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global warming: बदल रहा है मौसम, छह साल से कम बरसात

पानी की कमी और सार-संभाल के अभाव में करीब 30 लाख पौधे तो सूखकर नष्ट हो गए। कई पौधे अतिक्रमण (illegal capture) की भेंट चढ़ गए।

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पानी की कमी और सार-संभाल के अभाव में करीब 30 लाख पौधे तो सूखकर नष्ट हो गए। कई पौधे अतिक्रमण (illegal capture) की भेंट चढ़ गए।

global warming effect

अजमेर

शहर और जिले में मौसम (weather )में लगातार बदलाव हो रहा है। छह साल से कम बरसात और सिमटती हरियाली (green belt) इसका परियाचक है। गर्मी में पारे का 45 से 47 डिग्री तक पहुंचना, सर्दियों में मावठ की कमी पर्यावरण में बदलाव का संकेत है। कभी हरी-भरी दिखने वाली अरावली अब सूखी नजर आती है। बीते 20 साल में यहां से कई औषधीय पौधे लुप्त हो चुके हैं।

बारिश हो रही है कम
जिले में बीते छह साल से पर्याप्त बारिश नहीं हो हुई है। पिछले साल जिले में 1 जून से 15 अगस्त तक मात्र 270 मिलीमीटर बरसात ही हुई। इसके बाद मानसून सुस्त हो गया। इस दौरान हल्की-फुल्की बरसात हुई। मुश्किल से जिले की औसत बारिश (average rain) का आंकड़ा 325 मिलीमीटर तक पहुंच सका। जबकि जिले की औसत बरसात के 550 मिलीमीटर है। जिले के कई जलाशय तो सूखे ही रहे। पुष्कर सरोवर में भी कम पानी की आवक हुई। जिले में 2012 में 520.2, 2013 में 540, 2014 में 545.8, 2015 में 381.44, 2016-512.07, 2017 में 450 मिलीमीटर बारिश ही हुई। आंकड़ों की मानें तो जिला छह साल में करीब 500 मिलीमीटर बरसात से वंचित रहा है।

30 लाख पौधे हुए बर्बाद
वन विभाग और सरकार बीते 50 साल में विभिन्न योजनाओं में पौधरोपण करा रहा है। इनमें वानिकी परियोजना, नाबार्ड और अन्य योजनाएं शामिल हैं। इस दौरान करीब 40 से 50 लाख पौधे लगाए गए। पानी की कमी और सार-संभाल के अभाव में करीब 30 लाख पौधे तो सूखकर नष्ट हो गए। कई पौधे अतिक्रमण (illegal capture) की भेंट चढ़ गए। हालांकि वन विभाग का दावा है, कि अजमेर जिले 13 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र बढ़ा है। इसमें 7 वर्ग किलोमीटर मध्य घनत्व और 6 वर्ग किलोमीटर खुला वन क्षेत्र बताया गया है।

बदल रही हैं ऋतुएं..
अजमेर जिले में ऋतुओं (sesons)पर भी असर पड़ा है। शीत ऋत देरी से शुरू हो रही है। दस साल पहले तक कार्तिक माह में गुलाबी ठंडक (pink coldness) दस्तक दे देती थी। लेकिन अब अक्टूबर-नवम्बर तक गर्मी (summer) पसीने छुड़ाती दिखती है। साल 2017 में तो अक्टूबर के अंत तक तापमान 38 से 40 डिग्री के बीच रहा था। इससे पहले साल 2015 में दिसम्बर तक अधिकतम तापमान 30 डिग्री के आसपास था। जबकि 2016 में जनवरी के दूसरे पखवाड़े में ही अधिकतम तापमान 25 से 29 डिग्री के बीच पहुंच गया था। ग्रीष्म ऋतु में भी तापमान (temprature) 45-46 डिग्री तक पहुंचने लगा है।

अब फरवरी-मार्च में गर्मी
ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत फरवरी में ही होने लगी है। पिछले दस साल में यह परिवर्तन देखने को मिला है। फरवरी और मार्च की शुरुआत तक हल्की ठंडक बनी रहती थी। लेकिन अब इन दोनों महीने में तापमान 35 से 39 डिग्री तक पहुंचने लगा है। पिछले साल फरवरी के अंत तक पारा 34 डिग्री और मार्च में 40.4 डिग्री तक पहुंच गया था। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभागाध्यक्ष प्रो. प्रवीण माथुर की मानें तो ग्लोबल वार्मिंग से मौसम असामान्य बनता जा राह है। जिन स्थानों पर कम बरसात होती थी वहां अतिवृष्टि और बाढ़ आ रही है।


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