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पक्के मकानों की ‘कच्ची बस्ती’. . .फिर भी पट्टों को मोहताज. .

नागफणी शहरी क्षेत्र के करीब दो हजार मकानों का सर्वे ही नहीं - पट्टों के लिए लोग काट रहे विभागों के चक्कर सरकार द्ववारा प्रशासनिक अभियान चलाकर लोगों को पट्टे जारी करने की योजना में विभागों की कार्यप्रणाली ही व्यवधान साबित हो रही है। जन कल्याणकारी योजना के तहत कच्ची बस्ती नियमन की हकीकत घोषणा से कतई उलट है।

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अजमेर

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Dilip Sharma

Sep 12, 2023

पक्के मकानों की 'कच्ची बस्ती'. . .फिर भी पट्टों को मोहताज. .

पक्के मकानों की 'कच्ची बस्ती'. . .फिर भी पट्टों को मोहताज. .

अजमेर. सरकार द्ववारा प्रशासनिक अभियान चलाकर लोगों को पट्टे जारी करने की योजना में विभागों की कार्यप्रणाली ही व्यवधान साबित हो रही है। जन कल्याणकारी योजना के तहत कच्ची बस्ती नियमन की हकीकत घोषणा से कतई उलट है। इसके लिए प्रशासन शहरों के संग अभियान के तहत शिविर लगाए जाते हैं। प्रचार-प्रसार किया जाता है। लेकिन कच्ची बस्तियों के नियमन को लेकर इतनी तकनीकी पेचीदगियां बताई जाती हैं कि आवेदक स्थानीय निकायों के चक्कर लगाकर परेशान हो जाते हैं। (ब्लर्ब)

'कच्ची बस्ती' क्षेत्र में कई कॉलोनियां आबाद

शहर के वार्ड छह व सात के आसपास के क्षेत्र छोटी नागफणी, बाबूगढ़, गोपाल कुंड रोड, प्रिंस हिल कॉलोनी, पोस्टमैन कॉलोनी, महादेव नगर, संजय नगर, अंबा कॉलोनी, राहुल नगर, कृष्णा नगर आदि कच्ची बस्ती क्षेत्र में अधिसूचित हैं। यहां लोगों ने पानी-बिजली के कनेक्शन ले रखे हैं। अधिकांश लोग 15-20 साल व इससे भी पहले से बसे हैं। इन क्षेत्रों में करीब दो हजार मकान हैं।दफ्तर में चक्कर लगाने की मजबूरी

पार्षद कुंदन वैष्णव ने बताया कि सरकार की मंशा 500 रुपए में आवेदक को पट्टा देने की है। लेकिन हकीकत है कि प्रभावशाली लोग पट्टा बनवाने में सफल हो जाते हैं, जबकि मेहनत मजदूरी करने वाला दिहाड़ी श्रमिक सालों से मकान में रहने के बावजूद उसका मालिक नहीं बन पाता। आवेदन में भी खासी राशि व दस्तावेजों की व्यवस्था करनी पड़ती है।

सर्वे ही नहीं हुआ, कैसे मिलेंगे पट्टेपार्षद वैष्णव ने बताया कि इस क्षेत्र में पटवारी या गिरदावर सर्वे के लिए ही नहीं आए। भूमि की किस्म क्या है, एडीए के राजस्व रिकार्ड में सरकारी है, जमाबंदी में भूमि की किस्म सरकारी है या नगर सुधार न्यास या एडीए के नाम है, इसका पता ही नहीं है। करीब सत्रह साल पहले नगर सुधार न्यास ने जरूर पट्टे दिए थे। इसके बाद यहां इक्का दुक्का पट्टे ही बने हैं। क्षेत्र में दो हजार से अधिक आवास हैं।

इनका कहना है

आवेदन करने में कोई खर्च नहीं। एडीए की ओर से क्षेत्र में आवेदन-फॉर्म वितरित किए गए थे। जिन्होंने आवेदन किया उनके दस्तावेज की जांच के बाद ही सर्वे किया जाता है। कुछ साल पहले सर्वे कराया था लेकिन आवेदकों के पास पर्याप्त दस्तावेज नहीं मिले। इसलिए पट्टे जारी नहीं किए गए होंगे।

सूर्यकांत शर्माउपायुक्त, एडीए