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जन्म से पहले ही तय हो गई थी शहर के इस राज्यमंत्री की शादी

लड़का/लड़की क्या करते हैं, खानदान कैसा है, कितने पढ़े लिख हैं, रंग-रूप कैसा है..., आमतौर पर शादी से पहले इस तरह के कई गुण देखे जाते हैं, लेकिन अजमेर में एक शख्स एेसे भी हैं जिनकी शादी जन्म से पहले ही तय हो गई थी।

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raktim tiwari

Aug 14, 2016

lakhawat

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लड़का/लड़की क्या करते हैं, खानदान कैसा है, कितने पढ़े लिख हैं, रंग-रूप कैसा है..., आमतौर पर शादी से पहले इस तरह के कई गुण देखे जाते हैं, लेकिन अजमेर में एक शख्स एेसे भी हैं जिनकी शादी जन्म से पहले ही तय हो गई थी।

हम बात कर रहे हैं राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण के अध्यक्ष औंकारसिंह लखावत की। संडे इंटरव्यू में बात चली तो लखावत ने कई संस्मरण सुनाए-

पत्रिका : शादी के लिए रिश्ता कैसे तय हुआ ?

लखावत : मेरे पिताजी और ससुर दोनों अच्छे मित्र थे। उन्होंने मेरे और पत्नी के जन्म से पहले ही यह तय कर लिया था कि दोनों के लड़का-लड़की हुई तो उनकी आपस में शादी कर लेंगे। एेसा ही हुआ। एक अप्रेल 1949 में मेरा जन्म हुआ। हमारी औपचारिक शादी भी तब हुई जब मैं सवाईमाधोपुर में लगे एनसीसी के कैम्प में गया हुआ था। पीछे से मेरे काका ससुर हमारे घर आए और तलवार पर मोळी बांध कर सगाई की रस्म पूरी कर दी।

इससे पहले मेरे पिताजी और ससुर दोनों का ही देहांत हो चुका था लेकिन घरवालों को यह जानकारी थी कि इनकी शादी पहले ही तय हो चुकी है। उसके बाद 1 जुलाई 1964 को हमारी शादी हो गई। पत्नी उस समय खादी ग्रामोद्योग बोर्ड में गांधी चरखा की संचालिका थी।

पत्रिका : बचपन में आप अकाल राहत कार्य में लगे थे...?

लखावत : हां, मेरा जन्म बहुत साधारण परिवार में हुआ है। मेरे पिताजी खेती-बाड़ी करते थे। कठिन परिस्थितियों में दसवीं पास के बाद प्री-यूनिवर्सिटी की पढ़ाई करनी थी लेकिन स्कूल की फीस और किताबों के पैसे नहीं थे, इसलिए 15 साल की उम्र में 7 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से फेमिन (अकाल राहत कार्य) के कार्य में लग गया।

चाहू से झोरड़ा के बीच एक सड़क बननी थी, वहां तेज गर्मी में रेत के धोरों में रह कर मैंने मेट के रूप में कार्य किया। फर्जी मस्टररोल नहीं भरा, इसलिए मुझे फेमिन से हटा दिया गया। मैंने रैन बसेरे में भी एक रुपया रोजाना के हिसाब से पढ़ाया और कुछ बच्चों को ट्यूशन भी कराई।

पत्रिका : कांग्रेस नेता डॉ. श्रीगोपाल बाहेती के आप डिबेट पार्टनर रहे हैं...?

लखावत : कड़ैल की स्कूल में हमने साथ ही पढ़ाई की थी। उस वक्त बाहेती मेरे डिबेट पार्टनर थे। पक्ष-विपक्ष के रूप में दोनों जमकर बोलते थे। यह संयोग की ही बात है कि आज राजनीतिक जीवन में भी हम दोनों डिबेटर बने हुए हैं।

पत्रिका : प्रारम्भिक पढ़ाई...?

लखावत : मेरा जन्म नागौर जिले के टहला गांव में हुआ है। उस समय वहां कोई स्कूल नहीं थी। इसलिए तीसरी तक की पढ़ाई घर पर ही की। इसके बाद डोडियाना गांव में पांचवीं तक की पढ़ाई की। कड़ैल में दसवीं पास करके बाद प्री-यूनिवर्सिटी के लिए जोधपुर गया। डीडवाना में ग्रेज्युएशन की।

पत्रिका : माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की नौकरी क्यों छोड़ी...?

लखावत : राजनीति विज्ञान पढ़ाने वाले मेरे शिक्षक की इच्छा थी कि मैं अच्छा डिबेटर हूं, इसलिए लॉ करूं और वकील बनूं। कानून की पढ़ाई के लिए मैं अजमेर आया। इसी दौरान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड में मेरी नौकरी लग गई, लेकिन एक साल बाद लॉ में मेरा सेलेक्शन हो गया और मैंने बोर्ड की नौकरी छोड़ दी।

पत्रिका : राजनीतिक सफर कहां से शुरू हुआ...?लखावत : संघ के सम्पर्क में डीडवाना में ही आ गया था। अजमेर में शुरुआत में संघ कार्यालय में ही रहा। जनता पार्टी में काम करने का मौका मिला। वर्ष 1980 में भाजपा बनी तब अजमेर शहर का पहला महामंत्री बनाया गया।

गठन के लिए दिल्ली में सम्मेलन हुआ उसमें शामिल होने का मौका मिला। युवा मोर्चा प्रदेश मंत्री, देहात अध्यक्ष बन गया। प्रदेश मंत्री रहा। वर्ष 1994 में यूआईटी चेरयमैन बना। वर्ष 1997 में राज्यसभा का सदस्य बनाया गया। प्रदेश की राजनति में अलग-अलग जिम्मेदारियां मिलती गई।

पत्रिका : तारागढ़ के रास्ते पर पृथ्वीराज स्मारक की स्थापना का विचार कैसे आया...?

लखावत : पृथ्वीराज चौहान अजमेर की अस्मिता हैं। पृथ्वीराज ने अजमेर में रह कर हिन्दुस्तान का साम्राज्य चलाया और जो धुरंधर, वीर था, उसका स्मारक अजमेर में होना बहुत जरूरी है। यूआईटी का अध्यक्ष बनने के बाद मैंने पहला फैसला यही किया था।

रोजाना वहां आवाजाही हुई तो लोग मुझे तारागढ़ी कहा करते थे। इसलिए भी वहां स्मारक बनना बनना बहुत जरूरी था। दाहरसेन स्मारक बना रहा था, तब भी कई बातें हुई। लेकिन आज लोग याद करते हैं। मेरा यही सपना रहा है कि हिन्दुस्तान में जिन लोगों से प्रेरणा मिलती है, एेसे महापुरुषों की प्रत्येक जिले में कुछ ना कुछ होना चाहिए।

पत्रिका : कोई शौक...?

लखावत : इतिहास की किताबें पढने का बचपन से ही शौक रहा है। कहीं भी मुझे पांच मिनट भी बोलना है तो मैं करीब छह घंटे उस विषय से संबंधित पढ़ाई करके जाता हूं। अदालत में जितने भी केस लड़े उन सब में की गई बहस भी रजिस्टर में लिखी हुई है।