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अध्यात्म हमारे स्व मूल का आधार : मोहन भागवत

भारतीय विचार मंच की ओर से स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर पर सेमिनार

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अध्यात्म हमारे स्व मूल का आधार : मोहन भागवत

अध्यात्म हमारे स्व मूल का आधार : मोहन भागवत

अहमदाबाद. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने अध्यात्म को हमारे स्व मूल का आधार बताते हुए कहा कि बाहरी सुख की एक सीमा होती है, आत्मा के सुख नहीं। पश्चिमी देशों ने भौतिक सुख की सीमा को बाहर तक सीमित कर दिया है लेकिन, भारतीय मनीषियों ने इसे अपने भीतर पाया है। भारतीय होने के नाते हमें स्व की विशेषताओं पर विचार करना चाहिए, खुशी बाहर से नहीं आती।
भारतीय विचार मंच की ओर से गुजरात यूनिवर्सिटी में स्वाधीनता से स्वतंत्रता की ओर विषय पर सेमिनार में उन्होंने यह बात कही। उन्होंने स्वाधीनता व स्वतंत्रता का विश्लेषण करते हुए कहा कि हम एक प्राचीन बौद्धिक परंपरा के हिस्से हैं, हर-एक का विकास उसकी प्रकृति व उसके स्व के आधार पर होता है। उन्होंने कहा कि 15 अगस्त 1947 को हमें स्वाधीनता तो मिली लेकिन, शायद हमें स्व को समझने में बहुत देर हो गई। देश के दो भू-भाग स्वतंत्र हुए लेकिन, धीरे-धीरे स्व को समझने की प्रक्रिया शुरू हुई। डॉ. अम्बेडकर ने भी कहा था कि कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्वतंत्रता अनिवार्य रहेगी।

युद्ध कभी सफल नहीं होते

उन्होंने कहा कि युद्ध कभी सफल नहीं होते क्योंकि उनके परिणाम भुगतने पड़ते हैं, महाभारत के महापुरुष इसके उदाहरण हैं। देश-काल को ध्यान में रखकर अपनी सार्वजनिक व्यवस्था, प्रशासन में भारतीय मूल्यों और चिंतन का अमल करने पर युगानुकूल परिवर्तन आएगा। महात्मा गांधी जी ने भी कहा था कि विश्व के सभी लोगों के पर्याप्त संसाधन हैं लेकिन, मनुष्य के लोभ का अंत नहीं होने के परिणाम भुगतने पड़ते हैं।
भागवत ने कहा कि आज हम तकनीक के समय में जी रहे हैं, ऐसे में केवल तन और मन की निर्मलता ही आंतरिक सुख दे सकती है। धर्म हमें प्रेम, करुणा, सत्य और तपस्या का पाठ पढ़ाता है। कुछ भी हासिल करने के लिए तपस्या करनी पड़ती है। हमने ज्ञान को कभी देशी या विदेशी नहीं कहा। सभी दिशाओं से आने वाले अच्छे विचारों को हम अपनाते हैं, जो देश अपना इतिहास भूल जाते हैं वे जल्द ही नष्ट हो जाते हैं।
भारतीय ज्ञान परंपरा के मनीषियों का उदाहरण देते हुए भागवत ने कहा कि जब कोई देश ज्ञान के मामले में भ्रमित हुए तो उन्होंने भारत के दर्शन की ओर देखा। हमारे प्राचीन ज्ञान ग्रंथ और स्मृतियां चीरकालीन हैं। आज भी विश्व भारत के ज्ञान की ओर देख रहा है, इसलिए हमें स्व को पहचानकर उसके आधार पर आगे बढऩा होगा।
भागवत ने कहा कि सिद्धांत कभी नहीं बदलते, संहिता (कोड) बदल सकती है। हमें भी स्वामी विवेकानंद, गांधीजी, रवींद्रनाथ ठाकुर आदि मनीषियों के गं्रथों का अध्ययन करना चाहिए और उनके माध्यम से धर्मवृत्ति के लिए प्रयास करने चाहिए। इससे सरकारी व्यवस्था में भी परिवर्तन आ रहा है। नए विचार, आयाम को स्थान मिलना स्वागत योग्य है। उन्होंने भारतीय विचार मंच की नई एप्लिकेशन आरंभ की और नई प्रकाशित पुस्तकों का लोकार्पण किया।