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विश्व प्रसिद्ध किशनगढ़ की बणी-ठणी चित्र शैली को संरक्षण की जरूरत

किशनगढ़ स्थापना दिवस पर विशेष- बणी-ठणी के कारण मिली प्रसिद्धि      

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अजमेर

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Preeti Bhatt

Jan 30, 2020

विश्व प्रसिद्ध किशनगढ़ की बणी-ठणी चित्र शैली को संरक्षण की जरूरत

विश्व प्रसिद्ध किशनगढ़ की बणी-ठणी चित्र शैली को संरक्षण की जरूरत

अजमेर/मदनगंज-किशनगढ़. किशनगढ़ की ख्याति जहां इन दिनों मार्बल मंडी के कारण बनी है वहीं पूर्व में यहां की चित्रकला भी देश विदेश में पहचान बना चुकी है। किशनगढ़ चित्रशैली की कृति बणी-ठणी (राधा) के चित्र प्रदेश ही नहीं बल्कि देश-दुनिया में प्रसिद्ध है। कभी किशनगढ़ को विशेष नाम दिलाने वाली इस चित्रशैली को वर्तमान में संरक्षण की दरकार है।

किशनगढ़ चित्रशैली का विकास महाराजा रूप सिंह (1643-1658) के समय प्रारंभ हुआ और महाराजा सांवतसिंह (1748-1764) के समय विकसित हुआ। महाराजा सांवतसिंह के समय ही किशनगढ़ चित्रशैली के चित्र बनाए गए। इसके बाद विश्व प्रसिद्ध राधा (बणी-ठणी) की कृति का चित्र कलाकार निहालचंद ने सन् 1778 में बनाया था।

किशनगढ़ शैली के चित्रकारों में निहालचंद मोरध्वज, अमरचंद, सीताराम, नानकराम, रामनाथ और जोशी सवाईराम का नाम प्रमुख रूप से शामिल है। महाराजा सांवतसिंह जो बाद में संत नागरीदास के रूप में प्रसिद्ध हुए उनकी रचनाओं पर किशनगढ़ चित्रशैली के कई चित्र बने। यह चित्रशैली लगभग 300 वर्ष से अधिक पुरानी मानी जाती है। कला विशेषज्ञों की नजर में इसे मोनालिसा के चित्र के मुकाबले का माना जाता है।

बणी-ठणी के कारण प्रसिद्ध
इतिहासकार अविनाश पारीक ने बताया कि किशनगढ़ चित्रशैली चित्रकला के क्षेत्र में स्वतंत्र शैली मानी जाती है। राधा कृष्ण इसका प्रमुख विषय रहा है। किशनगढ़ चित्रशैली को प्रकाश में लाने का श्रेय एरिक डिकिन्सन, डॉ. फैयाज अली और कार्ल खंडालावाला को जाता है।

इसकी विशेषताओं में पुरुषाकृति में लंबा छरहरा बदन, उन्नत ललाट, लंबी नाक, पतले होंठ, खंजनाकृत कानों तक खिंचे हुए विशाल नयन प्रमुख है। वहीं नारी आकृति में गौर वर्ण, बांके काजल से युक्त विशाल नयन, उन्नत ललाट, बड़ी तीखी सुंदर नासिका, सुराहीदार गर्दन आदि है। इसके साथ ही प्राकृतिक परिवेश का भी बड़े स्तर पर उपयोग शामिल है। इसमे झील, पक्षी, नौकाएं, कमल दलों से ढके जलाशय शामिल है। इसमे प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया गया है।

डाक टिकट भी जारी
केंद्र सरकार ने किशनगढ़ की बणी-ठणी शैली में राधा का चित्र लेकर 5 मई 1973 में एक डाक टिकट भी जारी किया। इससे भी किशनगढ़ की चित्रकला की प्रसिद्धि बढ़ी।

चित्र शैली के लिए चिंतित
किशनगढ़ चित्र शैली के कार्य करने वाले वरिष्ठ चित्रकार शहजाद अली का कहना है कि किशनगढ़ चित्रशैली को विशेष सरंक्षण की जरूरत है। नए लोग इस चित्रशैली को सीखने आएंगे तो यह बच पाएगी।

आर्ट गैलरी की आवश्यकता
किशनगढ़ के पुराने शहर में करीब दो दशक पूर्व बड़ी संख्या में चित्रकारों की संख्या थी। आर्थिक संरक्षण नहीं मिलने के कारण चित्रकार दूसरे काम करने लग गए। चित्रकार बिरदीचंद मालाकार ने कहा कि बिना राजकीय संरक्षण के कला विकसित नहीं हो सकती है, इसलिए चित्रकला को संरक्षण और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है।