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ये कैसी यूनिर्वसिटी जहां लोग कुलपति बनने में intrusted नहीं , पढ़ें क्या है पूरा मामला

महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में स्थायी कुलपति बनने के लिए शायद प्रोफेसर्स की रुचि कम है।

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in mds university people not intrusted to join as vice chancellor

अजमेर . महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में स्थायी कुलपति बनने के लिए शायद प्रोफेसर्स की रुचि कम है। विश्वविद्यालय को पिछली बार की अपेक्षा कम आवेदन मिले हैं। इनमें से अधिकतर आवेदक वही हैं, जिन्होंने बीते सितम्बर में भी फार्म भरे थे। अलबत्ता विश्वविद्यालय आवेदनों की जांच कर सर्च कमेटी को सौंपेगा।

विश्वविद्यालय ने स्थायी कुलपति की नियुक्ति के लिए नए सिरे से आवेदन मांगे थे। यह प्रक्रिया पूरी हो गई है। विश्वविद्यालय स्तर पर आवेदन की जांच और सूचीबद्ध करने का काम जारी है। इन्हें कुलपति सर्च कमेटी को सौंपा जाएगा। सर्च कमेटी की बैठक जयपुर या दिल्ली में होगी। कमेटी तीन या पांच नामों का पैनल बनाकर गोपनीय लिफाफा सरकार और राजभवन को सौंपेगी।

पिछली बार से कम आवेदन
बीते सितम्बर में कुलपति पद के लिए देश भर के करीब 65 प्रोफेसर ने आवेदन किए थे। इनमें से पांच नाम के पैनल पर सरकार और राजभवन में सहमति नहीं बन सकी। लिहाजा विश्वविद्यालय ने कुलपति पद के लिए दोबारा आवेदन मांगे। इस बार करीब 40-45 प्रोफेसर ने ही आवेदन किए हैं। इनमें भी कई आवेदकों ने पिछली बार भी फार्म भरे थे।

आवेदकों में मदस विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय, उदयपुर के मोहनलाल सुखाडिय़ा विश्वविद्यालय, जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, दिल्ली, लखनऊ, आगरा सहित अन्य विश्वविद्यालयों और कॉलेज के प्रोफेसर शामिल हैं। यूजीसी के नियमों पर नजरें...

कुलपति पद के लिए यूजीसी के नियम निर्धारित हैं। इसमें 70 वर्ष से कम उम्र के प्रोफेसर जिन्हें 10 साल का अध्यापन और शोध और किसी प्रशासनिक संस्थान में कामकाज का अनुभव हो वे आवेदन कर सकते हैं। प्रदेश के कई विश्वविद्यालयों में पिछले चार-पांच साल में कुलपतियों की नियुक्तियों में यूजीसी के नियमों की अवहेलना हुई है। कुछ कुलपतियों को बतौर प्रोफेसर दस साल का अनुभव नहीं है। इसके बावजूद सियासी रसूखात से वे कुलपति बन गए। राजस्थान विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति जे. पी. सिंहल को तो इस्तीफा देना पड़ा था। कुछ मामलों में राजस्थान हाईकोर्ट में याचिकाएं भी दायर हुई हैं।