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Biggest Issue: दादा अनुसूचित जाति में, तो पोता ओबीसी श्रेणी में

अजमेर मेरवाड़ा की जाति ढोली की उपजातियों को बांटा।वर्तमान पीढ़ी इसका लाभ नहीं ले पा रही। उन्हें अब अन्य पिछड़ा वर्ग का प्रमाण पत्र लेने को बाध्य होना पड़ रहा है।

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chhindwara

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युगलेश शर्मा/अजमेर.

अजमेर मेरवाड़ा की ढोली जाति की एक उपजाति ऐसी भी है जिसमें बुजुर्गों को अनुसूचित जाति वर्ग का लाभ मिल गया लेकिन वर्तमान पीढ़ी इसका लाभ नहीं ले पा रही। उन्हें अब अन्य पिछड़ा वर्ग का प्रमाण पत्र लेने को बाध्य होना पड़ रहा है। इससे इस उपजाति के युवाओं को समान मूल जाति व गोत्र के होने के बावजूद प्रदेश में दोहरा बर्ताव झेलना पड़ रहा है।

दरअसल अजमेर मेरवाड़ा पहले अलग राज्य होने के कारण यहां कई अन्य जातियां भी बनी, जिनमें ढोली जाति भी शामिल है। अजमेर मेरवाड़ा की ढोली जाति की पांच उपजातियां बताई गई हैं। इनमें नगारची, जाचक (भाट), दमामी, राणा, बायती शामिल हैं जिन्हें अनुसूचित जाति में माना गया है। लेकिन वर्ष 1999 में केंद्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने जाचक को अन्य पिछड़ा वर्ग में डाल दिया। इससे ढोली जाति की चार उपजातियां ही अनुसूचित जाति में रह गई।

यह आ रही हैं परेशानियां

ढोली जाति की उपजातियों को अलग-अलग वर्ग में बांटे जाने से जाचक समाज के लोगों के सामने परेशानी खड़ी हो गई। उन्हें अब मूल जाति अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र बनवाने एवं राजस्व रिकॉर्ड में नामांतरण करवाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। स्थिति यह है कि एक ही परिवार के सदस्यों को राजस्व जमाबंदियों में कहीं ढोली तो कहीं जाचक लिखा गया है। इससे भी उनकी परेशानियां बढ़ गई।

परिवारों में हो रहे झगड़े

अजमेर मेरवाड़ा के कई ऐसे परिवार हैं जिनमेंकुछ सदस्य अनुसूचित जाति में हैं और कुछ अन्य पिछड़ा वर्ग में माने जा रहे हैं। इससे जमीन या अन्य पारिवारिक मामलों को लेकर परस्पर झगड़े होते हैं। कई मामले तो पुलिस थाने तक भी पहुंच चुके हैं।

तकनीकी त्रुटि से हुआ ऐसा

जाचक समाज के अधिवक्ता राजेश भाटी का कहना है कि तकनीकी त्रुटि के कारण ऐसा हुआ है। इसका खामियाजा अब जाचक समाज के लोगों को भुगतना पड़ रहा है। जबकि 1950 से 1999 तक जाचक को उनकी मूल जाति अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र ही जारी किया जाता रहा है। लेकिन अब अनुसूचित जाति में होने के बावजूद जाचक समाज के युवाओं को इसका लाभ नहीं मिल रहा। प्रस्तावित आरएएस व अन्य राज्य सेवा की परीक्षाओं में उन्हें इस लाभ से वंचित रहना पड़ेगा।

भाटी के अनुसार उक्त पांचों प्रयाय जातियों को अनुसूचित जाति में होने की पुष्टि का उल्लेख 1969 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिय़ा द्वारा हस्ताक्षरित जनगणना रिपोर्ट एथनोग्राफिक्स एटलस ऑफ राजस्थान में और सेंसस ऑफ इंडिया 1961 में है। यह साक्ष्य अधिनियम की धारा 74 के अनुसरण में एक लोक दस्तावेज है जिसकी पालना करना हर लोक सेवक व लोक विभाग को बाध्यकारी है।

शुद्धिकरण की मांग

भाट समाज महासभा नरवर दिवेर क्षेत्र अजमेर के अध्यक्ष लाडूराम महाराज ने बताया कि राजस्थान सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की ओर से भी 22 जून 2018 को जारी एक स्पष्टीकरण परिपत्र में चार उपजातियों नगारची, दमामी, राणा, बायती को ही उनकी मूल जाति अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र जारी करने के आदेश जारी किए गए हैं। जबकि इसमें हिन्दु जाचक को भी शामिल किया जाना चाहिए। इसके लिए राज्य सरकार को अपने स्पष्टीकरण परिपत्र में शुद्धिकरण करना चाहिए।

यह प्रकरण फिलहाल मेरे सामने आया नहीं है। अगर ऐसा है तो राज्य सरकार से इस संबंध में मार्गदर्शन लिया जाएगा।

प्रफुल्ल चौबीसा, उपनिदेशक सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, अजमेर


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