रभु आप इसलिए महान नहीं हो कि देवों के विमान आपके पास आते हैं, समवशरण देखकर भी मैं आपको नमन नहीं करता, 64 चंवर फरते हैं, अनेक वैभव को देखकर भी नमन नहीं करता, यह सब तो मायावी के भी देखा जाता है। परंतु हे प्रभु, आपके वचन युक्ति संगत है, विरोधी वचन नहीं है इसलिए आप महान हो, इसलिए आपको नमस्कार करता हूं।
आचार्य ने कहा कि पूज्य के प्रति गुणगान करना भक्ति आराधना करना पूजा कहलाती है। अब तो लोग पूजा में ही सौदा करने लगते हैं। ऐसा होगा तो यह पूजा करेंगे। अगर हमारा काम हो जाएगा, विवाह हो जाएगा, नौकरी मिल जाएगी तो हम पूजा करेंगे, दान करेंगे। मन से, श्रद्धा से पूजा-भक्ति कीजिए, फल अपने-आप मिलता है, सर्व कार्य सिद्ध होते जाते हैं।
उन्होंने कहाकि पूजा का फल क्या है। भक्ति में सौदा नहीं किया जाता है। छोटी-छोटी वस्तु तो पूजा से प्राप्त होती है, पर पूजा करने से सर्वोत्कृष्ट वस्तु मिलती है वह है, स्वयं पूज्य बन जाते हैं। सांसारिक वस्तु तो आसानी से मिलती है। आर्थिक सुख भी प्राप्त होता है। देव की रिद्धि प्राप्त होती है। रिश्तों में, प्रेम में, भक्ति में सौदा नहीं करना चाहिए। भगवान तो हमारे हैं। सौदेबाजी नहीं होना चाहिए। जीवन को अंतर्मुख बनाने का पुरुषार्थ करें।
Published on:
24 Sept 2025 10:58 pm
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