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केकड़ी को रेल का इंतजार, नसीराबाद में हर काम के लिए बोर्ड की अनुमति जरूरी

Rajasthan Assembly Election 2023: अजमेर के माखुपुरा से निकल कर जैसे ही बीर घाटी की चढ़ाई शुरू की यहां जाम में फंस गया। ट्रेलर का एक्सल टूटने से अवरोध लगा था। अजमेर से नसीराबाद की महज बीस किलोमीटर की दूरी एक घंटे में पूरी हुई।

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रमेश शर्मा

अजमेर.Rajasthan Assembly Election 2023: अजमेर के माखुपुरा से निकल कर जैसे ही बीर घाटी की चढ़ाई शुरू की यहां जाम में फंस गया। ट्रेलर का एक्सल टूटने से अवरोध लगा था। अजमेर से नसीराबाद की महज बीस किलोमीटर की दूरी एक घंटे में पूरी हुई। जाम की समस्या इस घाटी में पुरानी है। राहगीर नीरज जैन ने बताया कि घाटी में मंदिर के आसपास संकरा रास्ता होने से अक्सर यही हाल रहता है। नसीराबाद बाइपास से पहले केकड़ी विधानसभा का हाल जानने निकला। यह नया जिला बना है। पहले सरवाड़ पहुंचा तो नगर पालिका के गेट पर रामप्रसाद कीर मिले। कीर कहते हैं, हमें वर्षों से अजमेर-कोटा रेल लाइन का इंतजार है। सर्वे भी हो चुका, लेकिन कार्य शुरू नहीं हुआ। सर्वे में जहां पटरियां डालने का प्रस्ताव रखा था, अब वहां मकान बन गए। रेल सेवा शुरू हो तो सरवाड़ दरगाह में अकीदतमंदों की आवक बढ़ेगी। इससे आर्थिक विकास होगा।

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रेल से केकड़ी के व्यापारिक केन्द्र कादेड़ा की मिर्च मंडी को भी फायदा मिलेगा। केकड़ी नगर पालिका के बाहर चाय की थड़ी पर बैठे ड्राइवर दिलीप सिंह ने कहा, केकड़ी कस्बा ही है, नाम के लिए जिला बना दिया है। कैलाश सिंह बीच में बात काटते हुए बोले, उद्योग और रोजगार हो तभी तो विकास होगा। बच्चों को पढ़ाई और नौकरी के लिए केकड़ी छोडऩा पड़ता है। पीडब्ल्यूडी कार्यालय के बाहर गोपाल लाल माली से सरकारी योजनाओं पर सवाल किया तो वो सरकार पर बरस पड़े। बोले, बिजली के बिल पहले से ज्यादा आ रहे हैं। कर्ज माफ करने की बात समझ से परे है। टोल वसूली कर रहे फिर भी सडक़ें खराब है। किशन लाल गुर्जर ने बताया, मुझे बेटा-बेटी को कॉलेज पढ़ाने के लिए जयपुर भेजना पड़ा है। कितना भार पड़ रहा है, कोई सरकार नहीं समझ सकती। पढ़ाई का स्तर अच्छा हो तो हम पेट काटकर बच्चों को दूर क्यों भेजें। केकड़ी से लौटकर नसीराबाद आया। अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की क्रांति का नसीराबाद से शंखनाद गूंजा था। इससे इस नगर का ऐतिहासिक महत्व है। प्रदेश की सबसे छोटी नगर पालिका का रिकोर्ड नसीराबाद के नाम है।

छावनी शहर होने से इसके 95 प्रतिशत भाग पर छावनी बोर्ड का नियंत्रण है। शहीद स्मारक के पास व्यवसायी अजय गौड़ बोले, पूरा शहर छावनी बोर्ड के अधीन है। इसके चलते कि सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। ना मकानों के पट्टे हैं, ना मकान पर लोन ले सकते हैं। मकान की मरम्मत करवानी है तो भी छावनी बोर्ड की अनुमति जरूरी है। इसलिए नए प्रोजेक्ट नहीं आ रहे हैं। छावनी के बाहर का क्षेत्र अस्त-व्यस्त और गंदा नजर आता है। पत्थर व्यवसाय से जुड़े सूर्य प्रकाश टांक ने बताया कि क्षेत्र में उच्च शिक्षा की स्थिति अच्छी नहीं। रज्जाक शाह का कहना है यहां रोजगार और उद्योग की कोई गुंजाइश नहीं है। व्यापारी दीपक कुमार की व्यथा है कि बिजली के बिल कम करने की बात कही थी, पर इस बार पहले से ज्यादा बिल आया है। बीसलपुर की पाइप लाइन सामने से गुजर रही है, लेकिन हमें पानी नहीं मिलता। आधा किलोमीटर से पानी ढोना पड़ता है। बलवंता गांव के मंगलसिंह की पीड़ा है कि उनकी वृद्धावस्था पेंशन समय पर नहीं आती।

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