केस-१
जोगदास, उम्र ८० साल, कालीबेरी कच्ची बस्ती सेवानिवृत्त होने की उम्र में जोगाराम ने करीब दो दशक पूर्व २००१ में इस आस में पाकिस्तान के पंजाब सूबे से भारत की धरती को आ कर चूमा कि पाकिस्तान की बदहाल जिंदगी से राहत मिलेगी, लेकिन एेसा कुछ भी नहीं हो नहीं पाया। जोगाराम ने बताया कि हिन्दू अल्पसंख्यकों के साथ धार्मिक उत्पीडऩ, छोटी उम्र की हिन्दू बच्चियों का अपहरण कर जबरन धर्म परिवर्तन के बाद शादी, बलात्कार व लूटमार सहित कई तरीकों से हिन्दू समुदाय के साथ उत्पीडऩ और अत्याचार जैसी घटनाओं से परिवार को बचाने के लिए जोधपुर में आ कर शरण ली। दो दशक से नागरिकता मिलने की आस में राशन कार्ड के अभाव में राशन के लिए भी परेशान होना पड़ता है।
जोगदास, उम्र ८० साल, कालीबेरी कच्ची बस्ती सेवानिवृत्त होने की उम्र में जोगाराम ने करीब दो दशक पूर्व २००१ में इस आस में पाकिस्तान के पंजाब सूबे से भारत की धरती को आ कर चूमा कि पाकिस्तान की बदहाल जिंदगी से राहत मिलेगी, लेकिन एेसा कुछ भी नहीं हो नहीं पाया। जोगाराम ने बताया कि हिन्दू अल्पसंख्यकों के साथ धार्मिक उत्पीडऩ, छोटी उम्र की हिन्दू बच्चियों का अपहरण कर जबरन धर्म परिवर्तन के बाद शादी, बलात्कार व लूटमार सहित कई तरीकों से हिन्दू समुदाय के साथ उत्पीडऩ और अत्याचार जैसी घटनाओं से परिवार को बचाने के लिए जोधपुर में आ कर शरण ली। दो दशक से नागरिकता मिलने की आस में राशन कार्ड के अभाव में राशन के लिए भी परेशान होना पड़ता है।
केस-२ अर्जनराम भील, काली बेरी, विस्थापित बस्ती
वर्ष २००८ में जोधपुर आए थे। अपनी नातिन के विवाह पर पूरे परिवार के साथ शामिल होने पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया। दो साल तक बीकानेर सेन्ट्रल जेल में रहे। परिवार आर्थिक तंगी से जूझता-रोता रहा। केस चलता रहा और करीब ढाई साल के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। अभी तक पूरा परिवार नागरिकता के इंतजार में है। पत्नी जसोदा, तीन पुत्र और पुत्रवधुओं सहित भरा- पूरा परिवार है। अर्जन ने बताया कि उन्हें सरकार से सिर्फ जीने का अधिकार चाहिए।
वर्ष २००८ में जोधपुर आए थे। अपनी नातिन के विवाह पर पूरे परिवार के साथ शामिल होने पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार किया। दो साल तक बीकानेर सेन्ट्रल जेल में रहे। परिवार आर्थिक तंगी से जूझता-रोता रहा। केस चलता रहा और करीब ढाई साल के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया। अभी तक पूरा परिवार नागरिकता के इंतजार में है। पत्नी जसोदा, तीन पुत्र और पुत्रवधुओं सहित भरा- पूरा परिवार है। अर्जन ने बताया कि उन्हें सरकार से सिर्फ जीने का अधिकार चाहिए।
पाक विस्थापित : न रोजगार , न जीवन जोधपुर में करीब १५ हजार पाक विस्थापित हैं। इनमें ७ हजार महिलाएं, ५ हजार बच्चे और शेष युवा और बुजुर्ग हैं। आधे से अधिक विस्थापित परिवारों के बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे है। पाकिस्तानी शब्द सुन कर उन्हें कोई भी रोजगार देने से कतराता है। शिक्षित विस्थापितों को भी पाकिस्तान के डिग्री प्रमाण-पत्र पर ना कोई काम मिलता है और ना ही वह आगे की शिक्षा ले सकता है। विस्थापितों को खुद के नाम से जमीन खरीदने का कोई अधिकार नहीं होने के कारण जमा रकम रिश्तेदारों के पास रखनी पड़ती है। जोधपुर में पाक विस्थापित करीब ३० से अधिक डॉक्टर हैं, जिन्हें नागरिकता नहीं मिलने से उन्हें प्रेक्टिस करने में परेशानियां झेलनी पड़ती हैं।–
प्रदेश में पौने पांच लाख लोगों को मिल चुकी नागरिकता
प्रदेश में पौने पांच लाख लोगों को मिल चुकी नागरिकता
वर्ष १९६५ तथा १९७१ से अब तक भारत आए कुल पाक विस्थापितों की संख्या राजस्थान में लगभग ५ लाख है, जिनमें से ४७५००० लोगों को नागरिकता मिल चुकी है। अब भी २५००० विस्थापित राजस्थान में शरण लिए हुए हैं। जोधपुर में करीब ५ हजार लोग नागरिकता के इंतजार में हैं। करीब १५ से अधिक कच्ची बस्तियों में विस्थापित परिवार रह रहे हैं। –
आसमां से टपके खजूर में अटके जैसे हालत
आसमां से टपके खजूर में अटके जैसे हालत
पाकिस्तान के हिन्दू अल्पसंख्यक वर्ग के पास हिंदुस्तान में आकर शरण लेने के सवा और कोई भी विकल्प नहीं है। यहां भी हालात उन की अपेक्षा के मुताबिक कम से कम स्वर्ग जैसे तो बिल्कुल भी नहीं हैं। सभी राजनीतिक दल वोटों की राजनीति में सुनहरे ख्वाब ही दिखाते हैं। विस्थापितों की हालत आसमान से गिरे खजूर में अटके जैसी है। जोधपुर में ५००० लोग नागरिकता लेने के योग्य हैं उन्हें नियमानुसार राहत मिलनी चाहिए।
-हिन्दूसिंह सोढा अध्यक्ष
-हिन्दूसिंह सोढा अध्यक्ष
सीमांत लोक संगठन — मूलभूत सुविधाओं से वंचित
वर्तमान सरकार को भी चार साल बीत चुके हैं, परंतु विस्थापितों की समस्याएं जमीन पर जस की तस हैं। दशकों से अपने सपनों की जमीन पर रहने वाले विस्थापित नागरिकता के लिए दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर हैं।
वर्तमान सरकार को भी चार साल बीत चुके हैं, परंतु विस्थापितों की समस्याएं जमीन पर जस की तस हैं। दशकों से अपने सपनों की जमीन पर रहने वाले विस्थापित नागरिकता के लिए दर-दर की ठोकरें खाने के लिए मजबूर हैं।
-गोविंदलाल भील