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Rajasthan: बीजेपी विधायक की नायब तहसीलदार बेटी पर गिरी गाज, फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र मामले में हुई कार्रवाई

राजस्थान में दिव्यांगता प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी पाने वालों के खिलाफ चल रही जांच में बीजेपी विधायक की बेटी पर भी कार्रवाई हुई है। राजस्थान के ब्यावर से विधायक शंकर सिंह रावत की बेटी कंचन चौहान को एपीओ कर दिया गया।

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अजमेर

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Kamal Mishra

Dec 24, 2025

kanchan Chauhan

फोटो-पत्रिका

अजमेर। राजस्थान के ब्यावर से भाजपा विधायक शंकर सिंह रावत की नायब तहसीलदार बेटी कंचन चौहान पर फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र के मामले कार्रवाई की गई है। कंचन चौहान आरएएस-2018 बैच की अधिकारी हैं और भीलवाड़ा जिले के करेड़ा में नायब तहसीलदार के पद पर तैनात थीं, जिनको एपीओ कर दिया गया।

ब्यावर के रहने वाले फणीश कुमार सोनी ने 12 अगस्त को मुख्यमंत्री और आरपीएससी को शिकायत दी। शिकायत में कहा गया कि कंचन चौहान ने फर्जी दिव्यांग प्रमाणपत्र लगाकर नियुक्ति हासिल की। इसके बाद राज्य सरकार के निर्देश पर राजस्व मंडल राजस्थान, अजमेर ने प्रशासनिक कारणों से कंचन चौहान को एपीओ (अटैच्ड पोस्टिंग ऑर्डर) कर दिया। अब उन्हें अगले आदेश तक राजस्व मंडल अजमेर में उपस्थिति दर्ज करानी होगी। यह आदेश मंगलवार शाम को जारी हुआ।

शिकायतकर्ता ने क्या कहा?

शिकायतकर्ता फणीश कुमार सोनी ने कहा कि जांच में आगे और महत्वपूर्ण सबूत मिल सकते हैं। वे सरकार की चल रही जांच से संतुष्ट हैं और निष्पक्ष कार्रवाई की उम्मीद करते हैं। उन्होंने दोबारा मेडिकल परीक्षण की मांग की है। इसके लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में मेडिकल बोर्ड बनाने की बात कही। शिकायत में कंचन के नवोदय स्कूल और उदयपुर यूनिवर्सिटी के दस्तावेजों की जांच की भी मांग की गई है।

कंचन को 2013 और 2016 में नहीं मिली सफलता

कंचन चौहान ने 2018 में आरएएस परीक्षा दी और इंटरव्यू के बाद करीब 600 रैंक हासिल की। इससे पहले 2013 और 2016 में भी उन्होंने परीक्षा दी थी, लेकिन सफल नहीं हो पाईं। कंचन की पहली पोस्टिंग 27 दिसंबर 2021 को भीलवाड़ा के गुलाबपुरा में नायब तहसीलदार के रूप में हुई। करीब एक साल से वे करेड़ा में तैनात थीं।

फर्जी प्रमाणपत्र जारी करने वाले डॉक्टर सेवानिवृत्त

शिकायत के बाद आरपीएससी और एसओजी से जांच करवाई गई। राज्य सरकार ने जांच एसओजी को सौंपी थी। हालांकि, जांच रिपोर्ट अभी राजस्व मंडल को नहीं भेजी गई है। राजस्व मंडल ने पिछले 5 साल में दिव्यांगता प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी पाने वाले सभी लोगों की दोबारा जांच करवाई थी। इस मामले में जिन डॉक्टर ने दिव्यांग प्रमाणपत्र जारी किया था, वे स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले चुके हैं।