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जजों की नियुक्ति में केन्द्र सरकार की ओर से देरी नहीं : चौधरी

-केन्द्रीय विधि व कानून राज्य मंत्री से पत्रिका की विशेष बातचीत

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There is no delay by union govt in Judges' appointment: Chaudhary

जजों की नियुक्ति में केन्द्र सरकार की ओर से देरी नहीं : चौधरी

उदय पटेल/प्रदीप जोशी

अहमदाबाद. पिछले कई वर्षों से सुप्रीम कोर्ट और देशभर के उच्च न्यायालयों में जजों की रिक्त संख्या के बारे में चर्चा होती रही है। केन्द्र सरकार का कहना है कि पिछले तीन वर्षों में नरेन्द्र मोदी सरकार के दौरान सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट में जजों की सबसे ज्यादा नियुक्तियां की गईं। शीर्ष कोर्ट, हाईकोर्ट के साथ-साथ अधीनस्थ अदालतों में रिक्तियों के साथ-साथ कई अन्य मुद्दों पर पत्रिका ने केन्द्रीय विधि व न्याय राज्य मंत्री पी. पी. चौधरी से विशेष बातचीत की। पेश है इसी बातचीत के कुछ अंश:

प्रश्न: सुप्रीम कोर्ट और देशभर के हाईकोर्ट में जजों के रिक्त पदों के लिए क्या कर रही है सरकार?

उत्तर: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के दौरान पिछले तीस वर्षों में सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में सबसे ज्यादा नियुक्तियां हुईं। वर्ष 2015 में एनजेएनसी के लंबित रहने के कारण ज्यादा नियुक्तियां नहीं हो सकीं। वर्ष 2016 में हाई कोर्ट में 131 जज नियुक्त किए गए। वहीं 2016, 2017 और 2018 में अब तक करीब 331 जजों को हाईकोर्ट में नियुक्त किया गया। 313 अस्थायी जजों को स्थायी बनाया गया। 17 जज सुप्रीम कोर्ट में बनाए गए। इसलिए केन्द्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति में किसी तरह की ढिलाई नहीं बरती जा रही है।
मेमोरण्डम ऑफ प्रॉसिजर (एमओपी) के तहत संबंधित हाईकोर्ट की ओर से रिक्त स्थान होने की स्थिति में छह महीने पहले नामों की सिफारिश करनी पड़ती है, लेकिन व्यावहारिक तौर पर ऐसा नहीं होता है। कई बार यह देखा गया है कि रिक्त स्थान होने के छह महीने या दो-दो, तीन-तीन वर्ष तक नामों की सिफारिश नहीं की जाती है। नामों की सिफारिश करना हाईकोर्ट के कॉलेजियम का काम है और इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय की कॉलेजियम की सिफारिश के बाद केन्द्र सरकार नियुक्ति की अधिसूचना जारी करती है। केन्द्र सरकार की तरफ से किसी तरह की देरी नहीं होती।

प्रश्न: सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट में एससी, एसटी, ओबीसी, महिला व अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व भी कम है, इसके लिए क्या किया जा रहा है?

उत्तर: यह बात सही है कि सुप्रीम कोर्ट-हाईकोर्ट में एससी, एसटी, ओबीसी, महिला व अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व की कमी है। इन वर्गों के प्रतिनिधित्व के लिए कानून मंत्रालय समय-समय पर एक एडवाइजरी जारी करती है जिसमें हाईकोर्ट के सभी मुख्य न्यायाधीशों से यह निवेदन किया जाता है कि इन वर्गों का प्रतिनिधित्व कम है, इसलिए इन वर्गों को भी प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए। भारत सरकार के कानून मंत्रालय की भूमिका इसमें सीमित है क्योंकि सिफारिश करने का काम संबंधित कॉलेजियम का है।

प्रश्न: सुप्रीम कोर्ट के जजों के लिए कुछ नाम अभी भी लंबित हैं, इस पर क्या कहना चाहेंगे?

उत्तर: सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए पांच जजों के कॉलेजियम की ओर से सिफारिश की जाती है। इसके बाद सरकार सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर नियुक्ति करती है। जहां तक सुप्रीम कोर्टे के फिलहाल लंबित जजों की नियुक्ति की बात है, तो यह एक सतत प्रक्रिया है। सरकार एमओपी और भारत के संविधान की आत्मा, मंशा व उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए वस्तुगत विचार (ऑब्जेक्टिव कंसिडरेशन) के आधार पर सुप्रीम कोर्ट को पुनर्विचार (रिकंसीडर) करने की बात कहने में सक्षम है।

प्रश्न: अधीनस्थ (निचली) अदालतों में जजों के पद काफी रिक्त हैं, इसके लिए कुछ कदम उठाए जा रहे हैं?

उत्तर: जहां तक अधीनस्थ अदालतों (निचली अदालतों) में रिक्त पदों का सवाल है तो इन अदालतों में लगभग 5 हजार से ज्यादा पद रिक्त हैं जो देश की कुल रिक्तियों का 25 फीसदी है। इन अदालतों में नियुक्तियों का काम हाईकोर्ट की सिफारिशों के बाद राज्य सरकार करती है, लेकिन समय-समय पर कानून मंत्रालय की ओर से सभी हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों से यह गुजारिश की जाती है कि खाली पद भरें जाएं जिनसे आम जन को न्याय मिले।


प्रश्न: भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) कौन होंगे?

उत्तर: मेमोरेण्डम ऑफ प्रोसिजर (एमओपी) के तहत और भारतीय संविधान की मंशा के तहत भारत सरकार उन्हीं को मुख्य न्यायाधीश बनाएगी जिनके नाम की अनुशंसा सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश करेंगे। परंपरा यही रही है कि भारत के प्रधान न्यायाधीश अपने अनुगामी के नाम की सिफारिश करते हैं।