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aanasagar : इतना छलका आनासागर कि लबालब हो गई गागर

जल संरक्षण की नहीं कोई योजना : झील के एस्केप चैनल गेट से अब तक हो चुकी है 10 से 12 फीट पानी की निकासी

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aanasagar : Ponds filled with Anasagar

aanasagar : इतना छलका आनासागर कि लबालब हो गई गागर

अजमेर.

इस बार मानसून की बारिश में आनासागर झील में इतना पानी आया कि कई नाडी और तालाब लबालब हो गए। मानसून के दौरान तीन महीने में चार बार आनासागर झील के एस्केप चैनल गेट खुल चुके हैं। झील से जितना पानी निकाला गया उससे अजमेर में एक नया आनासागर भरा जा सकता था। जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों की अनमोल पानी को संरक्षित करने में रुचि दिखाई नहीं दी।

चार बार 15 फीट पर पहुंचा गेज

इस मानसून में 1 जुलाई से 11 सितंबर के बीच जिले में ताबड़तोड़ बरसात हुई है। इस दौरान चार बार आनासागर का जलस्तर 15 फीट से ज्यादा पहुंच गया। जिला कलक्टर के निर्देश पर सिंचाई विभाग ने चार बार इसके चैनल गेट खोले। इनसे चारों बार करीब सात-आठ दिन लगातार पानी की निकासी हुई है। मौजूदा वक्त भी दो चैनल गेट से पानी निकल रहा है।

भर सकता था पालबीसला तालाब

आनासागर से चार बार में 10 से 12 फीट पानी की निकासी हो चुकी है। यह पानी एस्केप चैनल के जरिए खानपुरा तालाब, पीसांगन होता हुआ गोविंदगढ़ तक पहुंच गया है। लेकिन शहर के बीचोबीच स्थित पालबीसला तालाब को इसका फायदा नहीं मिल पाया। अव्वल तो पालबीसला पूरी तरह अतिक्रमण की चपेट में है। तिस पर उसमें आनसागर का पानी पहुंचाने के इंतजाम नहीं हैं।

नहीं बना सके नया जलाशय

आनासागर और पालबीसला, चौरसियावास, फॉयसागर और खानपुरा तालाब 200-300 साल पुराने जलाशय हैं। दुर्भाग्य से आजादी के बाद सरकार, स्थानीय प्रशासन शहर या इसके आसपास कोई नया जलाशय नहीं बना पाए हैं। ऐसा होता तो आनासागर झील सहित शहर में व्यर्थ बहने वाले बरसात के पानी को रोककर बचाया जा सकता था।
इस बार कब-कब खुले चैनल गेट

7 जुलाई : गेज 14 फीट

2 अगस्त : गेज 15 फीट 11 इंच

17 अगस्त : गेज 15 फीट

5 सितंबर : गेज 15 फीट 6 इंच

जल संरक्षण की योजना बने

आनासागर झील की भराव क्षमता 16 फीट थी। दुर्भाग्य से इसके कैचमेंट एरिया में कॉलोनियां बस गई। झील का पानी सिंचाई के उपयोग आता था। इससे निकलने वाला पानी गोविंदगढ़ तक पहुंचा है। लेकिन जल संरक्षण की योजनाएं बनाई जाती तो शहर में ही इस पानी को किसी जलाशय या अन्यत्र संरक्षित किया जा सकता था।

महेंद्र विक्रमसिंह


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