
construction work in anasagar
उपेंद्र शर्मा/अजमेर.
संभवत: संसार की गिनी-चुनी झीलों में से एक है जिसे प्रकृति ने एक जबरदस्त वरदान दिया है। यह झील चारों तरफ से मानव आबादी से घिरी हुई है। हर तरफ ट्रेफिक का शोर है। पानी बेहद गन्दा है। मछली पालन भी होता है। उन्हें पकडऩे के लिए जाल बिछाये जाते हैं। नौकायन भी हो रहा है। इन सबके बावजूद प्रवासी पंछी यहां आते हैं। यूरोप, मध्य एशिया, तिब्बत, चीन, ईरान, म्यामार, अफगानिस्तान, अफ्रीका आदि से 5-7 हज़ार किलोमीटर की खतरों भरी यात्रा कर के यहां तक पन्हुचते हैं।
यह अद्भुत है। ऐसी खूबी वाली संसार में 10 झीलें भी नहीं हैं। अजमेर के लिए यह बहुत बड़ी धरोहर है। फिऱ भी हम क्या करते हैं। हम पंछियों को इतना व्यवधान पन्हुचाते हैं कि निस्सन्देह वे हमारी समझ पर हंसते होंगे कभी हम उनके पास डीजे बजाते हैं और फूहड़ होकर डान्स करने लगते हैं। झील के किनारे मैरीज गार्डन हैं जहां शादियों में क्गूब पटाखे फोड़े जाते हैं। कभी उन्हें नमकीन और ब्रेड खिलाते हैं और यह समझते हैं कि बहुत भलाई का काम कर रहे हैं। कभी हम नावों में बैठकर उनका पीछा करते हैं। उनकी चौन्च में घुसकर तस्वीरें खींचना चाहते हैं। ड्रॉन कैमरे उड़ातें हैं।
वे पहचानते हैं झील को
अब इन दिनों एक नया शौक हमारे शहर के खैरख्वाहों को चढा है। वे पुरानी विश्राम स्थली के खंडहरों को गिराना चाहते हैं। वहां एक पक्षी विहार, बेटी गौरव उध्यान और ना जाने क्या क्या बनाना चाहते हैं। वे इन्हें झील की सुन्दरता में बाधा मानते हैं और चाहते हैं कि इन्हें गिरा दिया जाये। जबकि वे यह नही जानते कि झील में इन प्रवासी परिन्दों की पहली लैंडिंग (पदार्पण) ही वहीं होती है। एक एक खंडर, पुराने कुओं की मुंडेर, दीवारों पर वो विश्राम करते हैं। जब इन्हें गिरा देन्गे तो पक्षी क्या विश्राम करने किसी होटल में जाएँगे। वे उनके लिए लैण्ड मार्क का काम करते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी इनके जरिए वे झील को पहचानते हैं। इन ढांचो पर उन्के मूत्र और विष्ठा से इलाका तय होता है।
उनको मजा लेने दो
यह खण्डहर उनके घर की तरह हैं।इनको धाराशाई करने से मिलेगा क्या ? इसका जवाब किसी के पास नहीं है। सुन्दरता तो झील के बाकि तरफ है ही ना तो एक तरफ बदसूरत (सिर्फ उनके हिसाब से) ही रहने दो। अगर पंछियों को वहां मज़ा आ रहा है तो उनको मजा लेने दो ना। लेकिन किसी ने खूब कहा है कि सरकारी काम में पुराने को गिराया नहीं जाये तो 'नया' (कंस्ट्रक्शन) कैसे बनेगा और नया नही बनेगा तो नयों (अफसरान) का 'काम' कैसे चलेगा।
मेकप्ड दुल्हन लगती डरावनी
एक फरवरी (शुक्रवार) को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के चीफ इन्जीनियर अनिल जैन जी और उनके एक युवा सहायक अभियन्ता रवि शर्मा ने मुझे भी इस जगह की विजिट करवा कर मेरी राय जानी। जैन साब और रवि बहुत दक्ष अभियन्ता हैं। उम्मीद है कि उनकी देख रेख में झील अपने मूल रूप में बनी रहेगी क्युंकि ओवर मेकप्ड दुल्हन सुन्दर नहीं बल्कि डरावनी लगती है।
मैने अपनी राय उन्हें बता दी है कि झील में किसी भी खण्डहर या ढांचे को ना तोड़ा जाये। ना ही किसी पेड़ को (चाहे वो सूख ही गया हो) काटा जाए। नागरिक, पक्षी प्रेमी और पत्रकार के रूप में मेरी यही अपील है कि पंछियों को डिस्टर्ब ना करें। उनके लिए इंसानी नजऱों से सपने ना देखें। कहीं ऐसा ना हो कि उनके लिए जबरन बेहतर करने के चक्कर में हम उन्हें इतना नाराज़ कर दें कि वे हमारे यहां आना कम कर दे और शायद हमेशा के लिए ही आना छोड़ दें।
Published on:
02 Feb 2019 10:43 am
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