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ईरान से अजमेर आने पर ख्वाजा साहब ने सबसे पहले पहाड़ों पर रहकर इबादत की थी। बरसों तक वे इसी स्थान पर रहे। इसलिए बड़ी संख्या में अकीदतमंद दरगाह से पहले यहां हाजिरी देने आते हैं। कहा जाता है कि जब ख्वाजा साहब यहां से गए तो पत्थरों के भी आंसू आ गए थे।
मस्जिद में नमाज पढ़ते थे ख्वाजा
उमरद्दीन चिश्ती के अनुसार ख्वाजा साहब ने सबसे पहले यहां आकर पहाड़ों के बीच एक गुफा में कई साल तक इबादत की। उनकी इबादत की अवधि को लेकर लोगों में भिन्न-भिन्न मत हैं। कोई कहता है कि उन्होंने 6 साल यहां इबादत की। किसी के अनुसार 8 साल तो कुछ लोगों का मानना है कि ख्वाजा साहब ने यहां 12 साल तक इबादत की थी। वे यहां गुफा में इबादत करते थे और कुरान पढ़ते थे। जब तक वे यहां रहे चिल्ले के पास एक मस्जिद में वे ही नमाज पढ़ाया करते थे। यहीं से अपनी शिक्षाएं दिया करते थे। उनके मुरीद उनसे मिलने यहां आया करते थे।
रोने लगे थे पत्थर
उमरद्दीन चिश्ती के अनुसार ख्वाजा साहब ने यहां लम्बे समय तक इबादत की थी। यहीं से शिक्षाएं दी। जब वे यहां से गए तो पत्थर भी पिघल गए थे और पहाड़ रोने लग गए। इसके निशान यहां मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि यहां भी उर्स का झण्डा चढ़ाया जाता है और गुसल होती है। सुबह-शाम लोगों को लंगर बांटा जाता है। उर्स के दौरान रोज करीब 5 हजार लोग यहां लंगर खाते हैं। ख्वाजा साहब के चिल्ले के ऊपर उनके गुरु का भी चिल्ला है।
इंदिरा और नवाज भी दे चुके हैं हाजिरी
वैसे तो ख्वाजा साहब की दरगार में कई राष्ट्राध्यक्ष हाजिरी दे चुके हैं, लेकिन देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खासतौर पर चिल्ले पर भी हाजिरी दी थी। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी इस चिल्ले पर आए थे।
यहां आए बिना अधूरी है यात्रा
मुम्बई से आए मो. इस्माइल पटेल ने बताया कि वे पिछले कई साल से अजमेर आ रहे हैं। हर बार चिल्ले पर जरूर आते हैं। उनका कहना है कि चिल्ले पर आए बिना उन्हें अपनी यात्रा अधूरी लगती है।
चिल्ले से यात्रा की शुरूआत
मुम्बई से आए मोहम्मद सिद्दकी ने बताया कि वे 20 से ज्यादा साल से यहां आ रहे हैं।
उनकी अजमेर यात्रा की शुरूआत चिल्ले की जियारत से ही शुरू होती है। चिल्ले पर हाजिरी देने के बाद ही वे दरगाह जाते हैं।
पहले चिल्ले पर हाजिरी (मोहम्मद हुसैन)
जूनागढ़ से आए सैय्यद मोहम्मद हुसैन पहले ख्वाजा साहब के चिल्ले पर आते हैं। यहां इबादत करते हैं। इसके बाद दरगाह जाते है।
मिलता है सुकून (मोहम्मद आशिक)
दिल्ली के मोहम्मद आशिक का कहना है कि चिल्ले पर आकर उन्हें सुकून मिलता है। वे दरगाह जियारत के बाद चिल्ले पर आकर इबादत करते हैं। यहां आकर उन्हें रूहानी अहसास होता है।
हिन्दुओं के घर मुस्लिम को पनाह
उर्स के दौरान देश के कई कोनों से लाखों लोग हाजिरी देने आते हैं। इसके चलते शहर के होटल, गेस्ट हाउस पूरी तरह भर जाते हैं। ऐसे में कई परिवारों को ठहरने की जगह नहीं मिलती। जुमे की नमाज के आस-पास स्थिति और विकट हो जाती है। ऐसे में लोग घरों की ओर रुख करते हैं। इस दौरान कई मुस्लिम परिवारों को हिन्दुओं के घर में पनाह मिलती है। भाईचारे की यह मिसाल उर्स के दौरान खूब देखने को मिलती है। हालांकि पनाह देने वाले लोग पहचान भी पुख्ता कर लेते हैं।
Published on:
25 Mar 2018 09:43 am
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