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Mango Day: कभी होते थे रसीले आम, अब रह गया सिर्फ नाम..

आमबाव और आम का तालाब इलाके की तस्वीर पिछले 30-40 साल में बदल चुकी है। अब तालाब की जमीन और इसके आसपास कॉलोनियां-बस्तियां बस चुकी हैं।

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रक्तिम तिवारी/अजमेर.

फलों के राजा आम का नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है। उसकी मिठास और सुगंध के सब दीवाने हैं। कभी अजमेर भी आम की पैदावार के लिए मशहूर था। यहां के आम स्वाद में बेहद रसीले होते थे। खासतौर पर दरगाह-अंदरकोट स्थित आमबाव और गुलाबबाड़ी स्थित आम का तालाब इलाकों में 'आम के बगीचे थे। लेकिन वक्त के साथ सिर्फ इनका नाम रह गया है। खूबसूरत बगीचों की जगह मकान बन चुके हैं।

दरगाह-अंदरकोट इलाके से सटा आमाबाव तालाब है। यह इलाका बरसों तक आम की पैदावार के लिए मशहूर रहा। तारागढ़ पहाड़ी से बहते झरने और तालाब में भरपूर पानी होने से यहां पान के 8 से 10 हजार पेड़ थे। इलाके के पीले और हरे रसीले आम ना केवल स्थानीय लोगों बल्कि दरगाह आने वाले जायरीन को भी बेहद पसंद आते थे।
इसी तरह गुलाबबाड़ी स्थित आम का तालाब इलाका अपनी आम की पैदावार के लिए मशहूर था। यहां भी आम के बगीचे थे। इनमें तोतापुरी, बादाम और अन्य किस्मों के आम की पैदावार होती थी। मदार क्षेत्र की पहाडिय़ों और शहरी इलाके से बरसात का पानी तालाब में पहुंचता था। इससे बगीचों की सिंचाई होती थी। आम का तालाब इलाके से आम का बेचान दूसरे शहरों में भी किया जाता था।

अब नाम का आम....
आमबाव और आम का तालाब इलाके की तस्वीर पिछले 30-40 साल में बदल चुकी है। अब तालाब की जमीन और इसके आसपास कॉलोनियां-बस्तियां बस चुकी हैं। तालाब तक पानी आवक के मार्गों पर कब्जे हो चुके हैं। आम के बगीचों का नमोनिशां मिट चुका है। आज की पीढ़ी को शायद ही अजमेर में आम की पैदावार की जानकारी होगी।

बेचने का भी अलग अंदाज
इतिहासकार डॉ. ओमप्रकाश शर्मा ने पत्रिका को बताया कि उन्हें अंदरकोट-दरगाह इलाके के आमों का स्वाद आज भी याद है। आजादी के बाद 1960 के दशक तक उन्होंने इस इलाकों में आम की पैदावर देखी है। यहां के आम बेहद सुगंधित और रसीले होते थे। इन्हें बेचने का भी निराला अंदाज होता था। आम विक्रेता पहले लकड़ी टोकरी में लाल-पीला या किसी भी रंग का मखमली कपड़ा रखते थे। फिर आमों को करीने से कपड़े से ढांपकर और ऊपर दूसरा कपड़ा रखकर बेचने निकलते थे। आम का तालाब इलाके के आम भी स्वाद में बेहद मीठे होत थे।