किशनगढ़ . एशिया की सबसे बड़ी मार्बल मंडी किशनगढ़ अब ग्रेनाइट हब के रूप में विकसित हो चुका है। बीते तीन-चार सालों के भीतर ही ग्रेनाइट की 198 नई फैक्ट्रियां खुल चुकी और इनमें क?प्यूटराइज्ड 339 मल्टी कटर से जोरों से उत्पादन कार्य किया जा रहा है। एडवांस टेक्नोलॉजी मशीनों के कारण किशनगढ़ में तैयार ग्रेनाइट का पत्थर देश ही नहीं बल्कि विदेशों को भी भाने लगा है और यहीं कारण है कि यूएई, नेपाल, श्रीलंका, नीदरलैंड और वियतनाम जैसे मुल्कों से भी इसकी मांग बढ़ी है।
किशनगढ़-हनुमानगढ़ मेगा हाइवे के दोनों तरफ बीते तीन-चार साल के भीतर ही ग्रेनाइट की 198 नई फैक्ट्रियां स्थापित हो चुकी है और इनमें 339 मल्टी कटर से ग्रेनाइट पत्थर काटा जा रहा है। जबकि इसी क्षेत्र में कई और फैक्ट्रियां निर्माणाधीन है जो कि कुछ ही दिनों में बन कर तैयार होने वाली है। एडवांस टेक्नोलॉजी की मशीनें किशनगढ़ में आधुनिक एवं एडवांस मल्टी कटर लगाए जा रहे है और यह पूर्णत: क?प्यूटरीकृत पैनल मशीनों से संचालित है। सबसे पहले माइंस से आए ग्रेनाइट के पत्थर (ब्लॉक) की सिंगल हैड कटर (पुरानी पद्धति वाला) से ड्रेसिंग की जाती है। ड्रेसिंग होने के बाद ग्रेनाइट के पत्थर को मल्टी कटर (1 से 12 ब्लैड युक्त कटर) से काटा जाता है। पत्थर के अलग-अलग स्लैब होने पर क?प्यूटरीकृत मशीन पर ही लाइन पोलिश (ग्रेंडिंग) की जाती है। इसके बाद इसी रेजिन मशीन पर ही स्लैब का एपोक्सि ट्रीटमेंट किया जाता है। अंत में स्लैब की मशीन पर ही पोलिश की जाती है और तैयार हो जाता है ग्रेनाइट का चमचमाता पत्थर। कई डिजाइन और कलर में उपलब्ध ग्रेनाइट किशनगढ़ में कई डिजाइन और कलर में ग्रेनाइट पत्थर उपलब्ध है। यहां 45 रुपए से लेकर 250 रुपए स्क्वायर फीट कीमत का ग्रेनाइट का पत्थर उपलब्ध है। ज्यादातर 60 से 120 रुपए स्क्वायर फीट की कीमत के ग्रेनाइट की डिमांड अधिक रहती है। यहां टाइगर स्क्रिन, ढसूक ब्राउन, मैजेस्टिक ब्लैक, राजस्थानी ब्लैक, क्रिस्टल ब्ल्यू, देवड़ा ग्रीन, मुंगरिया, जेड ब्राउन, लक्खा रेड समेत करीब 55 अलग-अलग वैरायटी के ग्रेनाइट उपलब्ध है। न्यूनतम दाम और कम लागत (लगाने का खर्च) के कारण इसकी डिमांड ज्यादा बढ़ी है। एक्सपोर्ट की बढ़ती डिमांड यहां से तैयार ग्रेनाइट पत्थर की नेपाल, श्रीलंका, नीदरलैंड, यूएई और वियतनाम में निर्यात किया जाता है। जबकि दिल्ली, पंजाब, कर्नाटक, केरला, हरियाणा और जयपुर में भी ग्रेनाइट की अधिक मांग है। जालौर को भी उत्पादन में पछाड़ा प्रदेश की ग्रेनाइट की सबसे बड़ी जालौर मंडी को भी किशनगढ़ ने पछाड़ दिया है। जानकारों ने बताया कि जालौर में ज्यादातर सिंगल हैड कटर (पुरानी पद्धति) से ही पत्थर काटा जाता रहा है। जबकि किशनगढ़ में स्थापित ज्यादातर मल्टीकटर लगाए जा रहे है। इससे कम समय में अच्छी क्वालिटी के साथ ही 8 से 10 गुणा प्रति घंटा ज्यादा माल तैयार किया जा रहा है। ग्रेनाइट हब बना किशनगढ़ एडवांस टेक्नोलॉजी के मल्टी कटर पैनल मशीनों से पत्थर की प्रोसेसिंग की जा रही है। इसके कारण कम समय में अच्छी क्वालिटी और ज्यादा उत्पादन किया जा सकता है। किशनगढ़ अब ग्रेनाइट हब के रूप में विकसित हो चुका है और यहीं वजह है कि देश, प्रदेश और विदेशों से भी हमारे ग्रेनाइट की डिमांड बढ़ रही है। -राहुल टांक, ग्रेनाइट उद्यमी, किशनगढ़।