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Gujarat Ganpati Mahotsav 5वीं सदी से आधुनिक युग की अनूठी गणपति मूर्तियों का वडोदरा के म्यूजियम में हैं संग्रह

वडोदरा के म्यूजियम में हैं गणपति के कलात्मक स्वरूप

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Gujarat Ganpati Mahotsav 5वीं सदी से आधुनिक युग की अनूठी गणपति मूर्तियों का वडोदरा के म्यूजियम में हैं संग्रह

Gujarat Ganpati Mahotsav 5वीं सदी से आधुनिक युग की अनूठी गणपति मूर्तियों का वडोदरा के म्यूजियम में हैं संग्रह

वडोदरा. भारतवर्ष की प्राचीन शिल्पकला की परिचायक गणपति की विभिन्न कालखंडों की प्रतिमाओं का वडोदरा म्यूजियम एंड पिक्चर गैलेरी में अनूठा संग्रह है। यहां गुप्त काल से लेकर आधुनिक युग की गणपति की मूर्तियां विराजित हैं।

देश के भव्य अतीत की झांखी का दर्शन कराती वडोदरा म्यूजियम एंड पिक्चर गैलेरी के प्रवेश द्वार के पूर्व उद्यान में गणपति बापा की दो प्रतिमाओं का दर्शन होता है। इनमें से एक मुख्य मूर्ति काला रेत पत्थर की बनी है। दक्षिण भारत में से मिली इस प्रतिमा को यहां रखा गया है। मूर्ति आठवीं सदी की बताई जाती है। एक ही पत्थर से बनी प्रतिम का पेट गोलाकार और उसके ऊपर दो सांप, लंबा कान और पर्णाकार अलंकार और बाईं ओर सूढ़ है। गणपति प्रतिमा में चतुर्भुज, एक हाथ मेें गदा, मोदक, आयुद्ध और कमल है। उद्यान में उसके पीछे पीले रेत पत्थर से बने बप्पा की मूर्ति है। आठवीं सदी की यह मूर्ति रोडा से प्राप्त हुई थी। इस मूर्ति के मस्तक पर तिलक, टूटे दांत, मुकुट, मोदक की शिल्पकला आदि देखते बनती है।

म्यूजियम के अंदर मौजूद छोटी-बड़ी चार प्रतिमाओं में से एक बहुत ही अद्भुत मूर्ति है। सभी मूर्तियों के सूढ़ बाई ओर मूड़ी है, जबकि एक प्रतिमा की सूढ दाहीने ओर है। यह सूढ़ भग्न अवस्था में है। लेकिन, इसे प्रणव मुद्रा में होने का अनुमान लगाया जा सकता है। सूढ़ के आकार से ओमकार बनता है। माता पार्वती के साथ बाल गणेश की काले पत्थर की छठी सदी की एक सुंदर प्रतिमा यहां रखी गई है।

इसमें गणेश और बाल गणेश की लंबाई एक समान है। हाथ में आयुद्ध और मूषक महाराज हैं। ये सभी प्रतिमाएं गुजरात की शिल्पकला के स्वर्णकाल की झांखी का दर्शन कराती है। खास कर सधरा जेसंग की माता मिनल देवी के कालखण्ड में हुए निर्माण की साक्षी समान है। इसके अलावा एक स्फटिक के गणपति बापा भी यहां रखे गए हैं। इसके गायकवाडी काल के होने की बात कही जाती है।

यहां एक विशेष प्रकार के गणपति का भी दर्शन होता है। चंबा रूमाल में गणपति बप्पा की सुंदर बुनाई की गई है। हिमाचल प्रदेश में स्थित तत्कालीन राज्य चंबा में रेशम पर अद्भूत रूप से कढ़ाई का काम किया जाता था। यह रेशम का रूमाल पूजा विधि में इस्तेमाल किया जाता था। चंबा रूमाल की कढाई इस वजह से विशेष थी कि यह दोनों ओर से समान दिखती थी। सामान्य बुनाई में एक ओर धागे का हिस्सा दिखाई देता है। वडोदरा संग्रहालय में रखा गया यह रूमाल दोनों ओर से गणपति बापा और चंबा के राजघराने का दर्शन कराता है। वडोदरा संग्रहालय में काष्ठ के बने बप्पा भी हैं। इसे डिस्प्ले में नहीं रखा गया है।

मूर्ति के साथ यक्षिणी भी विराजित
10वीं सदी के इस मूर्ति में सांगीतिक वाद्यों के साथ यक्षयक्षिणी भी है। यह मूर्ति अधिक देखने को नहीं मिलती है। ऐसी मान्यता है कि दाहीने ओर सूढ़ वाले गणपति की मूर्ति को बिना पूजे नहीं रखी जा सकती है। दूसरी मान्यता है कि खंडित मूर्ति की पूजा नहीं की जा सकती है। उद्यान में गणपति बप्पा के अग्रज भगवान कार्तिकेय की भी प्राचीन प्रतिमा है।
५वीं सदी की एक दूसरी प्रतिमा में गणपति दादा अनुचर के साथ दिखाए गए हैं। सामान्य रूप से बप्पा के साथ मूषक महाराज होते हैं, लेकिन यहां अनुचरों का सहारा लेकर गणपति खड़े हैं। काले पत्थर से बनी यह प्रतिमा अणहिलवाड (उत्तर गुजरात के रोडा, इडर) से मिली है। इसकी दाहिनी भूजा खंडित है, उसके ऊपर सर्प है।