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मेहमान परिन्दों को रास आया राजस्थान

. मरूधरा की मेहमाननवाजी यूं भी दुनिया भर में मशहूर है ही लगता है परिन्दों को भी राजस्थान भा गया है। राजस्थान के झील-तालाबों पर हर सर्दियों में आने वाले प्रवासी परिंदों ने इस बार 3-4 अक्टूबर के आस-पास डेरा डाला था और वे अब तक वहीं बने हुए हैं।

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उपेन्द्र शर्मा.

अजमेर. मरूधरा की मेहमाननवाजी यूं भी दुनिया भर में मशहूर है ही लगता है परिन्दों को भी राजस्थान भा गया है। राजस्थान के झील-तालाबों पर हर सर्दियों में आने वाले प्रवासी परिंदों ने इस बार 3-4 अक्टूबर के आस-पास डेरा डाला था और वे अब तक वहीं बने हुए हैं। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार इतनी लंबी अवधि तक उन्हें गत 10-12 वर्षों में तो नहीं देखा गया है। उनकी यह सुदीर्घ मौजूदगी राज्य के पर्यटन व्यवसाय के लिए फायदेमंद है। पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार परिन्दों की यह प्रवृत्ति अगर कुछ वर्ष जारी रहती है, तो यह वैश्विक पर्यावरण में हो रहे किसी महत्वपूर्ण बदलाव या किसी संभावित खतरे का पहला चरण भी साबित हो सकता है।

 

आम तौर पर सर्दियों में 10-15 नवंबर के बाद प्रवासी पक्षी झील तालाबों पर आते हैं और फरवरी के अंतिम सप्ताह या मार्च के प्रथम सप्ताह तक वापस चले जाते हैं। इस तरह से वे करीब 100 से 120 दिन यहां बिताते हैं। बहुत हुआ तो 8-10 दिन और कम-ज्यादा हो जाते हैं, जबकि इस बार उनका प्रवास लगभग 160 दिनों तक का तो हो ही चुका है। अभी भी उनकी संख्या देखकर लग रहा है कि वे करीब 10-12 दिन और रहेंगे ही। यह अवधि लगभग छह महीनों की होने वाली है जो विशेषज्ञों और पक्षी प्रेमियों को चौंका रही है।

 

लंबी अवधि की सर्दी या कुछ और…

इस बार सर्दियों ने अपना असर मार्च के मध्य तक भी दिखा रखा है। हिमालय क्षेत्र में तो हाल ही बर्फबारी भी हुई है। लेकिन परिन्दों के यहां ज्यादा रुकने के लिए सर्दियों को ही जिम्मेदार नहीं माना जा सकता, क्योंकि वे आ तो इस बार अक्टूबर के पहले सप्ताह में ही गए थे, तब सर्दियां शुरू ही नहीं हुई थीं। पिछले वर्ष 2017-18 में वे 20 नवंबर के बाद दिखाई दिए थे। वर्ष 2016-17, 2015-16, 2014-15 और उससे पहले भी उनके आगमन की लगभग यही तिथियां रही हैं।

 

कौन से पक्षी आते हैं:-

पेलिकन्स, एवोसेट, नॉर्दन शॉवलर, पिन टेल, कॉमन टील, पाइड किंगफिशर, रेड शंक, यूरेशियन रेनेक, रफ, ग्रेटर कॉर्मोरेन्ट, बार हेडेड गीज सहित करीब 45 प्रजाति के प्रवासी पक्षी राजस्थान आते हैं।

 

कब आते हैं और फिर कब लौटते हैं:-

आम तौर पर यह पक्षी नवंबर के मध्य सप्ताह के बाद आने शुरू होते हैं। धीरे-धीर दिसंबर के अंतिम सप्ताह तक इनकी संख्या बढ़ती रहती है। जिन भी पक्षियों को आना होता है, वे जनवरी के मध्य सप्ताह तक आ ही जाते हैं। इसके बाद फरवरी के अंतिम सप्ताह और मार्च के प्रथम सप्ताह से इनकी वापसी शुरू हो जाती है। इस बार प्रवासी पक्षियों का आगमन 3-4 अक्टूबर के आस-पास ही हो गया है। यह इनकी सामान्य तय तिथियों से लगभग 40-45 दिन पहले है। अब भी झील-तालाबों पर इनकी पर्याप्त संख्या मौजूद है और विशेषज्ञों के अनुसार इनके लौटने में अब भी 10-12 दिन शेष हैं।

