31 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

ब्लैक गोल्ड है यह नशे का कारोबार, ये है हमारे उड़ते राजस्थान की तस्वीर

www.patrika.com/rajasthan-news

3 min read
Google source verification
drug deal in rajasthan

drug deal in rajasthan

रक्तिम तिवारी/अजमेर।

ड्रग्स और मादक द्रव्यों की बढ़ती लत की बात चले तो सबकी नजरें पंजाब की तरफ उठती हैं। वहां के बच्चों-युवाओं की नशीली लत पर बॉलीवुड तो बाकायदा उड़ता पंजाब फिल्म भी बना चुका है। लेकिन इससे कुछ मिलते-जुलते हालात राजस्थान में भी बनते दिख रहे हैं। मरुधरा के 12 से 17 वर्ष के किशोर और 18 से 25-30 साल के कई नौजवानों को नशीली दुनिया बुरी तरह जकड़ चुकी है। दुनिया को सूफियत का पैगाम देने वाले अजमेर और सृष्टि रचयिता ब्रह्माजी की नगरी में नशे का कारोबार जबरदस्तपैर पसार चुका है।

चारों तरफ नशा ही नशा
सडक़ों पर जिंदगी गुजर-बसर करने वाले खानाबदोश, भिक्षावृत्ति में लिप्त लोग और उनके बच्चे अच्छी स्कूल-कॉलेज में पढऩे-लिखने वाले कई किशोर एवं नौजवानों को हेरोइन, ब्राउन शुगर, डोडा, पोस्त, अफीम और अन्य मादक द्रव्यों की लत पड़ चुकी है। दरगाह से सटे इलाकों और खास खुले इलाकों में आसानी से ड्रग्स की पुडिय़ा उपलब्ध कराई जा रही है। पुष्कर में भी खानाबदोशों के डेरो, रेतीले धोरों और होटलों में भी खुलेआम नशा परोसा जा रहा है। प्रदेश के प्रमुख पर्यटक स्थल माने जाने वाले माउन्ट आबू, जैसलमेर, उदयपुर, अलवर, भरतपुर और अन्य शहरों के हाल भी अजमेर जैसे हैं। नशीला कारोबार शहरी और ग्रामीण इलाकों में तेजी से फल-फूल रहा है। जोधपुर में तो दो-तीन साल पहले महिला ड्रग डॉन को पकड़ा जा चुका है। इस शातिर महिला कारोबारी के कारनामे सुनकर तो समूचा देश स्तब्ध रह गया था।

ब्लैक गोल्ड है कारोबार
दरअसल मादक द्रव्यों का कारोबार अवैध कारोबारियों के लिए ‘काला सोना ’ है। चौबीस घंटे लाखों-करोड़ों की नशीली खेप इधर से उधर चली जाती है। कारोबारियों के पास ऑडी, फॉच्र्यूनर जैसी तेज रफ्तार गाडिय़ां हैं। मोबाइल, जीपीएस, सेटेलाइट फोन पर उनका जबरदस्त नेटवर्क है। पुलिस और नारकोटिक्स विभाग की हर छोटी-बड़ी हलचल पर उनकी नजरें रहती हैं। हालांकि गाहे-बगाहे पुलिस और नारकोटिक्स विभाग नशीले कारोबारियों की धरपकड़ भी करते हैं। ब्राउन शुगर, हेरोइन, अफीम जैसे नशीले पदार्थ जब्त किए जाते हैं। लेकिन नशीली जलकुंभी स्कूली बच्चों, कॉलेज, विश्वविद्यालयों में पढऩे वाले युवाओं तक जा पहुंची है।

जब चाहो तब उपलब्ध
शहरों-कस्बों में कहीं खुलकर तो कहीं छात्रावास-रेस्टोरेंट, होटल में चोरी-छिपे मादक पदार्थ आसानी से उपलब्ध हैं। खुद को तेज-तर्रार, टेक्नो फे्रंडली मानने वाली पीढ़ी नशे के दलदल में फंसती जा रही है। जरा से लालच के लिए संस्थानों के सहकर्मी, कर्मचारी और नशीले कारोबारी मादक द्रव्य पहुंचाने से नहीं चूक रहे।ड्रग्स और अन्य मादक द्रव्यों का सीधा असर दिलो-दिमाग पर पड़ता है। नशीली पुडिय़ा नहीं मिलने पर बच्चे-युवा मछली से तड़पते दिखते हैं। कई तो पुडिय़ा खरीदने के लिए चोरियां करने से नहीं चूकते। तेजी से बदलते देश की यह तस्वीर खौफजदा करने वाली है। हालात भयावह हों उससे पहले पाल बांधनी जरूरी है। केवल सख्त कानून बनाने, अपराधियों को पकडऩे से काम नहीं चलेगा।

अपनाना होगा ये फार्मूला
पुलिस और अन्य सरकारी महकमों के अफसरों-कार्मिकों और सरकार को नशा मुक्त राजस्थान मिशन में जुटना होगा। जिस तरह आतंकवाद के सफाए में गोली के बदले गोली का फार्मूला अपनाया गया वैसे ही नशीले कारोबार की कमर तोडऩे की बहुत जरूरत है। पर्यटक और धार्मिक स्थलों पर पुलिस के अलावा स्वयं सेवकों, सामाजिक संस्थाओं के कर्ताधर्ताओं को सादा वर्दी, कैमरे, मोबाइल से पैनी निगाह रखनी होगी। कुछ ले-दे कर मामला रफा-दफा करने, कारोबारियों के पकड़े जाने पर उनके बचाव की भूमिका को बदलना होगा।

नशे की गिरफ्त में जकड़े बच्चों, युवाओं और लोगों की दिनचर्या और व्यवहार को समझते हुए नई भूमिका में आना पड़ेगा। उन्हें सेहत के प्रति जागरुक, नशे के घातक परिणाम के बारे में बताने के अलावा उनका मानसिक उपचार करना होगा। तभी कोई सार्थक परिणाम सामने आ सकते हैं। वरना कुछ बरसों में ही लोगों को थियेटर में उड़ता राजस्थान फिल्म देखने को मिल सकती है।