खादिम एस.एफ.हसन चिश्ती ने बताया कि बकरीद (
bakaraeid) के मौके पर यहां कच्छ, भुज, बाड़मेर, जैसलमेर आदि सरहदी क्षेत्रों से भी बड़ी संख्या में पशुपालक यहां पहुंचे। यह लोग रातभर जागकर विशेष इबादत करने के बाद सुबह जन्नती दरवाजे से गुजर कर ख्वाजा साहब के मजार पर मत्था टेकते हैं और हज की तमन्ना पूरी करते हैं। ऐसी मान्यता है कि जन्नती दरवाजे से सात बार गुजर कर जियारत करने से जन्नत नसीब होती है। इसलिए अकीदतमंद सात बार इस दरवाजे से गुजरते हैं। सरहदी क्षेत्रों से आने वाले लोग सालभर का लेखा जोखा यहा पेश करते हैं और वर्ष भर में होने वाले आपसी मनमुटाव को भी यहीं आकर दूर करते हैं।
READ MORE :
फारूक अब्दुल्ला ने 15 दिन पहले अजमेर में जताया था अंदेशा बाड़मेर से आया पैदल बाड़मेर से अली नामक व्यक्ति पैदल यात्रा कर अजमेर पहुंचा है। अली ने बताया कि वह पिछले 18 साल से बकरीद के मौके पर यहां आ रहा है। बाड़मेर से वह 10 दिन में यहां पहुंचा है।