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शहीद के परिजन बोले- धारा 370 खत्म, अब आतंकवाद का समूल नाश हो

पिता मोहन काठात की तस्वीरों व अन्य दस्तावेज को देखते हुए कमला ने कहा कि उनका जन्म पिता के शहीद होने के 4 दिन बाद हुआ, उसने पिता को नहीं देखा, लेकिन उनकी शहादत पर गर्वहै

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Now terrorism should be eradicated

शहीद के परिजन बोले- धारा 370 खत्म, अब आतंकवाद का समूल नाश हो

ब्यावर ( अजमेर ).

जम्मू-कश्मीर में शहादत देने वालों की लम्बी सूची है। शहीदों ने देश की रक्षा के लिए जान की बाजी लगा दी। बरसों से देशवासियों का जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के समाप्त होने का इंतजार था। वो इंतजार खत्म हो गया। धारा 370 समाप्त हो गई अब आतंकवाद को समूल नष्ट कर देना चाहिए।

देश में अमन-चैन के साथ ही विकास की बयार चलनी चाहिए। यह कहना है कि कारगिल युद्ध में शहीद हुए ग्रेनेडियर मोहन काठात की पुत्री कमला का। जम्मू कश्मीर में धारा 370 को समाप्त किए जाने के बाद मोहन काठात के परिवारजन की उनकी शहादत की यादें ताजा हो गईं।

पिता की तस्वीरों व अन्य दस्तावेज को देखते हुए कमला ने कहा कि उनके पिता मोहन काठात 8 मई 1999 को शहीद हुए। उसका जन्म इसके 4 दिन बाद हुआ। उसने पिता को नहीं देखा, लेकिन उनकी शहादत पर गर्वहै। देश की अखंडता को बनाए रखने के लिए उन्होंने प्राण न्यौछावर कर दिए।

आज जब जम्मू कश्मीर से धारा 370 समाप्त कर दी गई है तो अच्छा लग रहा है। पिता की शहादत को याद कर कमला व उसकी माता शांता की आंखें भर आईं। कमला ने बताया कि वह नर्सिंग कर रही है। देश सेवा के लिए सेना में जाने को तैयार है।

खुशी के आंसू भी छलके

कारगिल में मोहन काठात की शहादत को याद कर परिजन की आंखें नम हो गईं। उन्होंने देश की रक्षा के लिए शहादत दी। वहीं उस क्षेत्र में देश को बांटने वाली धारा 370 को समाप्त किए जाने पर खुशी के आंसू भी छलक पड़े।

मगरे के कई जवान शहीद हुए हैं। इनमें ही शहीद मोहन काठात भी कारगिल में शहीद हुए। आज के दिन शहीदों के घर जाकर उन्हें बधाई दी। शहीद के परिवारों में धारा 370 को समाप्त किए जाने पर खुशी है।

नजीर मोहम्मद काठात, सेवानिवृत्त प्रधानाध्यापक

धारा 370 को समाप्त किए जाने से पूरे देश में खुशी है। मगरे के जवान सेना में जाते हैं। अधिकांश की सेवाएं जम्मू कश्मीर में रहती है। मोहन काठात ने भी कारगिल में शहादत दी। उनकी शहादत व बलिदान का फल मिला है। इस धारा को समाप्त किया गया है। शहीद परिवार से मिलकर इस खुशी में शामिल किया।

प्रो. जलालुद्दीन काठात