
सूफी संत ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह सदियों से देश-दुनिया को सूफियत का पैगाम दे रही है।

रियासतकाल में जहां राजा-महाराजाओं ने हाजिरी दी, वहीं वर्तमान में नेता-अभिनेता और बड़ी संख्या में जायरीन जियारत के लिए पहुंच रहे हैं।

चादरें और गुलाब के फूल पेश कर मन्नतें मांगते हैं।

यों तो सालभर जायरीन की आवाजाही होती है, लेकिन सालाना उर्स में शामिल होने के लिए हर जायरीन ख्वाहिशमंद रहते हैं।

आम दिनों में 1100 से 1500 किलो गुलाब चढ़ता है। सालाना उर्स में करीब 5 हजार किलो लाल गुलाब चढ़ रहा है।

ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती 1143-1233 ईस्वी में अजमेर आए थे

जायरीनों के लिए कायड़ विश्राम स्थली में लगे टेंटों से ऐसे लगा मानों एक सिटी बस गई हो।