scriptForest dept: ना ट्रेंकूलाइजर गन मिली, ना स्टाफ को हथियार | Forest dept: Tranquilizer gun not available in ajmer | Patrika News

Forest dept: ना ट्रेंकूलाइजर गन मिली, ना स्टाफ को हथियार

locationअजमेरPublished: Sep 05, 2019 07:54:57 am

Submitted by:

raktim tiwari

राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक कई बार पत्र भेजकर इन्हें फील्ड में लगाने के निर्देश दे चुके हैं।

tranquilizer gun in ajmer

tranquilizer gun in ajmer

रक्तिम तिवारी/अजमेर.

मंडल स्तर का कार्यालय, चार जिले और लम्बा चौड़ा वन्य क्षेत्र होने के बावजूद वन विभाग (forest dept) ‘संसाधनों ’ के मामले में बेहद कमजोर है। पैंथर (panther), जरख जैसे हिंसक जानवरों (wild animals) को पकडऩे के लिए केवल डंडे और पिंजरा है। अजमेर रेंज को अब तक ट्रेंकूलाइजर गन, स्टाफ को हथियार (weapons) उपलब्ध नहीं कराए गए हैं।
वन विभाग के अजमेर मंडल (ajmer division) के अधीन टोंक, भीलवाड़ा, नागौर और अजमेर का वन क्षेत्र आता है। यहां मुख्य वन संरक्षक (CCF) के अलावा उप वन संरक्षक (DFO), रेंजर (RANGER), फॉरेस्टर (Forester), वन पाल और अन्य कार्मिक कार्यरत हैं। संसाधनों के मामलों में प्रदेश के अन्य मंडल कार्यालयों की तुलना में अजमेर (ajmer) काफी पिछड़ा हुआ है। जबकि यहां चारों जिला का वन क्षेत्र करीब 150 वर्ग किलोमीटर से ज्यादा बढ़ा है।
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नहीं है मंडल में ट्रेंकूलाइजर गन
अजमेर वन मंडल क्षेत्र को सरकार और वन विभाग मुख्यालय ने अब तक ट्रेंकूलाइजर गन (tanquilizer gun) मुहैया नहीं कराई है। जबकि यहां ब्यावर, मसूदा, जवाजा और अजमेर क्षेत्र में पैंथर, जरख, भालू जैसे हिंसक जानवर (wild animals) कई बार नजर आ चुके हैं। बीते वर्ष फरवरी-मार्च में एक बारहसिंगा और हिरण भटकता हुआ शहरी क्षेत्र (urban area) में पहुंच गया था। खासतौर पर हिंसक वन्य जीवों को पकडऩे के लिए ट्रेंकूलाइज गन से बेहोश () करना पड़ता है। लेकिन विभाग को जयपुर (jaipur), कोटा (kota), उदयपुर (udaipur) , जोधपुर (jodhpur) और अन्य जिलों से गन और विशेषज्ञ बुलाने पड़ते हैं।
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डंडों से वन क्षेत्र की सुरक्षा
मंडल में रेंजर,वनपाल और अन्य सुरक्षार्मी लकड़ी के डंडों (wooden stick) से वन क्षेत्र की सुरक्षा करते हैं। पिछली कांग्रेस और भाजपा सरकार के कार्यकाल में अधिकारियों-वनकर्मियों को पिस्तौल (pistol) देने पर विचार हुआ, लेकिन मामला अधर में है। हिंसक वन्य जीवों को पकडऩे के लिए सुरक्षाकर्मियों को लोहे का पिंजरा (iron), जाल अथवा डंडों का सहारा लेना पड़ता है। इसके अलावा वन्य क्षेत्र में बातचीत के लिए मोबाइल (cell phone) ही एकमात्र उपकरण है। यह कई बार टावर रेंज नहीं मिलने से ठप रहते हैं।
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फिर किस काम आएगा प्रशिक्षण
पिछली भाजपा सरकार ने महिला और पुरुष वन सुरक्षा गार्ड (securtiy guard) को अद्र्ध सैनिक बलों (police force)की तरह प्रशिक्षण दिलवाया था। इसके तहत अजमेर केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के ग्रुप केंद्र द्वितीय में महिला सुरक्षा गार्ड (womens guard) को हथियार और आत्मरक्षा के गुर सिखाए गए। पुरुषों को भी ट्रेनिंग दी गई। दुर्भाग्य से इनमें से कई सुरक्षाकर्मी दफ्तरों में क्लर्क का कामकाज कर रहे हैं। जबकि राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (Chief conservator forest) कई बार पत्र भेजकर इन्हें फील्ड में लगाने के निर्देश दे चुके हैं।

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