
ajmer lok sabha by election decide future
उपेंद्र शर्मा/अजमेर।
लोकसभा का वक्त भले ही सिर्फ तेरह-चौदह महीने का बचो हो लेकिन भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही अजमेर सीट जीतने को अपनी नाक का सवाल बना लिया है। क्योंकि अजमेर राजस्थान का एक ऐसा जिला है, जिसमें पांच बड़े धर्मों और साठ से अधिक जातियों के लोग निवास करते हैं। ऐसे में यहां के मतदाता जिस भी पार्टी के पक्ष में अपना फैसला देंगे वो एक तरह से पूरे राजस्थान की आवाज मानी जाएगी।
यहां कोई समाज अतिरिक्त रूप से बहुल नहीं है, तो कोई भी समाज बेहद कम भी नहीं है। सोमवार को मतदान होना है। उससे ठीक दो दिन पहले दोनों पार्टियां अपनी पुरजोर शक्ति रोड शो के जरिए प्रदर्शित करने वाली है। इस सीट पर भाजपा चाहती है कि वो अपना कब्जा पुन: साबित करे। ताकि वो राजस्थान की जनता और केंद्र सरकार को यह संदेश दे सके कि आज भी राज्य में भाजपा के लिए कोई चुनौती नहीं है। जिसका फायदा वो दस महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव में लेना चाहेगा।
दूसरी ओर कांग्रेस के कप्तान सचिन पायलट के कॅरियर के लिए भी ये अत्यंत कठिन घड़ी है। क्योंकि अगर पार्टी की अजमेर में हार होती है, तो उनके चुनाव कौशल, टीम मैनेजमेंट, टीम में पकड़ और मतदाताओं में आकर्षण संबंधी पक्षों पर सवालिया निशान लग जाएंगे। और फिर वे चाहे पार्टी अध्यक्ष रहे या ना रहे, कांग्रेस की सरकार बनने पर उनके मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं भी क्षीण हो जाएंगी। अगर पार्टी को यहां से जीत मिलती है, तो पायलट की बुलंदी को फिर उनकी पार्टी के भीतर या बाहर दोनों ही जगह कोई चुनौती नहीं मिल पाएगी।
अब थोड़ी सी बात दोनों उम्मीदवारों पर एक तरफ है कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कुशल वक्ता डॉ. रघु शर्मा, दूसरी ओर है भाजपा के युवा और भोले-भाले रामस्वरूप लाम्बा। लाम्बा जहां अपने दिवंगत पिता सांवरलाल जाट की मृत्यु के बाद पनपी सहानुभूति की नाव में सवार है। वहीं डॉ. रघु शर्मा राज्य सरकार के प्रति जनता के रोष को हवा दे रहे हैं।
रामस्वरूप को राजनीतिक दांव पेच भले ही अपने पिता की तरह नहीं आते हों, लेकिन कई बार जनता को भोलापन भा ही जाता है। दूसरी तरफ रघु शर्मा में यह बात तो मौजूद है ही, कि वे बेहतर ढंग से किसी भी मंच पर अजमेर का बेहतर प्रतिनिधित्व कर सकते हैं।
दोनों सारथियों के भरोसे...
जो लोग साथ नहीं है वे दोनों ही उम्मीदवारों की जड़ें काटने में लगे हैं। दूसरी ओर बी. पी. सारस्वत हैं, सरकार है और जाट समाज के प्रभावशाली लोग है। जो रामस्वरूप के निष्ठावान सारथी बने हुए है। कांग्रेस में रघु शर्मा को सबसे ज्यादा बल मिल रहा है पायलट की सक्रियता, जोश और सबको काम पर लगा देने की क्षमता से।
यह है वोट बैंक का गणित
अगर दोनों के वोट बैंक को देखा जाए तो जहां जाट, रावत और सिंधी पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में मतदान कर सकते हैं। वहीं कांग्रेस को गुर्जर, मुस्लिम और ब्राह्मणों का बेस्ट कॉम्बिनेशन मिलेगा। फिर जहां भाजपा को माली, तेली और कुमावत वर्ग का साथ मिलेगा, वहीं कांग्रेस को राजपूत और ईसाई, अनुसूचित जनजाति वर्ग से सहयोग मिलेगा।
अब इन सबके बाद वणिक वर्ग (वैश्य) और अनुसूचित जाति दोनों को मिलाकर करीब 4.50 लाख वोट हैं। इनमें जिस पार्टी की पकड़ सबसे अधिक मजबूत होगी वो पार्टी जीत की तरफ रहेगी। फिलहाल आप राजनैतिक पंडितों से बात करते हैं, तो वे दोनों की टक्कर बराबर तो मानते हैं, लेकिन फिर भी अंतिम तस्वीर शनिवार दोपहर होने वाले दोनों पार्टियों के रोड शो के बाद थोड़ी और साफ हो सकेगी।
Published on:
27 Jan 2018 09:00 am
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