 

कहां से और किस मार्ग से आते हैं:-

मध्य एशिया के कजाकिस्तान व उजबेगिस्तान व मंगोलिया, नॉर्थ-वेस्ट अफ्रीका के सूडान, इजिप्ट, इथोपिया, यूरोप के हंगरी, पौलेंड, रोमानिया, इंग्लैंड सहित रूस, टर्की, लेबनान, सीरिया, चीन आदि से राजस्थान आते हैं। इनका मार्ग मध्य एशिया, अफगानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान के ऊपर से होते हुए अरब सागर और गुजरात के रास्ते कच्छ होते हुए दक्षिणी राजस्थान में प्रवेश करने का रहता है। जहां से यह सबसे पहले बांसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, कोटा, बारां, झालावाड आदि जिलों में दिखाई देते हैं। उसके बाद पाली, भीलवाड़ा, जोधपुर, अजमेर, जयपुर, दौसा, भरतपुर, अलवर आदि के झील तालाबाों पर दिखाई देते हैं।

5 से 10 हजार किलोमीटर तक की लंबी दूरी तय करने वाले पक्षियों को उडऩे के लिए गर्म हवाएं चाहिए होती हैं। फिलहाल गर्म हवाएं नहीं चली हैं। ऐसे में इनकी उड़ान में अभी देरी है। यह बदलते पर्यावरण का पहला संकेत है। राजस्थान में विस्तृत अध्ययन इस क्षेत्र में किया जाना चाहिए।

डॉ. अंजू बारोठ, वरिष्ठ वैज्ञानिक (पर्यावरण), भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून।

 

मेहमान परिन्दों का यह व्यवहार बेहद चौंकाने वाला है। मैं पिछले कई वर्षों से जयपुर, भरतपुर, जोधपुर, पाली, अजमेर आदि जगहों पर इनको फॉलो कर रही हूं। यह समझ से परे है कि यह इस बार आए भी जल्दी थे और जा देरी से रहे हैं। पर्यावरण में होने वाले किसी भी बदलाव का सबसे पहला संकेत परिंदे ही देते हैं। इनका यह लंबा ठहराव आने वाले वर्षों में वैज्ञानिकों के लिए नया विषय बनेगा।

-डॉ. रेणु कोहली, पक्षीविद् (जोधपुर)।

 

बारिश, सर्दी और गर्मी तीनों मौसम इस बार अपने तय समय से आगे-पीछे है। तापमान भी अपेक्षाकृत कम है। अब तक सर्दी बनी हुई है। पक्षी मनुष्यों की तुलना में पर्यावरण के बारीक बदलाव को भी ज्यादा संवेदनशील तरीके से पकड़ते हैं। इसलिए उनके प्रवास की अवधि ज्यादा हो गई है।

-डॉ. आशा शर्मा (प्राणीशाी), राजकीय महाविद्यालय जयपुर।

 

प्रवासी परिन्दों का यह व्यवहार चौंका रहा है। कुछ कारण भोजन की उपलब्धता और मौसम को भी माना जा सकता है, लेकिन प्रवास में इतने दिनों की बढ़ोत्तरी कुछ और कहानी कह रही है। अगले कुछ वर्ष यह जारी रहता है, तो जिस तरह पिछले 20 वर्षों में हमें ग्लोबल वार्मिंग शब्द सुनने को मिला , वैसे ही ऐसा कोई नया शब्द जैसे ग्लोबल कोल्ड या कुछ और सुनने को मिल सकता है।

– रविन्द्र सिंह तोमर, पक्षी विशेषज्ञ (चम्बल व मुकुन्दरा क्षेत्र), कोटा।