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Big Issue: अनुमान पर चल रही पेड़-पौधों की गणना, नहीं कोई वैज्ञानिक तरीका

वन विभाग के पास पेड़ण्पौधों की गणना का नहीं है कोई वैज्ञानिक तरीका । वैज्ञानिक नवाचार भी प्रारंभ नहीं किए गए हैं।

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रक्तिम तिवारी/अजमेर.

वन विभाग (forest dept) से जिले या संभाग में पेड़-पौधों (plants) की सही संख्या पूछी जाए तो इसका जवाब ‘अनुमान ’ में ही मिल पाएगा। अव्वल तो विभाग वन्य जीव (wild animals) और प्रवासी पक्षियों (migratory birds) की तरह प्रतिवर्ष पेड़-पौधों की गणना नहीं कराता। तिस पर क्यूआर कोड जैसे कोई वैज्ञानिक नवाचार भी प्रारंभ नहीं किए गए हैं।

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अजमेर वन मंडल के तहत नागौर, टोंक, भीलवाड़ा और अजमेर जिले का वन्य क्षेत्र आता है। विभाग प्रतिवर्ष मानसून के दौरान सरकारी कार्यक्रमों और योजनाओं में पौधरोपण (plantation) कराता है। इनमें राजस्थान जैव विविधता परियोजना, पर्यावरण वानिकी, वन विकास, राष्ट्रीय झील संरक्षण, नाबार्ड और अन्य योजनाएं शामिल हैं। लेकिन पेड़-पौधों की सटीक गणना (plants census) का विभाग के पास वैज्ञानिक तरीका नहीं है।

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कागजी रिपोर्ट होती है आधार

विभाग मानसून(जुलाई से सितंबर)अवधि सहित अन्य अवसरों पर पौधरोपण करता है। इस दौरान बरसात में कई पौधे जड़ें पकड़ लेते हैं। पर्याप्त बरसात और पानी के अभाव में हजारों पौधे नष्ट (plants) हो जाते हैं। इसके अलावा विभाग के पास कई वर्षों पूर्व लगे बड़े पेड़-पौधे भी हैं। अव्वल तो इनकी गणना प्रतिवर्ष नहीं होती। फॉरेस्ट गार्ड, रेंजर और अन्य स्टाफ की कागजी रिपोर्ट ही पेड़-पौधों और वन्य क्षेत्र का अस्तित्व बताती है।

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क्यूआर कोड जैसा तरीका नहीं
हाईटेक दौर में पेड़-पौधों के संरक्षण और सटीक गणना के लिए क्यूआर कोड (Q R Code) तकनीकी को अपनाया गया है। केरल के कनककुन्नु गार्डन में पेड़-पौधों पर क्यूआर कोड लगाया गया है। इसमें पेड़-पौधों की प्रजाति, बॉटनीकल नाम, फूल खिलने, मौसम, औषधीय अथवा अन्य उपयोग, फल आने के बारे में जानकारी दी गई है। दिल्ली सहित कई प्रदेशों में भी शुरुआत हुई है। इससे संबंधित प्रदेशों के वन विभाग, सरकार और संस्थाओं को पेड़-पौधों की सटीक गणना (plants identification) में सहूलियत होने लगी है। स्मार्ट फोन से क्यूआर कोड को स्कैन करते तमाम जानकारी मिल जाती है। राजस्थान सहित अजमेर वन मंडल में फिलहाल ऐसा कोई तरीका नहीं अपनाया गया है।

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वन्य जीवों-पक्षियों की गणना प्रतिवर्ष

विभाग प्रतिवर्ष वैशाख पूर्णिमा पर वन्य जीवों की गणना (annual census) कराता है। इसके लिए विभिन्न (तालाब, झील, जोहड़) पर कर्मचारी वन्य जीवों (wild animals)की गणना करते हैं। इसी तरह जनवरी-फरवरी में झीलों-तालाबों पर आने वाले प्रवासी पक्षियों (migratory birds) की गणना कराई जाती है। पेड़-पौधों की सालाना गणना का विभाग के पास कोई तरीका नहीं है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय अपने स्तर पर विभिन्न संस्थाओं से कार्य कराता है।

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इन योजनाओं में हुआ है पौधरोपण
नाबार्ड योजना-(30,000)

कैम्पा योजना-(140500)
वानिकी विकास परियेाजना-(1781800)

राजस्थान जैव विविधता (3405250)
पर्यावरण वानिकी (3500)

वन विकास अभिकरण (18000)
परिभ्राषित वनों का पुनरोपरण (15000)

क्षतिपूर्ति पौधरोपण (9000)
गूगल परियोजना संरक्षण एवं वानिकी विकास (60, 520)

वृक्षारोपण (टीएफसी) 70000
राष्ट्रीय झील संरक्षण परियोजना (162400)(स्त्रोत वन विभाग)


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