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Danger: तरस जाएंगे आप खरमौर देखने के लिए, गोडावण जैसा हो गया है हाल

locationअजमेरPublished: Apr 27, 2019 09:11:01 am

Submitted by:

raktim tiwari

अजमेर जिले का शुभंकर है खरमौर। केवल मानसून के दौरान देता है दिखाई।

lesser florican in ajmer

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रक्तिम तिवारी/अजमेर.

जिले के शुभंकर पक्षी खरमौर पर जबरदस्त संकट मंडरा रहा है। अंधाधुंध खनन, प्राकृतिक आपदाएं और असंतुलित होते पर्यावरण ने खरमौर को नुकसान पहुंचाने में जुटे हैं। जिले के शोकलिया-भिनाय क्षेत्र का उचित संरक्षण नहीं किया गया तो लोग भविष्य में गोडावण की तरह खरमौर को देखने के लिए भी तरस जाएंगे।
वन्य क्षेत्र और वन संपदा में लगातार कमी से पशु-पक्षियों पर जबरदस्त असर पड़ा है। खरमौर भी इनमें शामिल है। अजमेर जिले में सोकलिया, गोयला, रामसर, मांगलियावास और केकड़ी खरमौर के पसंदीदा क्षेत्र है। मूलत: प्रवासी पक्षी कहा वाला खरमौर इन्हीं इलाकों के हरे घास के मैदान, झाडिय़ों युक्त ऊबड़-खाबड़ क्षेत्र में दिखता रहा है। खासतौर पर मानसून की सक्रियता (जुलाई से सितंबर) के दौरान तो यह अक्सर रहते आए हैं। लेकिन अब यह विलुप्त होती प्रजातियों में शामिल होने की कगार पर पहुंच रहा है।
सर्वेक्षण में स्थिति चिंताजनक
भारतीय वन्य जीव संस्थान सहित कई विश्वविद्यालयों-संस्थाओं ने राजस्थान-गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों का सर्वेक्षण किया है। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष प्रो. प्रवीण माथुर ने बताया कि पूरी दुनिया में खरमौर का अस्तित्व संकट में है। इसको बचाने के प्रयास नाकाफी हैं। संस्थान द्वारा देश के विभिन्न प्रांतों में किए गए सर्वेक्षण में भी स्थिति गंभीर पाई गई है। अजमेर-शोकलिया-भिनाय क्षेत्र में झाडिय़ों और घास के मैदान खरमौर के लिए अहम हैं। दुर्भाग्य से इसके यह आवास स्थल भी घटते जा रहे हैं।
गिनने लायक हैं खरमौर…

भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के डॉ. सुतीर्थ दत्ता की मानें तो 80 के दशक तक देश में करीब 4374 खरमौर थे। अब यह संख्या घटते-घटते डेढ़ से दो हजार के आसपास पहुंच चुकी है। हरे घास के मैदान, झाडिय़ों युक्त ऊबड़-खाबड़ क्षेत्र नहीं बचाए गए खरमौर, गोडावण सहित कई प्रजातियों के पक्षी, जीव-जंतु विलुप्त हो जाएंगे। भावी पीढ़ी इन्हें कभी देख नहीं सकेगी।
केवल बरसात में आता नजर
राज्य सरकार ने प्रत्येक जिले का शुभंकर पक्षी घोषित किया है। अजमेर का शुभंकर खरमौर है। मूलत: शर्मिला समझा जाने वाला खरमौर प्रतिवर्ष बारिश के दौरान ही दिखता है। मानसून खत्म होते ही यह कहां चला जाता है, इसको लेकर पक्षीविद्, पर्यावरण विशेषज्ञ भी हैरान हैं। भारतीय वन्य जीव संस्थान और मदस विश्वविद्यालय की टीम पिछले तीन साल से अजमेर जिले के शोकलिया-भिनाय क्षेत्र में जा रही है। उन्हें हर बार चार-पांच खरमौर ही नजर आए हैं।
करना होगा ये काम…..

प्राकृतिक संसाधनों, वनों और जलाशयों का संरक्षण
-खरमौर के लिए झाडिय़ों और घास के मैदान की उपलब्धता

-भिनाय-शोकलिया क्षेत्र में अवैध खनन पर रोक
-लोग समझें खरमौर और अन्य पक्षियों की उपयोगिता
-वन संपदा की सुरक्षा की जानकारी
-प्रशासन, शैक्षिक संस्थाओं और आमजन करें मिल-जुल कर काम

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