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विश्व विख्यात पुष्कर मेला खो रहा अपनी पहचान, मेले में घटती पशुओं की संख्या है प्रमुख कारण

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विश्व विख्यात पुष्कर मेला खो रहा अपनी पहचान, मेले में घटती पशुओं की संख्या है प्रमुख कारण

पुष्कर . मेले में पिछले वर्षों से लगातार घट रहे पशुओं से मेला अपना वास्तविक स्वरूप खोता जा रहा है। पशुओं की आवक दिनो दिन कम ही होती जा रही है। इसका कारण प्रशासनिक स्तर पर पशुपालकों को सुविधाएं नही देना मानें या फिर कृषि के परम्परागत तौर तरीकों का आधुनिकतम होना है, लेकिन मेले का स्वरूप बदलता ही जा रहा है।

पशुपालन विभाग के पिछले रिकॉर्ड पर नजर डाली जाए तो पुष्कर मेले में वर्ष-2006 में सर्वाधिक 23852 पशुओंं की आवक हुई थी। इस दौरान सर्वाधिक 14086 ऊंट 3304 अश्व वंश आए थे। इसके बाद से यह आवक लगातार घटती ही जा रही है। 2017 में यह संख्या एक चौथाई रह गई। अश्व वंश में ग्लेंडर बीमारी का प्रकोप होने की सूचना के कारण केवल ऊंटों की ही गिनती हो सकी थी तथा सबसे कम 4200 की आवक ही दर्ज की गई थी।


राज्य के बाहर ले जाने की पाबंदी मेले में ऊंटों की कमी को लेकर पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक डॉ अजय अरोड़ा का मानना है कि राज्य के बाहर पशुओं के ले जाने पर कानूनी पाबंदी लगाने से इसका दुष्प्रभाव माना जा रहा है। अरोड़ा का कहना है कि पहले उत्तरप्रदेश व अन्य राज्यों के खरीदार आते थे जब प्रदेश से बाहर ले जाने पर ही रोक लग गई तो खरीदारों का आना बंद हो गया तथा पशुओं की आवक निरंतर कम होती जा रही है। डॉ. अरोड़ा ने बताया कि ब्यावर के पास ऊंटों का बाडिय़ा था वहां पर करीब तीन चार हजार ऊंट थे अब यह पांच सौ ऊंट ही बचे हैं।

5500 पशु आए, रवानगी 16 को

मेला मैदान में बुधवार की शाम तक कुल 5500 पशुओ की आवक रिकॉर्ड पर आई है। इनमें 3400 ऊंट वंश तथा 1400 अश्व वंश की आवक है शेष अन्य वंश के है। 17 नवम्बर को पशुओं की रवानगी शुरू हो जाएगी।


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