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अजमेर दरगाह में हर साल होगी उर्स में देग की बुकिंग

ajmer dargah news : विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा साहब की दरगाह में उर्स के दौरान देग पकवाने के लिए अब 10 साल तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा। उर्स की देग अब उसी साल बुक करवाई जा सकेगी जिस साल पकवानी है।

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अजमेर दरगाह में हर साल होगी उर्स में देग की बुकिंग

अजमेर दरगाह में हर साल होगी उर्स में देग की बुकिंग

युगलेश शर्मा. अजमेर.

विश्व प्रसिद्ध ख्वाजा साहब की दरगाह (ajmer dargah) में उर्स के दौरान देग पकवाने के लिए अब 10 साल तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा। उर्स की देग अब उसी साल बुक करवाई जा सकेगी जिस साल पकवानी है। दरगाह कमेटी ने उर्स के दौरान देग पकवाने की बुकिंग के नियमों में बदलाव कर दिया है। वर्ष 2021 के उर्स के लिए अप्रैल में बुकिंग प्रक्रिया शुरू कर दी जाएगी।

ख्वाजा साहब के मुरीद अपनी मन्नत पूरी होने के बाद दरगाह में रखी बड़ी और छोटी देग पकवाते हैं। दस दिन चलने वाले उर्स के दौरान केवल छोटी देग ही रात के समय पकवाई जा सकती है। पूर्व में उर्स की देग पकवाने के लिए अगले 10 साल तक की बुकिंग करवाई जाने की व्यवस्था चलन में होने से वर्ष 2001 में ही 2020 तक के उर्स की देग बुक हो गई थीं। इससे कई इच्छुक जायरीन कतार में ही रह गए। इसे देखते हुए दरगाह कमेटी ने अब हर साल देग की बुकिंग किए जाने का निर्णय लिया है।


2 लाख में पकती है बड़ी देग

खादिमों की संस्था अंजुमन के सचिव वाहिद हुसैन अंगारा शाह के अनुसार छोटी देग पर 50 हजार से 1 लाख रुपए और बड़ी देग पकवाने पर 1 सवा लाख से 2 लाख रुपए तक खर्च होते हैं। देग बुकिंग का जिम्मा दरगाह कमेटी के पास है। पहले बड़ी देग के 12 हजार व छोटी देग के 6 हजार रुपए बुकिंग के लगते थे, जो अब क्रमश: 14 व 7 हजार कर दिए हैं।

केवल शाकाहारी भोजन

दरगाह की बड़ी देग में 120 मण (4800 किलो) और छोटी देग में 60 मण (2400 किलो) प्रसाद (तबर्रुक) मीठे चावल के रूप में रोज पकाया जाता है। हजारों जायरीन में यह प्रसाद बांटा भी जाता है। देग में केवल शाकाहारी भोजन ही पकाया जाता है। यहां तक लहसुन और प्याज भी नहीं डाले जाते। देग में पकने वाली सामग्री निर्धारित है। इसकी बाकायदा दरगाह कमेटी में सूची उपलब्ध है।

मुगल बादशाहों ने रखवाई थी देग

ख्वाजा साहब की दरगाह में बड़ी देग मुगल बादशाह अकबर ने और छोटी देग बादशाह जहांगीर ने पेश की थी। खादिम सैयद गनी गुर्देजी ने बताया कि बादशाह अकबर बेटे सलीम की पैदाइश पर आगरा से अजमेर तक पैदल चल कर आए और यहां दरगाह में देग पकवा कर मन्नत उतारी थी।

महीनों पहले हो जाती है बुकिंग

आम दिनों में भी देग पकवाने के लिए जायरीन महीनों पहले बुकिंग करवा लेते हैं। बड़ी देग केवल रात के समय ही पकाई जाती है। जबकि छोटी देग के लिए यह पाबंदी नहीं है। इसके अलावा इनमें दिनभर नजराना चढ़ाया जाता है। इनमें नकदी व आभूषण के अलावा चावल के कट्टे भी होते हैं। उर्स के दौरान रात के समय केवल छोटी देग की पकाई जाती है। बड़ी देग की बुकिंग बंद रहती है।

इस बार 2.94 करोड़ का ठेका

इन देगों का आय के लिहाज से बाकायदा ठेका छोड़ा जाता है। इस साल उर्स के दौरान 25 दिन के लिए 2 करोड़ 94 लाख रुपए में ठेका छोड़ा गया है। उर्स के अलावा हर तिमाही में देग का ठेका छोड़ा जाता है।