आचार्य विद्यासागर की प्रतीक्षा, जगी उम्मीद ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र स्थित आदिनाथ जिनालय का पंचकल्याणक होना शेष है। यहां की प्रबंधक समिति ने तय किया है कि संत शिरोमणी आचार्य विद्यासागर के सान्निध्य में ही पंचकल्याणक होगा। पिछले १५ साल से आचार्य से विनती की जा रही है, लेकिन अभी स्वीकृति नहीं मिली है। जानकारों के अनुसार इन दिनों आचार्य इंदौर में हैं। इनका फरवरी माह में बिजोलिया (भीलवाड़ा) आने का कार्यक्रम है,जहां पंचकल्याणक होना है। ऐसे में उम्मीद है कि आचार्य अजमेर भी आ सकते हैं। आचार्य की मुनि दीक्षा 30 जून १९६८ को अजमेर स्थित सोनीजी की नसियां में हुई थी। आज भी फव्वारा सर्किल पर आचार्य की दीक्षा स्थली का स्मारक बना हुआ है। उल्लेखनीय है कि भारतवर्ष में जैन समाज का सबसे बड़ा मुनि संघ आचार्य विद्यासागर का है।
प्रमुख तीर्थ स्थल की बनी पहचान इस तीर्थक्षेत्र की स्थापना के पीछे मुनि सुधासागर की परिकल्पना रही है। आज यह उन्हीं की प्रेरणा से विशिष्ट पहचान बना चुका है। गौरतलब है कि ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र करौली जिले के श्रीमहावीरजी, अलवर जिले के तिजारा, जयपुर जिले के बाड़ा पदमपुरा, कोटा-बारां जिले के चांदखेड़ी, भीलवाड़ा जिले के जहाजपुर व बिजोलिया तीर्थक्षेत्र की तरह प्रतिष्ठित हो गया है। ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र पर रोजाना करीब पांच हजार श्रद्धालु आ रहे हैं।
चैत्यालय में प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र की एक और विशेषता यह भी है कि प्रदेश के किसी भी जिनालय में यदि प्रतिमाओं की पूजा नहीं हो पा रही हों। भूगर्भ में मिली प्रतिमाओं को वेदी पर प्रतिष्ठित करने में दिक्कतें आ रही हो तो ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र के चैत्यालय में उसकी व्यवस्था है।
मुनि सुधासागर की प्रेरणा से इस चैत्यालय में ऐसी कई उपेक्षित जिनप्रतिमाओं को अभिषेक व पूजा-अर्चना कर वेदी पर विराजमान कराया गया है। यहां नियमित पूजा हो रही है। पंचकल्याणक कराने का संकल्प
ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र का आचार्य विद्यासागर के हाथों पंचकल्याणक कराने का संकल्प है। डेढ़ दशक से गुरुवर से विनती की जा रही है,लेकिन उनकी अतिव्यस्तता के चलते संभव नहीं हो पा रहा है। उनके ससंघ बिजोलिया मंगल प्रवेश के बाद अजमेर आने की विनती की जाएगी।