प्रदेश में रोहिड़ा को राज्य पुष्प वृक्ष का दर्जा प्राप्त है। पचास से साठ के दशक तक रोहिड़ा काफी बहुतायत में था। रिहायशी क्षेत्र की बढ़ोतरी और घटते वन क्षेत्र का रोहिड़ा पर भी असर पड़ा है। धीरे-धीरे यह पौधा अब कम दिखता है। कम पानी में पनपने वाला रोहिड़ा धीरे-धीरे विलुप्त होने वाले पौधों में पहुंच रहा है। यही वजह है, कि सरकार को ऑपरेशन रोहिड़ा चलाने की जरूरत पड़ गई है। इनका कहना है
लकड़ी का व्यावसायिक उपयोग
रोहिड़ा की लकड़ी सागवान के समान होती है। इसका धड़ल्ले से व्यावसायिक उपयोग हो रहा है। बाडमेर, जोधपुर, जैसलमेर और अन्य क्षेत्रों में लकड़ी के नक्काशी का फर्नीचर, घरों, दुकानों, व्यावासियक प्रतिष्ठानों में खिडक़ी-दरवाजे बन रहे हैं। इसके अलावा हैंडीक्राफ्ट्स के आइटम, खिलौनों में इसका उपयोग बढ़ गया है। यही वजह है कि रोहिड़ी की बेरोक-टोक कटाई जारी है।
रोहिड़ा की लकड़ी सागवान के समान होती है। इसका धड़ल्ले से व्यावसायिक उपयोग हो रहा है। बाडमेर, जोधपुर, जैसलमेर और अन्य क्षेत्रों में लकड़ी के नक्काशी का फर्नीचर, घरों, दुकानों, व्यावासियक प्रतिष्ठानों में खिडक़ी-दरवाजे बन रहे हैं। इसके अलावा हैंडीक्राफ्ट्स के आइटम, खिलौनों में इसका उपयोग बढ़ गया है। यही वजह है कि रोहिड़ी की बेरोक-टोक कटाई जारी है।
यह भी पढ़ें
Recruitment Exam: आरपीएससी को खिसकानी पड़ सकती हैं परीक्षाएं
बीज का संग्रहण मुश्किलमहाराजा गंगासिंह यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति और बॉटनी विभागाध्यक्ष डॉ. सी. बी. गैना ने बताया कि रोहिड़े के बीज का संग्रहण करना आसान नहीं है। दरअसल इसके बीज की संरक्षण-संवद्र्धन क्षमता कम है। बीज को मानसून के दौरान तुरंत नहीं रोपने पर यह खराब हो जाता है।
अजमेर जिले में गिनती के पेड़
राज्य पुष्प वृक्ष पहले अजमेर जिले में बहुतायत में था। पुष्कर, गगवाना, गेगल, कायड़, किशनगढ़, नसीराबाद, भिनाय, केकड़ी और अन्य इलाकों में करीब 40 से 50 प्रतिशत तक रोहिड़े के पेड़ थे। बीते 20-25 में रिहायशी इलाकों में बढ़ोतरी, अवैध खनन-कटाई और वन क्षेत्र घटने से रोहिड़ा संकट में है। जिले में रोहिड़े के गिनती के पेड़ रह गए हैं। इनमें दो महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में मौजूद हैं।
राज्य पुष्प वृक्ष पहले अजमेर जिले में बहुतायत में था। पुष्कर, गगवाना, गेगल, कायड़, किशनगढ़, नसीराबाद, भिनाय, केकड़ी और अन्य इलाकों में करीब 40 से 50 प्रतिशत तक रोहिड़े के पेड़ थे। बीते 20-25 में रिहायशी इलाकों में बढ़ोतरी, अवैध खनन-कटाई और वन क्षेत्र घटने से रोहिड़ा संकट में है। जिले में रोहिड़े के गिनती के पेड़ रह गए हैं। इनमें दो महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय में मौजूद हैं।
यह भी पढ़ें
RAS Main: आपका शत्रु आपका सबसे बड़ा मित्र है समझाइए!
इन जिलों में मिलता है रोहिड़ाअजमेर, बाडमेर, बीकानेर, चूरू, जैसलमेर, जोधपुर, नागौर,पाली और सीकर फैक्ट फाइल..
राज्य पुष्प वृक्ष-रोहिड़ा, बॉटनीकल नाम-टेकोमेला अंडुलाटा
प्रकृति-रोहिड़ा का पौधा पांच से सात मीटर ऊंचा होता है। इसकी शाखाओं का रंग हल्का सलेटी-भूरा होता है। इसका फूल हल्का पीला-सुनहरे रंग का होता है। जनवरी से अप्रेल तक रोहिड़ा में पुष्प खिलते हैं।
व्यावसायिक महत्ता-इसकी लकड़ी का उपयोग फर्नीचर बनाने में होता है। इसीलिए ऐसे डेजर्ट टीक या मारवाड़ टीक भी कहते हैं।
औषधीय महत्ता- मूत्र, यकृत, सिफलिस, गोनेरिया और अन्य रोगों के उपचार में रोहिड़ा कारगार माना जाता है।
राज्य पुष्प वृक्ष रोहिड़ा की स्थिति बेहतर नहीं है। पहले हल से खेती होने के कारण इसके बीज जमीन में पनप जाते थे। ट्रेक्टर से खेती, अतिक्रमण, अवैध कटाई के बाद हालात बदल गए हैं। इसको संरक्षित रखने के गंभीरता से प्रयास करने की जरूरत है।
डॉ. अर्चना वर्मा, वैज्ञानिक जोधपुर
डॉ. अर्चना वर्मा, वैज्ञानिक जोधपुर