शिक्षकों की कमी बनी हुई है। विश्वविद्यालय में कला, वाणिज्य, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, विधि, पत्रकारिता और अन्य संकाय संचालित हैं। फिलहाल 17 स्थाई शिक्षक कायर्रत हैं। इनमें 15 प्रोफेसर और 2 रीडर शामिल हैं।
कैंपस के पीजी और यूजी-सर्टिफिकेट कोर्स में 1 हजार विद्यार्थी भी नहीं हैं। भूगोल, फिजिक्स, डिजास्टर मैनेजमेंट, पर्यावरण लॉ, म्यूजिक, मास्टर ऑफ सोशल वर्क, टेक्सटाइल डिजाइन, बैचलर ऑफ एज्यूकेशन, बैचलर और मास्टर ऑफ फाइन आट्र्स, एमबीए बिजनेस इकोनॉमिक्स और अन्य कोर्स में लगातार दूसरे सत्र में प्रवेश नहीं हुए हैं।
बॉम में दोनों विधायकों के पद रिक्त हैं। कुलपति द्वारा नामित डीन प्रो. नगेंद्र सिंह, प्रो. शिवदयाल सिंह और प्रो. सुब्रतो दत्ता का बतौर सदस्य कार्यकाल खत्म हो चुका है। ना अधिकारी ना स्टाफ पर्याप्त
विवि में महज एक उप कुलसचिव और 3 सहायक कुलसचिव कार्यरत हैं। सहायक कुलसचिव प्रतीक शर्मा दो साल से राजभवन में प्रतिनियुक्ति पर है। मंत्रालयिक और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की संख्या करीब 250 के आसपास है। परीक्षा, गोपनीय, एकेडेमिक और अन्य अहम विभागों में लगातार सेवानिवृत्तियों से कार्मिकों पर अतिरिक्त कामकाज का बोझ बढ़ रहा है।
विश्वविद्यालय राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के उत्कृष्ट शोध में पिछड़ा हुआ है। 1987 से अब तक हुए शोध में ज्यादातर विश्व स्तरीय श्रेणी में नहीं हैं। विवि के किसी शोध को अंतर्राष्ट्रीय अथवा राष्ट्रीय स्तर पर पॉलिसी का हिस्सा नहीं बनाया गया है।
विवि परीक्षा फॉर्म कभी भी समय पर नहीं भरवा पाया है। पत्रावलियों पर अनावश्यक टिप्पणियां, कथित तौर पर पसंदीदा तकनीकी फर्मों को कामकाज सौंपने की प्रवृत्ति हावी रही है। पूर्व कार्यवाहक कुलपति ओम थानवी ने पहली बार प्रश्न पत्रों की प्रिंटिंग में गोपनीय टेंडर कर नवाचार किया। कोरोना संक्रमण के कारण परीक्षाएं विलंब से हो रही हैं।