
फोटो वाहिद पठान
अजमेर। ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में सदियों पुरानी परम्पराएं-रसूमात जारी हैं। खासतौर पर उर्स के दौरान एक से छह रजब तक महफिल में पेश की जाने वाली चाय सबसे अलग होती है। ऐसी चाय 109 साल से बन रही है। करीब साढ़े 4 घंटे तक दूध उबालने के बाद चाय-पत्ती, जाफरानी-केसर डालकर चाय तैयार होती है। इसे पीने के लिए देर रात तक लोग इंतजार करते हैं।
तैयार करने वाले इमरान ने बताया कि प्रतिदिन 50 किलो दूध को विशेष तांबे की केतली समावर या समोवर में साढ़े 4 घंटे तक उबाला जाता है। दूध को प्रतिदिन रात्रि 9 बजे आंच पर चढ़ाया जाता है। इसे लगातार चम्मच से हिलाया जाता है, ताकि मलाई नहीं बने।
दूध में चाय की पत्ती डालने का तरीका भी अनोखा है। पहले चाय पत्ती को खादी के कपड़े से बनी थैली में डाला जाता है। इसके बाद इसे पानी में आधा घंटे तक उबालकर खौलते दूध में डालते हैं। बाद में चीनी डालकर इसे लगातार उबाला जाता है।
उबलते दूध-चाय की पत्ती के साथ जाफरानी और केसर के साथ इलायची, काली मिर्च, लौंग और अन्य सामग्री डालते हैं। टोंटी युक्त समावर के ऊपर कोयले डाले जाते हैं। इससे गर्माहट हमेशा बनी रहती है। मजार शरीफ पर गुस्ल करने के बाद चाय को महफिल खाने में मिट्टी के सिकोरे अथवा कप में पेश किया जाता है।
ब्रिटिशकाल में अंग्रेजों के लिए इसी तरह चाय तैयार होती थी। वर्ष 1916 से उर्स में खास चाय की परम्परा शुरू हुई। नवाब खादिम हसन गुदड़ी शाह तृतीय की अगुवाई में चाय बनती थी। तब से यह परम्परा लगातार जारी है। ऐसी मान्यता है कि ऐसी औषधि युक्त चाय पीने से बीमारियां भी ठीक होती हैं।
Updated on:
23 Dec 2025 04:53 pm
Published on:
23 Dec 2025 04:33 pm
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