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कड़ाके की ठंड में अजमेर में ठिठुरते हुए खुले में गुजारते जाड़े की रात

फुटपाथ पर सोने को मजबूर खानबदोश  

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कड़ाके की ठंड में अजमेर में ठिठुरते हुए खुले में गुजारते जाड़े की रात

जवाहरलाल नेहरू अस्पताल के सामने सर्द रात में दुकान के बाहर सोते लोग।

अजमेर. ‘‘नींद तो दर्द के बिस्तर पे भी आ सकती है, उनकी आगोश में सर हो ये जरूरी तो नहीं।’’ ये शेर अजमेर शहर के उन साधनहीन लोगों पर सटीक बैठता है जो इन दिनों मंगसर की हाड़ कंपाती ठंड में सडक़ों पर, फुटपाथ किनारे, दुकानों की चौहद्दी या स्टेशन या बस स्टैंड के परिसर में खुले में ठिठुरते हुए लम्बी स्याह रात बसर कर रहे हैं। इन लोगों में बड़ी संख्या में फकीर-भिखारी होते हैं जो दिनभर भीख मांगते हैं और फुटपाथ पर कचरे-गंदगी के पास सर्द रात गुजारते हैं जहां उनके जहरीले जीव काटने का भी खतरा रहता है।

कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जिनके परिजन अस्पतालों में भर्ती होते हैं लेकिन उनके पास इतने पैसे नहीं होते कि किसी होटल-गेस्ट हाउस या धर्मशाला में ठहर सकें। जबकि काफी तादाद मुसाफिरों की होती है जिन्हें ट्रेन या बसों के इंतजार करना होता है। ऐसे लोगों के साथ छोटे-छोटे बच्चे भी होते हैं जो खुले आसमान के नीचे सोने की मजबूरी के चलते मां की छाती से चिपक ठिठुर जाड़े की रात बिताते हैं।
जाड़े की रात बिताने के लिए रैन बसेरे खुले हैं या नहीं, इन्हें नहीं पता। अलबत्ता इसी तरह कंपकंपाते हुए रात बिताना इनकी मजबूरी है। पत्रिका टीम ने शनिवार रात सडक़ किनारे फुटपाथों पर दुकानों के बाहर खुले में रात गुजारते लोगों के हालात का लिया जायजा-

यहां है स्थायी रैन बसेरे :
जेएलएन व जनाना अस्पताल, लौंगिया अस्पताल, पड़ाव, आजाद पार्क, नौसर घाटी।

जरूरत पडऩे पर यहां अस्थायी रैन बसेरे : केंद्रीय बस स्टैंड, बजरंगगढ़ चौराहा।
ये सुविधाएं : बिस्तर व रजाई, गर्म पानी के लिए गीजर, महिलाओं व पुरुषों के लिए अलग व्यवस्था।

इनका कहना है
शहर में 6 स्थायी व जरूरत पडऩे पर स्वयंसहायता समूहों की मदद से दो स्थानों पर अस्थायी रैन बसेरों की व्यवस्था की जाती है। इनमें अधिकतम 300 लोगों के ठहर सकते हैं। लोग अपने पहचान-पत्र दिखाकर रैन बसेरों में ठहर सकते हैं। फुटपाथों पर अक्सर भिखारी और खानाबदोश लोग सोते हैं।

-गजेंद्र सिंह रलावता, उपायुक्त अजमेर नगर निगम