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हजारों स्टूडेंट्स के मतलब की खबर,पीएचडी प्रवेश परीक्षा को लेकर होने वाला है बड़ा फैसला

locationअजमेरPublished: Jul 13, 2018 09:23:50 am

Submitted by:

raktim tiwari

पीएचडी प्रवेश परीक्षा शुरू की थी। लेकिन कई जटिलताओं से यह फार्मूला भी ज्यादा कामयाब नहीं हो रहा है।

 To improve research, 75 private and government universities will join hands together

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रक्तिम तिवारी/अजमेर।

शोध करने के इच्छुक विद्यार्थियों को कुछ ‘ राहत मिल सकती है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय पीएचडी प्रवेश परीक्षा को जल्द खत्म कर सकता है। इसके लिए देश के शिक्षाविदों, विशेषज्ञों और शोधार्थियों से सुझाव मांगे गए हैं। रायशुमारी के बाद मंत्रालय इस पर फैसला लेगा।
यूजीसी के निर्देश पर सभी विश्वविद्यालयों ने देश में वर्ष 2009-10 से पीएचडी प्रवेश परीक्षा कराना शुरू किया है। पूर्व में पीएचडी के लिए विद्यार्थियों के पंजीयन सीधे होते थे। इसके लिए स्नातकोत्तर कक्षा में संबंधित विषय में अंक और देखे जाते थे। यूजीसी ने शोध कार्यों में गिरावट को देखते हुए पीएचडी प्रवेश परीक्षा शुरू की थी। लेकिन कई जटिलताओं से यह फार्मूला भी ज्यादा कामयाब नहीं हो रहा है।
यह आ रही समस्याएं
विश्वविद्यालयों के पीएचडी प्रवेश परीक्षा कराने के बावजूद शोधार्थियों को खास फायदा नहीं मिल रहा। कई विश्वविद्यालयों और उनसे सम्बद्ध कॉलेज में शोधार्थियों के लिए गाइड ही उपलब्ध नहीं है। प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद भी छह माह के कोर्स वर्क और रजिस्ट्रेशन में विलम्ब हो रहा है। इसके अलावा संबंधित गाइड की शैक्षिक एवं प्रशासनिक कार्यों में व्यस्तता के चलते पीएचडी समय पर पूरी नहीं हो रही हैं।
वापस सीधे रजिस्ट्रेशन पर विचार

मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने वर्ष 2021-22 से पीएचडी को कॉलेज-विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की पात्रता बनाने का फैसला किया है। इसके अन्तर्गत पीएचडी धारक अभ्यर्थी ही शिक्षक बन सकेंगे। ऐसे में पीएचडी प्रवेश परीक्षा को खत्म करने का विचार किया जा रहा है। मंत्रालय का मानना है, कि पीएचडी प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने के बावजूद अभ्यर्थियों को नियत अवधि में उपाधि नहीं मिल रही। इसके अलावा विश्वविद्यालयों में शोधार्थियों की संख्या तेजी से घट रही है। पंजीयन में लगातार कमी इसका द्योतक है।
विशेषज्ञों-शिक्षाविदों से सुझाव
प्रवेश परीक्षा अथवा पीएचडी में सीधे रजिस्ट्रेशन को लेकर मंत्रालय ने देश भर में विशेषज्ञों और शिक्षाविदें से सुझाव मांगे हैं। रायशुमारी मिलने के बाद एक उच्च स्तरीय समिति इसका अध्ययन करेगी। समिति की रिपोर्ट पर मंत्रालय पीएचडी प्रवेश परीक्षा को जारी रखने या खत्म करने पर फैसला करेगा। बनाएं
मदस विश्वविद्यालय में यह हाल

विश्वविद्यालय ने वर्ष 2010, 2011, 2015, 2016 और 2017 में परीक्षा कराई। यूजीसी के प्रतिवर्ष परीक्षा कराने के निर्देशों की यहां कभी पालना नहीं हुई। पहले कोर्स वर्क बनाने में देरी हुई। फिर कोर्स वर्क को लेकर कॉलेज और विश्वविद्याल में ठनी रही। पूर्व कुलपति प्रो. कैलाश सोडाणी के प्रयासों से पीएचडी के जटिल नियमों में बदलाव किया गया।
यहां शुरुआत से कभी पिछले बैच के गाइड आवंटन तो कभी कोर्स वर्क कराने का तर्क दिया जाता रहा है। पिछले साल हुए दीक्षांत समारोह में महज 20 पीएचडी डिग्री बांटी गई थी। इस बार भी कमोबेश हालात कुछ ऐसे ही हैं।
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